निमिषा प्रिया केस: यमन में तय हुई फांसी की तारीख़, क्या भारत सरकार आखिरी वक्त पर बचा पाएगी?
यमन में भारतीय नर्स निमिषा प्रिया को 16 जुलाई को फांसी, क्या बचने की अब भी है कोई उम्मीद?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली:
युद्धग्रस्त देश यमन में एक भारतीय नर्स निमिषा प्रिया को 16 जुलाई 2025 को फांसी दी जानी है। 34 वर्षीय प्रशिक्षित नर्स को वर्ष 2017 में एक यमनी नागरिक और बिजनेस पार्टनर तलाल अब्दो महदी की हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था। अब उनके पास बचने का सिर्फ़ एक ही रास्ता है — अगर मृतक के परिवार वाले उन्हें ब्लड मनी (दियाह) लेकर माफ़ कर दें।
यह मामला न सिर्फ़ कानूनी पेचीदगियों से जुड़ा है, बल्कि इसमें मानवाधिकार, महिला सुरक्षा, विदेश नीति और न्याय व्यवस्था जैसे पहलुओं का भी गहरा प्रभाव है।
🔎 क्या है पूरा मामला?
निमिषा प्रिया 2008 में भारत के केरल राज्य से नर्स के रूप में यमन गई थीं। शुरुआत में उन्हें एक सरकारी अस्पताल में नौकरी मिली। बाद में, उन्होंने अपना खुद का क्लिनिक खोलने का फैसला किया, जिसके लिए यमन के कानून के अनुसार एक स्थानीय पार्टनर की आवश्यकता थी। इस सिलसिले में उनका संपर्क तलाल अब्दो महदी से हुआ, जिन्होंने उनके क्लिनिक में पार्टनरशिप की।
परंतु, कुछ ही वर्षों में परिस्थितियाँ बिगड़ने लगीं। निमिषा ने महदी पर आरोप लगाए कि उसने उनका पासपोर्ट जब्त कर लिया, उन्हें धमकाया, शारीरिक उत्पीड़न किया और यहां तक कि उनके शादी के दस्तावेज़ों से छेड़छाड़ कर यह दावा किया कि उन्होंने उससे शादी की है।
⚖️ हत्या, गिरफ्तारी और अदालत का फैसला
2017 में महदी का क्षत-विक्षत शव एक पानी की टंकी से बरामद किया गया। कुछ हफ्तों बाद निमिषा को यमन की सऊदी सीमा के पास से गिरफ़्तार किया गया। उनके वकील का दावा है कि निमिषा सिर्फ़ महदी को बेहोश कर पासपोर्ट वापस लेना चाहती थीं, लेकिन दवा की ओवरडोज़ के कारण उसकी मौत हो गई।
2020 में उन्हें स्थानीय अदालत ने मौत की सज़ा सुनाई। इस फैसले के खिलाफ अपील यमन के सुप्रीम कोर्ट में की गई, जिसे 2023 में खारिज कर दिया गया। इसके बाद हूती विद्रोहियों की सरकार ने जनवरी 2024 में फांसी की मंज़ूरी दे दी।
⏳ अब सिर्फ एक ही उम्मीद: ब्लड मनी
यमन में शरिया कानून के तहत हत्या के मामलों में “ब्लड मनी” (दियाह) का विकल्प होता है, जिसके तहत अगर पीड़ित का परिवार माफ कर दे, तो दोषी को सजा-ए-मौत से राहत मिल सकती है।
सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल और उनके परिवार ने 10 लाख डॉलर की ब्लड मनी की पेशकश की है। परंतु महदी के परिवार की ओर से अब तक कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है।
सामाजिक कार्यकर्ता सैमुअल जेरोम, जिन्हें परिवार की ओर से बातचीत के लिए नामित किया गया है, अभी भी महदी के परिजनों से संपर्क में हैं।
👩👧 मां की संघर्षपूर्ण लड़ाई
निमिषा की मां प्रेमा कुमारी, जो एक घरेलू कामगार हैं, पिछले साल से यमन में रहकर अपनी बेटी को बचाने के प्रयास कर रही हैं। उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर भारत सरकार से तुरंत दखल देने की मांग की थी।
इस याचिका में यह भी कहा गया है कि यमन की पुलिस ने उल्टे निमिषा को ही जेल में डाल दिया था, जबकि वे खुद पीड़िता थीं।
🏛️ भारत सरकार की भूमिका
भारत के विदेश मंत्रालय ने इस मामले में संज्ञान लेते हुए कहा था कि वे हरसंभव मदद कर रहे हैं। प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने बयान दिया था:
“हमें निमिषा प्रिया को यमन में मिली सज़ा की जानकारी है। हम यह समझते हैं कि प्रिया का परिवार सभी मौजूद विकल्पों की तलाश कर रहा है।”
हालांकि, अब जबकि फांसी की तारीख तय हो चुकी है, यह देखा जाना बाकी है कि क्या भारत सरकार राजनयिक स्तर पर अंतिम कोशिश करेगी?
🇮🇳 कूटनीति बनाम कानून
यमन इस समय गृह युद्ध और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा है। ऐसे में भारत जैसे देश के लिए वहां कूटनीतिक हस्तक्षेप करना आसान नहीं है। फिर भी, यह एक ऐसा मानवीय मामला है जिसमें जन समर्थन, अंतरराष्ट्रीय दबाव और मीडिया की भूमिका अहम हो सकती है।
✋ क्या निमिषा को अब भी बचाया जा सकता है?
हां, लेकिन सिर्फ एक ही रास्ता है — पीड़ित परिवार की माफ़ी।
अगर महदी के परिवार को ब्लड मनी स्वीकार करने के लिए मना लिया जाए, तो शरिया कानून के तहत निमिषा की फांसी रोकी जा सकती है।
परिवार और “सेव निमिषा” समूह इस दिशा में निरंतर प्रयास कर रहे हैं, लेकिन समय अब बहुत कम बचा है।
📣 निष्कर्ष
निमिषा प्रिया का मामला एक जटिल, लेकिन भावनात्मक रूप से गहराई से जुड़ा मुद्दा है। यह सवाल भी खड़ा करता है कि क्या कोई महिला जो खुद पीड़िता रही हो, उसे ऐसी भयावह सजा मिलनी चाहिए?
जहां एक ओर कानून अपना काम कर रहा है, वहीं दूसरी ओर मानवता, न्याय और करुणा की पुकार भी है। भारत सरकार, अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं और आम नागरिक — सभी को मिलकर यह अंतिम कोशिश करनी होगी कि एक भारतीय नागरिक की जान बचाई जा सके।