जमीन खरीदने से पहले किन बातों का रखें ध्यान? प्रभात खबर ऑनलाइन लीगल काउंसलिंग में अधिवक्ता की अहम सलाह
बोकारो : प्रभात खबर की ऑनलाइन लीगल काउंसलिंग में इस बार पाठकों ने जमीन विवाद से लेकर घरेलू विवाद, साइबर फ्रॉड और पुलिस व्यवहार से जुड़े कई सवाल पूछे। इन सवालों का जवाब बोकारो के अधिवक्ता सह बोकारो जिला अधिवक्ता संघ के संयुक्त सचिव (पुस्तकालय) अतुल कुमार रवानी ने दिया। उन्होंने साफ कहा कि छोटे-छोटे विवादों में तुरंत कोर्ट का सहारा लेने के बजाय सामाजिक स्तर पर समाधान ढूंढना चाहिए। वहीं, जमीन खरीदने या कब्जा करने से पहले पूरी कानूनी छानबीन जरूरी है, ताकि भविष्य में किसी भी तरह की कानूनी दिक्कत न हो।
जमीन खरीदते समय बरतें सावधानी
अधिवक्ता रवानी ने बताया कि गैरमजरूआ जमीन या वनभूमि पर कब्जा करना पूरी तरह गैरकानूनी है। अगर कोई ऐसी जमीन पर अतिक्रमण करता है, तो कभी भी प्रशासनिक कार्रवाई हो सकती है। इसलिए, कोई भी जमीन लेने से पहले सीओ कार्यालय से पूरी जानकारी लें। खासकर अपरिचित लोगों से जमीन खरीदने के मामले में सभी कागजातों की गहन छानबीन जरूरी है।
उनका कहना था कि अक्सर लोग सस्ते दाम या लालच में फंसकर जमीन खरीद लेते हैं और बाद में लंबी कानूनी लड़ाई झेलनी पड़ती है। इसलिए बेहतर यही है कि शुरुआत से ही हर पहलू को ध्यान से जांचें।
छोटे विवादों में कोर्ट का सहारा न लें
अधिवक्ता ने कहा कि जमीन विवाद, घरेलू हिंसा या आपसी झगड़े जैसे छोटे मामलों को पहले सामाजिक स्तर पर सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए। सीधे कोर्ट जाने से मामला वर्षों तक खिंच सकता है और कोर्ट पर भी अतिरिक्त बोझ बढ़ता है। अगर आपसी बातचीत और सामाजिक प्रयासों से समाधान न मिले, तभी न्यायालय का सहारा लेना चाहिए।
पाठकों के सवाल और वकील की सलाह
1. पत्नी बार-बार मायके चली जाती है, क्या करें?
प्रश्न (अमर कुमार, धनबाद): मेरी पत्नी बार-बार मायके चली जाती है, जिससे घर में परेशानी हो रही है। क्या कर सकता हूं?
अधिवक्ता की सलाह: संभव है कि पत्नी को ससुराल में कोई समस्या हो, जिसे वह बताने में सहज न हो। ऐसे में बैठकर बातचीत से समाधान निकालने की कोशिश करें। अगर मामला नहीं सुलझता है, तो कोर्ट जा सकते हैं। लेकिन हर छोटी बात के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाना उचित नहीं है।
2. घर का बंटवारा कैसे करें?
प्रश्न (विजय कुमार, गिरिडीह): घर में जमीन का बंटवारा करना चाहता हूं। क्या आपसी समझौता काफी होगा या कागजी कार्रवाई जरूरी है?
अधिवक्ता की सलाह: आपसी समझौता करना अच्छी बात है, लेकिन उसके बाद भी कोर्ट से कागजात बनवाना जरूरी है। इससे आने वाली पीढ़ी को विवाद से बचाया जा सकता है।
3. कोर्ट में फैसला मेरे पक्ष में है, फिर भी विरोधी पक्ष ने दोबारा केस किया है। क्या करें?
प्रश्न (विनीत कुमार, धनबाद): जमीन विवाद में मुझे कोर्ट से न्याय मिला था, लेकिन विरोधी पक्ष ने दोबारा केस कर दिया है। अब क्या होगा?
अधिवक्ता की सलाह: हर व्यक्ति को कोर्ट जाने का अधिकार है। यदि आपके पास सही दस्तावेज और पहले का फैसला है, तो परेशान होने की जरूरत नहीं है। कोर्ट में पेश होकर मामला फिर से आपके पक्ष में ही जाएगा।
4. चेक बाउंस हो गया, अब क्या करें?
प्रश्न (संजय यादव, धनबाद): मैंने किसी को एक लाख रुपये दिए थे। उसने चेक से लौटाया, लेकिन वह बाउंस हो गया। अब क्या करना चाहिए?
अधिवक्ता की सलाह: पहले आपसी बातचीत से हल निकालने की कोशिश करें। अगर यह संभव न हो, तो कोर्ट का सहारा लें। कानूनन आपका पैसा आपको वापस मिलेगा।
5. फोन-पे से पैसे गायब हो रहे हैं, क्या करें?
प्रश्न (बबन यादव, बोकारो): मेरे फोन-पे से अचानक रुपये गायब हो रहे हैं। क्या कर सकता हूं?
अधिवक्ता की सलाह: बोकारो के सेक्टर वन में साइबर थाना है। वहां जाकर आवेदन दें और पूरी जानकारी साझा करें। साथ ही फोन-पे की सेटिंग्स जांचें और जरूरत हो तो मोबाइल को रीसेट करके ऐप को फिर से इंस्टॉल करें।
6. पुलिस अधिकारी गाली-गलौज करें तो क्या करें?
प्रश्न (सरविंद कुमार, गोमिया): क्या कोई पुलिस अधिकारी बिना कारण गाली-गलौज कर सकता है?
अधिवक्ता की सलाह: किसी को यह अधिकार नहीं है। अगर ऐसी स्थिति हो तो वरीय पुलिस अधिकारी से शिकायत करें। सुनवाई न होने पर कोर्ट जा सकते हैं।
7. नाम किसी और का, लेकिन जमीन बेच दी किसी और ने – क्या जमीन वापस मिलेगी?
प्रश्न (रंजीत कुमार, बोकारो): खतियान में छोटे बेटे का नाम है, लेकिन बड़े बेटे के पुत्र ने जमीन बेच दी। क्या जमीन वापस पाई जा सकती है?
अधिवक्ता की सलाह: जमीन बेचने का अधिकार केवल उसी का है, जिसके नाम पर जमीन दर्ज है। अगर किसी और ने बेचा है, तो उसका कोई कानूनी महत्व नहीं है। कोर्ट में आवेदन देकर आप अपने हक की जमीन वापस पा सकते हैं।
निष्कर्ष
इस ऑनलाइन लीगल काउंसलिंग से यह साफ संदेश मिला कि जमीन खरीदने से पहले पूरी कानूनी छानबीन जरूरी है। गैरकानूनी या संदिग्ध जमीन लेने पर भविष्य में न सिर्फ आर्थिक नुकसान होता है, बल्कि लंबी कानूनी लड़ाई भी लड़नी पड़ती है।
साथ ही, छोटे-छोटे विवादों को सामाजिक स्तर पर निपटाना ही समझदारी है। कोर्ट अंतिम विकल्प होना चाहिए, पहला नहीं।