दूसरा घर खरीदना एक गलत निवेश? जाने क्यों सीए पारस गंगवाल ने दी यह चेतावनी
वर्तमान समय में रियल एस्टेट को निवेश का एक प्रमुख विकल्प माना जाता है। बहुत से लोग यह सोचते हैं कि पहला घर रहने के लिए और दूसरा किराये पर देने या भविष्य के लिए सुरक्षित निवेश के तौर पर खरीदा जा सकता है। लेकिन इस सोच को लेकर अब चर्चाएं तेज हो गई हैं, क्योंकि चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) पारस गंगवाल ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में स्पष्ट किया है कि दूसरा घर खरीदना आर्थिक रूप से बुद्धिमानी नहीं है। उनके मुताबिक, यह निर्णय कई बार निवेशक को नुकसान की ओर भी ले जा सकता है।
सीए पारस गंगवाल की चेतावनी: “दूसरा घर एक भ्रम है”
सीए पारस गंगवाल ने लिखा,
“दूसरा घर सुनने में फैन्सी लगता है कि लेकिन सच्चाई थोड़ी अलग है। किराए से होने वाली कमाई मामूली होती है, लोन इंटरेस्ट लगभग 8% होता है और मेंटेनेंस भी महंगा पड़ता है।”
उनके इस बयान ने सोशल मीडिया पर बहस को जन्म दे दिया है। लोगों ने इस पर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं दीं। आइए समझते हैं उनके दावे के पीछे की सच्चाई और तर्क।
क्यों नहीं खरीदना चाहिए दूसरा घर?
1. किराए से होने वाली कमाई कम होती है
जब हम दूसरा घर किराये के उद्देश्य से खरीदते हैं, तो हमारा मुख्य लक्ष्य होता है नियमित आय अर्जित करना। लेकिन CA गंगवाल के अनुसार,
“भारत में रेंटल यील्ड (Rental Yield) औसतन 2% से 3% होती है, जबकि होम लोन का ब्याज 8% या उससे ऊपर होता है।”
इसका मतलब है कि जितना पैसा आप ब्याज में चुका रहे हैं, उसका आधा भी किराए से वापस नहीं आ रहा है। यह निवेश की दृष्टि से घाटे का सौदा हो सकता है।
2. मेंटेनेंस और अन्य खर्चे
दूसरा घर खरीदने के बाद उसका रखरखाव (मेंटेनेंस), सोसाइटी चार्जेज, प्रॉपर्टी टैक्स और समय-समय पर मरम्मत में भी अच्छा-खासा पैसा खर्च होता है। अगर किरायेदार समय पर किराया नहीं देता या घर खाली पड़ा रहता है, तो नुकसान और भी बढ़ जाता है।
3. रीसेल वैल्यू में अनिश्चितता
रियल एस्टेट को लेकर एक आम धारणा है कि इसका दाम समय के साथ बढ़ता ही है। लेकिन हाल के वर्षों में कई जगहों पर प्रॉपर्टी की कीमतें स्थिर रही हैं या गिरावट आई है। यह धारणा अब हर जगह सच नहीं है। ऐसे में अगर आपने घर निवेश के नजरिए से खरीदा है और वह वैल्यू नहीं बढ़ा पाया तो यह पैसा फंसने जैसा है।
4. लिक्विड एसेट्स बनाम फिक्स्ड एसेट्स
सीए गंगवाल ने कहा,
“अमीर लोग पैसा बढ़ाने वाले एसेट्स खरीदते हैं… वे पुताई कराने के लिए एक्स्ट्रा दीवारें नहीं खरीदते।”
इसका अर्थ है कि संपत्ति का वह रूप जो तुरंत कैश में बदला जा सके (लिक्विड एसेट), ज्यादा बेहतर होता है। जबकि प्रॉपर्टी जैसे फिक्स्ड एसेट को बेचना आसान नहीं होता, और इसमें समय व कानूनी प्रक्रियाएं जुड़ी होती हैं।
क्या दूसरा घर कभी सही विकल्प हो सकता है?
हालांकि सभी परिस्थितियों में दूसरा घर खरीदना गलत नहीं होता। कुछ विशेष स्थितियों में यह फायदेमंद हो सकता है:
- यदि प्रॉपर्टी बहुत ही प्राइम लोकेशन में है जहां रेंटल डिमांड लगातार बनी रहती है।
- यदि आप बिना लोन लिए कैश में घर खरीद सकते हैं।
- यदि आप लंबे समय तक उस घर को होल्ड कर सकते हैं और टैक्स बेनिफिट्स उठाना चाहते हैं।
- यदि वह प्रॉपर्टी आपकी सेवानिवृत्ति के बाद के रहने के उद्देश्य से है।
विशेषज्ञों की राय
रियल एस्टेट विशेषज्ञ भी इस बहस में कूद पड़े हैं। उनके मुताबिक,
“दूसरा घर खरीदने से पहले आपकी प्राथमिकता होनी चाहिए कि पहला घर पूरी तरह से लोन मुक्त हो और आपके पास इमरजेंसी फंड, हेल्थ इंश्योरेंस और अन्य निवेश पहले से हों। तब जाकर दूसरा घर एक सुरक्षित विकल्प माना जा सकता है।”
निष्कर्ष: भावना से नहीं, समझदारी से करें निवेश
सीए पारस गंगवाल की राय हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या सिर्फ समाजिक प्रतिष्ठा या किराये की मामूली कमाई के लिए लाखों-करोड़ों रुपये प्रॉपर्टी में फंसा देना एक समझदारी भरा फैसला है?
दूसरा घर खरीदने का निर्णय सिर्फ भावनाओं या ट्रेंड को देखकर न लें, बल्कि उसके आर्थिक लाभ-हानि का पूरा विश्लेषण करें। जरूरी नहीं कि हर प्रॉपर्टी भविष्य में आपकी पूंजी को बढ़ाए — कभी-कभी यह बोझ भी बन सकती है।