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26 Jul 2025, Sat

किशनगंज में पहचान का संकट: “मेरे पूर्वज यहीं दफन हैं, फिर भी हमसे दस्तावेज़ क्यों मांगे जा रहे हैं?”

किशनगंज में पहचान का संकट: “मेरे पूर्वज यहीं दफन हैं, फिर भी हमसे दस्तावेज़ क्यों मांगे जा रहे हैं?”

सीमावर्ती किशनगंज में दस्तावेज़-पहचान का संकट: “हमारे पूर्वज यहीं दफ़न हैं, फिर भी हमें दस्तावेज़ देना क्यों?”

किशनगंज — नेपाल, पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश की सीमाओं से सटा बिहार का एक मुस्लिम बहुल जिला, जहां 70% से अधिक आबादी मुस्लिम, ग्रामीण जीवनशैली और सीमावर्ती स्थिति से प्रभावित है Navbharat Times+1The Times of India+1

🗳️ SIR: क्या है ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’?

चुनाव आयोग ने 24 जून 2025 को घोषणा की कि बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले Special Intensive Revision (SIR) यानी मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण किया जाएगा Navbharat Times+15Wikipedia+15Navbharat Times+15। इस प्रक्रिया में 2003 के बाद से जुड़े सभी मतदाताओं से पहचान दस्तावेज़ मांगे गए हैं। जिन्होंने एन्यूमरेशन फॉर्म भरा है, उनका नाम ड्राफ्ट सूची में शामिल होने की उम्मीद है India TodayThe Times of India

चुनाव आयोग के अनुसार, इस प्रक्रिया का उद्देश्य है मृत, प्रवासी, दोहराए गए या अवैध मतदाताओं को सूची से हटाना और केवल वैध नागरिकों को शामिल करना Navbharat Times+4The Economic Times+4Navbharat Times+4

⚠️ विपक्ष और विशेषकर सीमावर्ती मुस्लिम समुदाय की चिंताएं

  • भारी दस्तावेज़ीकरण की बाधा: जिनके नाम 2003 की सूची में नहीं थे, उनसे 11 प्रकार के दस्तावेज मांगे जा रहे हैं — जिनमें आधार, वोटर ID और राशन कार्ड को अपर्याप्त माना गया है Wikipedia

  • समय की कमी: सिर्फ़ एक महीने (25 जून से 25 जुलाई तक) में दस्तावेज जमा करने को कहा गया — खासकर सीमावर्ती और प्रवासी आबादी के लिए यह मुश्किल साबित हुआ है The Times of IndiaIndia Today

  • पहचान पर सवाल: स्थानीय मुस्लिम परिवारों का कहना है कि उनके पूर्वज पीढ़ियों से यहीं थे, फिर भी उनसे नागरिकता का सबूत मांगा जाना चिंता का विषय है।

🧓 शरीफ़ुद्दीन जैसे व्यक्तियों की कहानी

  • शरीफ़ुद्दीन, 80 वर्ष के, परिवार उसके पूर्वज स्थानीय हैं, लेकिन उन्हें पहचान पत्रों की कमी के कारण डर है कि उनका नाम सूची में नहीं आएगा।

  • जैनुल और आमिर जैसे बुजुर्ग भी दस्तावेज जमा करने में असमर्थ होने की स्थिति में भय से हैं कि उनकी नागरिकता पर प्रश्न उठ सकते हैं।

  • इन इलाकों में गतिविधि धीमी और जागरूकता कम होने की वजह से बहुत से लोग बीएलओ या फॉर्म भराई में पिछड़ गए।

  • हालाँकि ज़िलाधिकारी विशाल राज सिंह ने कहा है कि जो फॉर्म भरे गए हैं, उनका नाम ड्राफ्ट लिस्ट में ज़रूर आएगा, और कोई वैध नागरिक बाहर नहीं होगा Navbharat Times

📉 डेटा और प्रक्रिया की निष्पक्षता

  • 98%+ मतदात्‍ताओं के डेटा संकलित किया जा चुका है और लगभग 52 लाख मतदाता (6.6% चुनाव सूची) को उनके पते पर नहीं पाया गया—इनमें से 18 लाख मृत, 26 लाख स्थानांतरित, 7 लाख दो स्थानों पर पंजीकृत और 11 हजार अज्ञात मतदाता हैं Navbharat Times+3The Economic Times+3deccanchronicle.com+3

  • चुनाव आयोग ने कहा है कि यह प्रक्रिया संवैधानिक आधार पर हो रही है और कोई भी योग्‍य मतदाता बाहर नहीं रहेगा — हालाँकि विरोधी दलों ने इसे राजनीतिक रूप से लक्षित बताया है The Times of IndiaThe Economic TimesIndia Today

  • राज्‍य के JDU दल ने भी चुनाव आयोग पर आरोप लगाए हैं कि इस प्रक्रिया को मानसूनी मौसम में लागू करना समझदारी से खाली है, और यह प्रवासी तथा गरीब मतदाताओं को अलग कर सकता है The Times of India

🕊️ निष्कर्ष और सिफ़ारिशें

  1. प्रशासन को संवेदनशीलता से काम लेना चाहिए — सीमावर्ती मुस्लिम इलाकों में परिचय समेत लोग अनजान या असहज महसूस कर रहे हैं।

  2. अभियान के दौरान जनसंपर्क और मदद केंद्र बढ़ाए जाएँ — दस्तावेज़ जमा करने में सहायता, डिजिटल मार्गदर्शन और बीएलओ की जागरूकता जरूरी है।

  3. समय सीमा बढ़ाई जानी चाहिए — ताकि प्रवासी, बुजुर्ग और ग्रामीण मतदाता भी पूरी तरह फॉर्म भर सकें।

  4. विरोध की नहीं, संवाद की ज़रूरत — प्रशासन और समुदाय के बीच चर्चा से भरोसा बढ़ा जा सकता है।


🔗 संदर्भ (Out-links):

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