दिल्ली के ‘द बिग चिल’ कैफे की प्रेम कहानी: कैसे एक जोड़े ने शुरू किया ₹150 करोड़ सालाना कमाई वाला कैफे ब्रांड
नई दिल्ली | 28 जुलाई 2025
भारत की राजधानी दिल्ली की सड़कों पर एक ऐसा कैफे है जो न केवल स्वादिष्ट खाने के लिए जाना जाता है, बल्कि एक खूबसूरत प्रेम कहानी का भी प्रतीक बन गया है। हम बात कर रहे हैं ‘द बिग चिल कैफे’ (The Big Chill Café) की — जिसकी शुरुआत साल 2000 में एक भारतीय-ब्रिटिश जोड़े ने की थी और जो आज सालाना ₹150 करोड़ की कमाई कर रहा है।
इसकी शुरुआत सिर्फ एक रेस्तरां नहीं थी, यह एक सपने की उड़ान थी, जिसमें प्यार, जुनून, और क्वालिटी के प्रति अटूट निष्ठा छिपी थी। इस कहानी के पीछे हैं — पूर्व सैन्य अधिकारी असीम ग्रोवर और उनकी ब्रिटिश-भारतीय पत्नी फौजिया अहमद, जिन्होंने अपने रिश्ते और सपनों को एकजुट कर इस ब्रांड को जन्म दिया।
प्रेम से शुरू, ब्रांड तक की यात्रा
1990 के दशक के अंत में, असीम ग्रोवर और फौजिया अहमद की मुलाकात एक सामान्य सी घटना के तौर पर हुई, लेकिन यह रिश्ता जल्द ही प्यार में बदल गया। दोनों को खाने का बेहद शौक था, खासकर यूरोपीय और इटालियन भोजन का। वहीं, दिल्ली में ऐसे कैफे की कमी थी जो स्वाद के साथ-साथ माहौल और गुणवत्ता में भी खास हो।
दोनों ने तय किया कि वे कुछ ऐसा बनाएंगे जो दिल्ली के खानपान के नक्शे पर एक नई पहचान स्थापित करे — एक ऐसी जगह जहां लोग सिर्फ खाने नहीं, अनुभव लेने आएं।
‘द बिग चिल’ की शुरुआत
साल 2000 में दिल्ली के ईस्ट ऑफ कैलाश इलाके में पहला ‘द बिग चिल’ कैफे खुला। शुरुआत में यह एक छोटा कैफे था, जिसमें केवल कुछ टेबल थीं और एक सीमित मेन्यू था। लेकिन फौजिया के डिज़ाइन सेंस और असीम की मैनेजमेंट स्किल्स ने इसे जल्द ही शहर के ट्रेंडी युथ और खाने के शौकीनों के बीच लोकप्रिय बना दिया।
दोनों ने अपनी पूरी रचनात्मकता को झोंक दिया। रेट्रो पोस्टर्स, हॉलीवुड मूवीज़ की झलक, क्लासिक पेंटिंग्स, और यूरोपीय कैफे का इंटीरियर — यह सब कुछ ‘द बिग चिल’ को बाकी कैफे से अलग बनाता है।
क्या है ‘द बिग चिल’ की खासियत?
- रेट्रो थीम और मूवी पोस्टर्स:
हर आउटलेट की दीवारों पर लगे क्लासिक हॉलीवुड मूवी पोस्टर्स जैसे Casablanca, The Godfather, और Audrey Hepburn की तस्वीरें आपको एक पुराने ज़माने के सिनेमाघर का एहसास देती हैं। - यूरोपियन फूड एक्सपीरियंस:
कैफे का मेन्यू खासतौर पर पास्ता, पिज़्ज़ा, लसग्ना, बेक्ड चीज़ डिशेज़ और डेसर्ट्स के लिए जाना जाता है। खासकर उनका Banoffee Pie और Mississippi Mud Pie काफी प्रसिद्ध है। - क्वालिटी पर ज़ोर:
असीम और फौजिया की सोच साफ थी — “कभी क्वालिटी से समझौता नहीं करेंगे”। यही वजह है कि इतने वर्षों में कभी भी ग्राहकों को खाने की गुणवत्ता पर निराशा नहीं हुई। - नो फ्रेंचाइज़ी मॉडल:
‘द बिग चिल’ आज भी एक स्वतंत्र ब्रांड है। उन्होंने अब तक किसी फ्रेंचाइज़ मॉडल को अपनाया नहीं है। हर कैफे को उन्होंने खुद ही डिज़ाइन किया और मैनेज किया है।
वर्तमान में कहां-कहां है बिग चिल?
दिल्ली-एनसीआर में आज ‘द बिग चिल’ के 8 कैफे और 4 डेसर्ट आउटलेट्स हैं। कुछ प्रमुख जगहों पर ये कैफे हैं:
- खान मार्केट
- साकेत
- वसंत कुंज
- नोएडा
- गुरुग्राम
- एरोसिटी
हर आउटलेट अपने आप में अलग पहचान रखता है और हमेशा भीड़भाड़ से भरा रहता है।
सालाना कमाई और कारोबार
‘द बिग चिल’ अब सिर्फ एक कैफे नहीं, एक प्रतिष्ठान बन चुका है। ₹150 करोड़ सालाना टर्नओवर इसे भारत के सबसे सफल कैफे चेन में से एक बनाता है — वो भी बिना किसी बाहरी निवेश या बड़ी विज्ञापन मुहिम के।
उनका सारा बिजनेस मॉडल माउथ पब्लिसिटी (word of mouth) पर आधारित रहा है। उनकी सफलता इस बात की गवाह है कि यदि प्रोडक्ट अच्छा हो और इरादे नेक हों, तो सफलता खुद रास्ता बना लेती है।
चुनौतियां और उनके समाधान
बिजनेस की इस यात्रा में चुनौतियां भी कम नहीं थीं। 2008 की मंदी, कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी, और बढ़ती प्रतिस्पर्धा जैसे समय में भी ‘द बिग चिल’ टिका रहा। उन्होंने अपने स्टाफ को छंटनी से बचाया, होम डिलीवरी मॉडल पर ध्यान दिया, और हर आउटलेट की सैनिटेशन क्वालिटी को अपग्रेड किया।
‘द बिग चिल’ से क्या सीखें?
- पैशन से बना बिजनेस कभी असफल नहीं होता।
- प्रेम और विश्वास से शुरू हुई कोई भी साझेदारी यदि ईमानदारी से की जाए तो वह एक ब्रांड बन सकती है।
- बिना फ्रेंचाइज़ी और बड़े निवेश के भी सफलता संभव है, बशर्ते गुणवत्ता और अनुभव पर फोकस हो।
निष्कर्ष
‘द बिग चिल’ की कहानी सिर्फ एक कैफे की नहीं, बल्कि सपनों को साकार करने की मिसाल है। एक प्रेम कहानी, जिसने दिल्ली के खानपान का स्वाद ही नहीं बदला, बल्कि हजारों युवाओं को प्रेरित किया कि वे भी अपने जुनून को व्यवसाय में बदल सकते हैं।
असीम ग्रोवर और फौजिया अहमद की यह यात्रा दिखाती है कि अगर दिल में जुनून हो और साथ में हो सही जीवनसाथी, तो कोई भी सपना बड़ा नहीं होता।
