झारखंड के खेत में निकली 1200 साल पुरानी मूर्ति: इतिहास, आस्था और संरक्षण पर उठे सवाल
साहिबगंज (झारखंड) | जुलाई 2025
झारखंड के साहिबगंज जिले से एक ऐतिहासिक और आस्था से जुड़ी बड़ी खबर सामने आई है। बरहरवा प्रखंड के कमालपुर गांव में खेत की खुदाई के दौरान एक प्राचीन मूर्ति प्राप्त हुई है, जिसकी आयु लगभग 1200 से 1300 वर्ष आंकी जा रही है। यह मूर्ति मिलने के बाद न सिर्फ ग्रामीणों में धार्मिक उत्साह उमड़ पड़ा है, बल्कि पुरातत्व और इतिहास के जानकारों की भी दिलचस्पी बढ़ गई है।
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खेत की खुदाई में मिला ऐतिहासिक खजाना
यह घटना तब सामने आई जब गांव के एक किसान अपने खेत में सामान्य जुताई कार्य कर रहा था। खुदाई के दौरान उसे कठोर पत्थर का कुछ हिस्सा दिखाई दिया। जब स्थानीय लोगों ने मिलकर उस हिस्से को बाहर निकाला, तो वे स्तब्ध रह गए — यह कोई साधारण पत्थर नहीं, बल्कि काले पाषाण की बनी एक सुंदर और जटिल नक्काशीदार मूर्ति थी।
मूर्ति की ऊँचाई करीब 3 फीट है और इसमें कई देवी-देवताओं की आकृतियाँ उकेरी गई हैं। मूर्ति की बनावट और कलाकृति इसे पाली या प्रारंभिक मध्यकालीन काल की ओर संकेत करती है।
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ग्रामीणों ने शुरू की पूजा, उमड़ी भीड़
मूर्ति के बाहर आते ही गांव में धार्मिक भावनाओं का सैलाब उमड़ पड़ा। ग्रामीणों ने इसे दैवीय चमत्कार मानकर पूजा शुरू कर दी है। आसपास के गांवों से भी लोग मूर्ति के दर्शन के लिए आने लगे हैं। खेत के पास ही एक अस्थायी मंडप बनाकर मूर्ति को स्थापित किया गया है और नित्य पूजा-अर्चना की जा रही है।
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पुरातत्वविदों की राय: मूल्यवान धरोहर
डॉ. रंजीत कुमार सिंह, जो एक प्रमुख पुरातत्व विशेषज्ञ हैं, उन्होंने स्थल का दौरा करने के बाद कहा:
> “यह मूर्ति लगभग 1200 से 1300 साल पुरानी प्रतीत होती है और संभवतः पाल वंश या उसके बाद के काल से संबंधित हो सकती है। इसकी स्थापत्य शैली और शिल्पकारी अत्यंत दुर्लभ है। यह मूर्ति केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी बहुत मूल्यवान है।”
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मूर्ति में क्या है विशेष?
मूर्ति पर की गई नक्काशी को देखकर विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया कि यह शक्तिसाधना या तांत्रिक परंपरा से जुड़ी कोई देवता हो सकती है। इसमें कई हाथ, मुख और शस्त्र दिखाई दे रहे हैं जो इसे एक शक्तिशाली देवी या युद्ध देवी की प्रतीक बनाते हैं। मूर्ति के शीर्ष भाग में एक त्रिशूल, नीचे की ओर पद्मासन, और चारों ओर गणों या उपदेवताओं की आकृतियाँ हैं।
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प्रशासन ने संभाली कमान
जैसे-जैसे खबर फैलती गई, ग्रामीणों की भीड़ बढ़ने लगी। इससे सुरक्षा और संरक्षण का मुद्दा खड़ा हो गया। इसके बाद स्थानीय प्रशासन और पुलिस बल ने स्थल को अपने नियंत्रण में लिया। जिला प्रशासन ने पुरातत्व विभाग को सूचित कर विशेषज्ञों की एक टीम भेजी है, ताकि मूर्ति का उचित मूल्यांकन और संरक्षण किया जा सके।
एक प्रशासनिक अधिकारी ने बताया:
> “हमने स्थल को घेर लिया है और 24 घंटे निगरानी रखी जा रही है। जल्द ही इसे संग्रहालय या सुरक्षित स्थान पर शिफ्ट किया जाएगा, ताकि इसका क्षरण न हो।”
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क्या यह एक प्राचीन मंदिर का हिस्सा थी?
मूर्ति की बनावट और उसके आसपास की ज़मीन को देखकर ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि यह मूर्ति किसी पुराने मंदिर परिसर का हिस्सा हो सकती है, जो समय के साथ भूमिगत हो गया। इतिहासकारों ने संकेत दिया कि हो सकता है यह क्षेत्र कभी बौद्ध या हिंदू उपासना केंद्र रहा हो।
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ग्रामीणों की भावनाएँ: “यह देवी का चमत्कार है”
गांव की बुज़ुर्ग महिला सुनरी देवी का कहना है:
> “यह मूर्ति कोई आम पत्थर नहीं है। यह हमारी देवी हैं। गांव में सुख-शांति बनी रहेगी।”
कुछ ग्रामीणों ने मांग की है कि मूर्ति को कहीं और ना ले जाया जाए और स्थानीय मंदिर में ही स्थापित किया जाए।
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क्या कहता है भारतीय पुरातत्व कानून?
भारतीय पुरातत्व अधिनियम के अनुसार, 100 वर्ष से पुरानी कोई भी वस्तु जिसे खुदाई में पाया गया हो और जो ऐतिहासिक महत्व रखती हो, वह राष्ट्रीय धरोहर मानी जाती है। ऐसी स्थिति में सरकार उसका संरक्षण अपने हाथ में ले सकती है और उसे राष्ट्रीय संग्रहालय या ट्रस्ट को सौंप सकती है।
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निष्कर्ष: इतिहास और आस्था का संगम
कमालपुर गांव की यह घटना सिर्फ एक धार्मिक चमत्कार नहीं, बल्कि हमारे भूगर्भ में छिपे इतिहास की झलक भी है। यह मूर्ति आने वाली पीढ़ियों को हमारे समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक अतीत की जानकारी दे सकती है। प्रशासन और पुरातत्व विभाग यदि मिलकर इसका संरक्षण करें, तो यह मूर्ति झारखंड के लिए एक आध्यात्मिक और पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो सकती है।