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22 Jul 2025, Tue

“झारखंड में अवैध खनन का कहर: सरकार को करोड़ों का घाटा, तस्कर बना रहे काला धन”

झारखंड में अवैध खनन की अंधी दौड़: जंगल उजड़ रहे, गरीब मर रहे और तस्कर बन रहे मालामाल

क्योंझर जिले के जोड़ा खनिज अंचल में अवैध खनन का खेल दिन-ब-दिन विकराल होता जा रहा है। सरकार की सख्ती, वन विभाग की चेतावनियां और गश्त के बावजूद आरक्षित वनों में खनिजों की तस्करी नहीं रुक रही है। मैगनीज, मुरम और पत्थरों की लूट ने ना केवल प्राकृतिक संसाधनों को क्षति पहुंचाई है, बल्कि गरीब मजदूरों की जान भी खतरे में डाल दी है।

मौत बनकर टूट रहा है खनन

हाल ही में जोड़ा थाना क्षेत्र के बैतरणी आरक्षित वन में एक खौफनाक घटना सामने आई। अवैध मैगनीज खनन के दौरान हुए भूस्खलन में तीन दिहाड़ी मजदूरों की मौत हो गई। यह सिर्फ एक उदाहरण है, ऐसी घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं, जहां गरीब मजदूर जान हथेली पर रखकर चंद पैसों के लिए अवैध खदानों में काम करते हैं – और अंततः तस्करों के मुनाफे का शिकार बन जाते हैं।

लाखों का नुकसान, करोड़ों की कमाई

सरकारी आंकड़ों की मानें तो अवैध खनन से सरकार को करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान हो चुका है। वहीं, ये तस्कर ट्रैक्टरों, ट्रकों और जीपों के ज़रिए अयस्क और मुरूम को दूसरे राज्यों तक पहुंचाकर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। एक तरफ़ जंगल उजड़ रहे हैं, तो दूसरी तरफ़ पर्यावरण और वन्यजीवों पर भी इसका गहरा असर पड़ रहा है।

वन विभाग की भूमिका पर उठ रहे सवाल

राउरकेला के क्षेत्रीय मुख्य वन संरक्षक ने अप्रैल 2025 में सभी डीएफओ को रात में गश्त बढ़ाने के आदेश दिए थे। साथ ही, ओनलाइन वन निगरानी प्रणाली (OWS) का उपयोग कर साप्ताहिक रिपोर्ट भेजने को भी कहा गया। फिर भी चंपुआ, बड़बिल, तेलकोई और अन्य क्षेत्रों में अवैध खनन धड़ल्ले से जारी है। सवाल उठता है कि क्या वन विभाग सच में निगरानी कर रहा है या फिर महज़ कागजी खानापूरी हो रही है?

किसका जंगल, किसका हक?

सबसे दर्दनाक पहलू यह है कि जब भी छापेमारी होती है, तो बड़े तस्कर बच निकलते हैं और सज़ा भुगतनी पड़ती है उन गरीब मजदूरों को, जो केवल दो वक्त की रोटी के लिए इस जोखिम भरे काम में लगे होते हैं। उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया जाता है, जबकि असली गुनहगार खुलेआम घूमते हैं और मुनाफा कमाते हैं।


समाप्ति: जंगलों की पुकार कौन सुनेगा?

झारखंड जैसे खनिज संपन्न राज्य में यदि अवैध खनन पर अब भी लगाम नहीं लगी, तो आने वाले समय में न केवल पर्यावरण संकट और गहरा होगा, बल्कि सामाजिक असमानता भी चरम पर पहुंचेगी। ज़रूरत है सख्त निगरानी, ईमानदार प्रशासन और स्थानीय समुदायों को न्याय दिलाने की।

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