झारखंड में आसमानी बिजली का कहर, पांच साल में 1700 से अधिक मौतें
झारखंड में आसमानी बिजली (Lightning Strike) का कहर लगातार लोगों की जान ले रहा है। मानसून और प्री-मानसून के मौसम में वज्रपात से मौत की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। पिछले पांच सालों में ही इस प्राकृतिक आपदा से करीब 1700 से अधिक लोगों की जान चली गई है। केवल वर्ष 2025 में अब तक 190 मौतें दर्ज की जा चुकी हैं। यह स्थिति झारखंड को देश के सबसे संवेदनशील राज्यों में खड़ा करती है, जहां वज्रपात जानलेवा साबित हो रहा है।
वज्रपात से मौतों का डरावना आँकड़ा
राजधानी रांची और राज्य के अन्य जिलों से लगातार घटनाएं सामने आ रही हैं। हाल ही में रांची जिले में स्कूल जाती तीन बच्चियां वज्रपात की चपेट में आ गईं। यह घटना दिखाती है कि यह संकट कितना भयावह है।
पिछले पाँच वर्षों में मौतों का आँकड़ा इस प्रकार रहा:
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2020 – 336 मौतें
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2021 – 283 मौतें
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2022 – 296 मौतें
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2023 – 303 मौतें
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2024 – 322 मौतें
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2025 (अब तक) – 190 मौतें
कुल मिलाकर 1,730 से अधिक मौतें दर्ज हो चुकी हैं।
किस जिले में कितनी मौतें हुईं?
वर्ष 2025 में अब तक जिला-वार स्थिति भी चिंता बढ़ाने वाली है। आंकड़े साफ बताते हैं कि झारखंड का कोई जिला वज्रपात से अछूता नहीं है।
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गुमला – 35 मौतें (सबसे अधिक)
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हजारीबाग – 17 मौतें
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पलामू – 18 मौतें
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रांची – 14 मौतें
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प. सिंहभूम – 12 मौतें
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बोकारो, लातेहार, कोडरमा – 9-9 मौतें
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गढ़वा – 10 मौतें
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जामताड़ा – 7 मौतें
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पू. सिंहभूम – 7 मौतें
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लोहरदगा – 6 मौतें
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दुमका – 6 मौतें
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गिरिडीह – 5 मौतें
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चतरा – 5 मौतें
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पाकुड़ – 4 मौतें
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सरायकेला-खरसावां – 3 मौतें
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सिमडेगा – 3 मौतें
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देवघर – 3 मौतें
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गोड्डा – 3 मौतें
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खूंटी – 2 मौतें
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रामगढ़ – 2 मौतें
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धनबाद – 1 मौत
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साहिबगंज – 1 मौत
यह आँकड़े बताते हैं कि वज्रपात झारखंड के लिए एक राज्यव्यापी आपदा बन चुकी है।
मुआवजे में रुकावट: पोस्टमार्टम की अनिवार्यता
राज्य सरकार ने आपदा पीड़ित परिवारों के लिए मुआवजे का प्रावधान किया है—
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मृतक के परिजनों को 4 लाख रुपये
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घायलों को 2 लाख रुपये तक
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मकान के नुकसान पर 2,100 से 95,000 रुपये तक
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मवेशियों की मौत पर 3,000 से 30,000 रुपये तक
लेकिन समस्या यह है कि कई समुदाय, खासकर आदिवासी और मुस्लिम समाज, वज्रपात से हुई मौत के बाद पोस्टमार्टम नहीं कराते। इस कारण पीड़ित परिवारों को मुआवजे का लाभ नहीं मिल पाता। विधानसभा में विधायक मथुरा महतो और मंत्री डॉ. इरफान अंसारी ने इस मुद्दे को उठाते हुए कहा था कि सरकार को नियमों में लचीलापन लाने पर विचार करना चाहिए।
सरकार के प्रयास
आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव राजेश कुमार शर्मा ने स्वीकार किया कि झारखंड में वज्रपात एक बड़ी आपदा है। उन्होंने बताया कि—
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कई जिलों में जागरूकता रथ निकाले गए हैं।
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संवेदनशील स्थानों की पहचान कर विशेष तैयारी की जा रही है।
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आपदा अलर्ट देने वाले मोबाइल ऐप और तकनीकी साधनों का इस्तेमाल बढ़ाया जा रहा है।
इन प्रयासों का उद्देश्य यह है कि लोग समय रहते सतर्क होकर सुरक्षित स्थानों पर पहुंच जाएं और जान-माल की क्षति कम हो।
विशेषज्ञों की राय
आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ कर्नल संजय श्रीवास्तव का कहना है कि झारखंड में वज्रपात की समस्या को केवल छोटे स्तर की कोशिशों से नहीं रोका जा सकता। इसके लिए विशेष दीर्घकालिक योजना की जरूरत है।
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जिलों में मजबूत आपदा प्रबंधन टीम बनानी होगी।
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ग्रामीण इलाकों में बिजली गिरने से बचाव के लिए लाइटनिंग प्रोटेक्शन सिस्टम लगाना होगा।
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स्कूलों और पंचायत स्तर पर सुरक्षा प्रशिक्षण जरूरी है।
क्यों है झारखंड इतना संवेदनशील?
विशेषज्ञ बताते हैं कि झारखंड में घने जंगल, खुले मैदान और ऊँचे पेड़ों की अधिकता के कारण यह इलाका बिजली गिरने के लिहाज से ज्यादा संवेदनशील है। मानसून के दौरान नमी और बादलों की असमान गतिविधियां यहां वज्रपात की घटनाओं को बढ़ा देती हैं।
निष्कर्ष
झारखंड में वज्रपात अब केवल मौसमी घटना नहीं रह गया है, बल्कि यह एक बड़ी आपदा का रूप ले चुका है। हर साल सैकड़ों लोग इसकी चपेट में आकर जान गंवा रहे हैं। सरकार की ओर से मुआवजे और जागरूकता के प्रयास जरूर हो रहे हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि जमीनी स्तर पर ठोस तैयारी के बिना इस समस्या को नियंत्रित करना मुश्किल है।
जरूरत है कि लोग भी सतर्क रहें, अलर्ट ऐप का इस्तेमाल करें और खराब मौसम के दौरान खुले मैदान, पेड़ों या ऊँचे स्थानों पर खड़े होने से बचें। तभी झारखंड इस आसमानी आफत से होने वाले नुकसान को कम कर सकेगा।