किस्मत का खेल या संयोग? राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति दोनों झारखंड के पूर्व राज्यपाल
भारत की राजनीति में कई बार ऐसे संयोग देखने को मिलते हैं, जो इतिहास में खास जगह बना लेते हैं। ऐसा ही एक अनोखा संयोग हाल ही में हुआ है। एनडीए उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन देश के 15वें उपराष्ट्रपति चुन लिए गए हैं। उनकी इस जीत के साथ ही झारखंड का नाम एक बार फिर राष्ट्रीय चर्चा में आ गया है। वजह है – राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति, दोनों का झारखंड से गहरा नाता होना।
उपराष्ट्रपति चुनाव में जीत
उपराष्ट्रपति चुनाव में सीपी राधाकृष्णन ने विपक्षी उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी को करारी शिकस्त दी। राधाकृष्णन को कुल 452 वोट मिले, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी को 300 वोट ही हासिल हुए। यह अंतर 152 मतों का रहा। बहुमत के लिए जहाँ 385 वोट की ज़रूरत थी, वहीं राधाकृष्णन को उससे 67 अधिक वोट मिले। इस जीत के साथ उन्होंने न केवल अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत की, बल्कि एनडीए की रणनीतिक जीत को भी सुनिश्चित किया।
उनकी जीत पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन समेत कई प्रमुख नेताओं ने बधाई दी।
झारखंड का अनोखा संयोग
सीपी राधाकृष्णन की जीत के बाद झारखंड की अहमियत और बढ़ गई है। देश के दो सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर बैठे नेता – राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति – दोनों कभी न कभी झारखंड के राज्यपाल रह चुके हैं।
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द्रौपदी मुर्मू: झारखंड की 9वीं राज्यपाल रहीं और उन्होंने लगभग 6 साल (2015 से 2021 तक) इस पद को संभाला।
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सीपी राधाकृष्णन: झारखंड के 11वें राज्यपाल रहे। उन्होंने 18 फरवरी 2023 से 30 जुलाई 2024 तक यानी करीब 1 साल 5 महीने 13 दिन तक राज्यपाल का कार्यभार संभाला।
यह शायद पहली बार है कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति, दोनों किसी एक ही राज्य के पूर्व राज्यपाल रहे हों। यह संयोग झारखंड के लिए गौरव का विषय है।
सीपी राधाकृष्णन का कार्यकाल झारखंड में
सीपी राधाकृष्णन ने झारखंड में राज्यपाल का पद संभालते ही शिक्षा और अनुसंधान की गुणवत्ता बढ़ाने पर विशेष जोर दिया। उन्होंने उच्च शिक्षा संस्थानों में शोध कार्य को प्रोत्साहन देने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए।
उनके कार्यकाल की एक बड़ी राजनीतिक घटना यह रही कि उन्होंने चंपाई सोरेन और बाद में हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई। राजनीतिक अस्थिरता के दौर में भी राधाकृष्णन ने राज्यपाल के रूप में संतुलित और निर्णायक भूमिका निभाई।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का योगदान
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का झारखंड से जुड़ाव और भी गहरा है। वे राज्य की पहली महिला राज्यपाल बनीं और लगातार 6 साल तक इस पद पर रहीं। उनके कार्यकाल को संवेदनशील और सशक्त प्रशासनिक निर्णयों के लिए जाना जाता है।
झारखंड के आदिवासी समुदाय से गहरा जुड़ाव रखने वाली द्रौपदी मुर्मू ने हमेशा हाशिए पर खड़े वर्गों की आवाज़ उठाई। आज वे देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति हैं।
झारखंड के लिए क्या मायने रखता है यह संयोग?
झारखंड एक अपेक्षाकृत नया राज्य है, जिसका गठन 2000 में हुआ था। अक्सर इसे राजनीतिक अस्थिरता और खनिज संपदा के दोहरे पहलू से जोड़ा जाता है। लेकिन राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च पदों पर झारखंड से जुड़े नेताओं की मौजूदगी, राज्य की राष्ट्रीय राजनीति में बढ़ती अहमियत को दर्शाती है।
यह झारखंड की राजनीतिक परिपक्वता और पहचान का भी संकेत है। यह राज्य केवल संसाधनों और खनिजों के लिए ही नहीं, बल्कि नेतृत्व क्षमता के लिए भी पहचाना जाने लगा है।
विपक्ष और सत्ता पक्ष के लिए संदेश
सीपी राधाकृष्णन की जीत से एक और बड़ा संदेश सामने आया है। यह दिखाता है कि एनडीए अभी भी विपक्ष की तुलना में मजबूत पकड़ बनाए हुए है। हालांकि, विपक्ष ने इस चुनाव को विचारधारा और संविधान बचाने की लड़ाई बताकर प्रचारित किया था, लेकिन मतों का अंतर साफ करता है कि संसद में विपक्ष की ताकत सीमित है।
भविष्य की राह
अब जबकि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन दोनों देश की राजनीति में सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर हैं, तो स्वाभाविक रूप से उनकी प्राथमिकता लोकतांत्रिक संस्थाओं को मज़बूत करना और देश को आगे ले जाना होगा।
झारखंड के लोग इस संयोग को गर्व की नज़र से देख रहे हैं। राज्य के इतिहास में यह क्षण सुनहरे अक्षरों में दर्ज होगा।
निष्कर्ष
सीपी राधाकृष्णन का उपराष्ट्रपति चुना जाना और द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति होना महज एक संयोग नहीं, बल्कि झारखंड की राजनीति और पहचान की मजबूती का प्रमाण है। यह झारखंड के लिए गौरव का विषय है कि आज देश के दो सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर वे नेता बैठे हैं, जिन्होंने राज्यपाल के रूप में झारखंड की सेवा की थी।