क्या संविधान की प्रस्तावना से हटेंगे ‘समाजवाद’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द? जानिए सरकार और RSS का रुख
भारत के संविधान की प्रस्तावना (Preamble) एक बार फिर राष्ट्रीय बहस के केंद्र में है। इस बार चर्चा का विषय है—क्या प्रस्तावना से ‘समाजवाद’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ (Secularism) जैसे शब्द हटाए जा सकते हैं?
जून 2025 में आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने एक बयान देकर इस बहस को हवा दी। उन्होंने सुझाव दिया कि इन शब्दों को संविधान से हटाने पर पुनर्विचार होना चाहिए, क्योंकि ये आपातकाल (1975-77) के दौरान 42वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़े गए थे, न कि संविधान सभा की मूल भावना के तहत।
🕰️ इतिहास: कैसे जोड़े गए ये शब्द?
भारत के संविधान की प्रस्तावना मूलतः ‘सम्पूर्ण प्रभुत्व-संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य’ को ही परिभाषित करती थी। लेकिन 1976 में 42वें संशोधन के तहत इसमें ‘समाजवादी’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द जोड़े गए।
42वें संविधान संशोधन के बारे में पढ़ें (PRS Legislative Research)
इन शब्दों को उस दौर की राजनीति के प्रभाव में जोड़ा गया था, लेकिन तब से लेकर अब तक ये भारतीय राज्य की वैचारिक पहचान का हिस्सा बन चुके हैं।
🗣️ RSS का रुख: बदलाव की वकालत
RSS के वरिष्ठ नेता होसबले ने कहा था कि इन शब्दों की मौलिकता पर विचार करना चाहिए। उनके अनुसार, “संविधान सभा ने इन शब्दों को जानबूझकर शामिल नहीं किया था, इसलिए मौजूदा समय में इस पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है।”
इस बयान को कुछ भाजपा नेताओं का समर्थन भी मिला। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा था कि “अब इन शब्दों को हटाने का सुनहरा मौका है।”
यह स्पष्ट करता है कि RSS इन शब्दों को विचारधारा से जोड़कर देखता है और उसका मत है कि इनका संविधान में अनिवार्य रूप से होना जरूरी नहीं है।
🏛️ सरकार का रुख: हटाने की कोई योजना नहीं
हालाँकि, केंद्र सरकार ने इस विषय पर स्पष्ट और ठोस रुख अपनाया है। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने राज्यसभा में लिखित उत्तर में कहा कि सरकार को संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवाद’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द हटाने की कोई मंशा नहीं है।
उन्होंने स्पष्ट किया:
“सरकार ने इस संबंध में कोई प्रक्रिया शुरू नहीं की है, और ऐसे किसी संशोधन के लिए व्यापक विचार-विमर्श, सहमति और संविधानिक प्रक्रिया की जरूरत होगी।”
यह जवाब राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन के प्रश्न के उत्तर में दिया गया था।
⚖️ सुप्रीम कोर्ट की भूमिका और रुख
कानून मंत्री ने नवंबर 2024 में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया, जो डॉ. बलराम सिंह व अन्य बनाम भारत संघ मामले में आया था। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 42वें संशोधन को बरकरार रखा और स्पष्ट किया कि:
-
‘समाजवादी’ शब्द भारत को एक कल्याणकारी राज्य के रूप में दर्शाता है।
-
‘पंथनिरपेक्षता’ संविधान का एक अभिन्न और मूलभूत हिस्सा है।
यह फैसला बताता है कि न्यायपालिका ने इन शब्दों को न केवल वैध माना है, बल्कि उन्हें संविधान के मूल ढांचे (Basic Structure Doctrine) का हिस्सा माना है।
पूरा फैसला सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर पढ़ें
🧩 वर्तमान स्थिति: बहस और भ्रम के बीच संतुलन
इस पूरे मुद्दे में एक बात साफ है—RSS और सरकार का रुख समान नहीं है। एक ओर RSS विचारधारात्मक बहस की पैरवी कर रहा है, वहीं दूसरी ओर सरकार इस मुद्दे से दूरी बनाए हुए है और कोई भी आधिकारिक कदम नहीं उठाना चाहती।
सरकार ने साफ किया है कि:
-
संविधान संशोधन की कोई प्रक्रिया शुरू नहीं की गई है।
-
प्रस्तावना में बदलाव की कोई योजना नहीं है।
-
बदलाव के लिए व्यापक चर्चा और राष्ट्रीय सहमति जरूरी होगी।
🧠 निष्कर्ष: क्या वास्तव में हटेंगे ये शब्द?
फिलहाल न तो सरकार और न ही संसद में ऐसा कोई कदम उठाया गया है जिससे यह लगे कि संविधान की प्रस्तावना से समाजवाद और पंथनिरपेक्षता हटाए जा सकते हैं।
हालाँकि, विचारधारा आधारित चर्चा और राजनीतिक बयानबाज़ी इस विषय को बार-बार उभारते हैं। ऐसे में नागरिकों का यह जानना जरूरी है कि कानूनन बदलाव तभी संभव है जब संसद दो-तिहाई बहुमत से संशोधन पारित करे और राष्ट्रपति उसे मंजूरी दें।
संविधान का मूल स्वरूप समय के साथ बदल सकता है, लेकिन संविधान के मूल ढाँचे को कोई भी सरकार या संस्था एकतरफा नहीं बदल सकती। ‘समाजवाद’ और ‘पंथनिरपेक्षता’ जैसे शब्द भारत की लोकतांत्रिक आत्मा से जुड़े हुए हैं और उनके भविष्य पर फैसला केवल संसद या अदालत नहीं, बल्कि जनता की सम्मिलित चेतना से ही होगा।