अब्बास अंसारी को हाई कोर्ट से बड़ी राहत, बहाल हुई विधायिकी – मऊ सदर उपचुनाव टला
उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक अहम मोड़ उस समय आया जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मऊ सदर विधानसभा क्षेत्र से विधायक और माफिया मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी को बड़ी राहत देते हुए उनकी सदस्यता बहाल कर दी। हाई कोर्ट ने एमपी-एमएलए कोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें उन्हें भड़काऊ भाषण देने के मामले में दो साल की सजा और जुर्माने की सजा सुनाई गई थी।
इस फैसले के बाद अब्बास अंसारी की विधायिकी दोबारा मान्य हो गई और मऊ सदर विधानसभा सीट पर उपचुनाव की संभावना भी खत्म हो गई है। समर्थकों में इस फैसले को लेकर खुशी की लहर है, वहीं विपक्षी दल इस पर अलग-अलग राजनीतिक टिप्पणी कर रहे हैं।
मामला क्या है?
अब्बास अंसारी, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के टिकट पर साल 2022 में मऊ सदर विधानसभा सीट से निर्वाचित हुए थे। उन पर आरोप था कि चुनाव प्रचार के दौरान एक जनसभा में उन्होंने भड़काऊ भाषण दिया था। इस मामले में एफआईआर दर्ज हुई और एमपी-एमएलए कोर्ट में मुकदमा चला।
31 मई 2025 को अदालत ने अब्बास अंसारी को दोषी ठहराते हुए दो साल कैद और तीन हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। इसी आधार पर 1 जून 2025 को उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी गई थी।
सदस्यता समाप्त होने के बाद चुनाव आयोग ने मऊ सदर सीट पर उपचुनाव की तैयारी भी शुरू कर दी थी।
हाई कोर्ट में चुनौती और फैसला
अब्बास अंसारी ने एमपी-एमएलए कोर्ट के फैसले को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी। उनकी तरफ से वरिष्ठ वकील उपेंद्र उपाध्याय ने दलील दी कि निचली अदालत ने तथ्यों और सबूतों की ठीक से पड़ताल नहीं की।
सरकार की ओर से महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्रा और अपर महाधिवक्ता एम.सी. चतुर्वेदी ने कोर्ट से एमपी-एमएलए कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने का विरोध किया।
हाई कोर्ट ने 30 जुलाई 2025 को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। और आखिरकार, 21 अगस्त 2025 को कोर्ट ने अब्बास अंसारी की याचिका स्वीकार करते हुए निचली अदालत का फैसला रद्द कर दिया।
विधानसभा सदस्यता बहाल
हाई कोर्ट के इस आदेश के बाद अब्बास अंसारी की विधानसभा सदस्यता स्वतः बहाल हो गई। इसका सीधा असर मऊ सदर विधानसभा क्षेत्र पर पड़ा, जहां उपचुनाव की तैयारी चल रही थी। अब चुनाव आयोग को उपचुनाव की घोषणा करने की आवश्यकता नहीं होगी।
समर्थकों में इस खबर के बाद से जश्न का माहौल है। मऊ और आसपास के इलाकों में अब्बास के समर्थक मिठाइयाँ बाँटते और पटाखे फोड़ते देखे गए।
राजनीतिक महत्व
इस फैसले का राजनीतिक असर भी गहरा माना जा रहा है।
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सुभासपा और अंसारी परिवार के लिए यह एक बड़ी राहत है, क्योंकि उपचुनाव की स्थिति में सीट विपक्ष के हाथ से जा सकती थी।
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सत्तारूढ़ दल भाजपा ने इस मामले को लेकर पहले ही विपक्ष पर हमले किए थे। अब फैसले के बाद भाजपा नेताओं की नजर कोर्ट के आदेश और इसके कानूनी पहलुओं पर है।
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समाजवादी पार्टी और कांग्रेस जैसे विपक्षी दल इस फैसले को “न्याय की जीत” बता रहे हैं।
समर्थकों की प्रतिक्रिया
अब्बास अंसारी के समर्थकों ने हाई कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। उनका कहना है कि यह फैसला जनता की उम्मीदों और विश्वास की जीत है। कई कार्यकर्ताओं ने सोशल मीडिया पर लिखा कि “सच की जीत हुई है, जनता का विधायक अब फिर से उनके साथ है।”
आगे की राह
हालांकि हाई कोर्ट का फैसला अब्बास अंसारी के लिए राहत लेकर आया है, लेकिन राजनीतिक और कानूनी मोर्चे पर उनके लिए चुनौतियाँ खत्म नहीं हुई हैं। प्रदेश सरकार इस मामले में आगे की कानूनी कार्रवाई कर सकती है।
इसके अलावा, आगामी विधानसभा सत्र में विपक्ष इस मुद्दे को भी जोर-शोर से उठा सकता है।
निष्कर्ष
इलाहाबाद हाई कोर्ट का यह फैसला न सिर्फ अब्बास अंसारी बल्कि पूरे प्रदेश की राजनीति के लिए अहम है। इससे मऊ सदर विधानसभा उपचुनाव टल गया है और विपक्ष को एक मनोवैज्ञानिक बढ़त भी मिली है। अब देखना होगा कि आने वाले समय में यह मामला किस दिशा में जाता है और इसका 2027 के विधानसभा चुनावों पर कितना असर पड़ता है।