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8 Aug 2025, Fri

300 रुपये में फिंगर क्लोन: बायोमेट्रिक सिस्टम की सुरक्षा पर बड़ा सवाल

भीलवाड़ा | 28 जुलाई 2025

देश के बायोमेट्रिक सुरक्षा सिस्टम पर एक बड़ा खतरा मंडरा रहा है। राजस्थान के भीलवाड़ा, जयपुर, चित्तौड़गढ़ और उदयपुर जैसे शहरों में 300 रुपये में फिंगरप्रिंट क्लोन बनाए जा रहे हैं, जिनका उपयोग आधार सत्यापन, बैंक ट्रांजेक्शन और बायोमेट्रिक हाजिरी जैसे अत्यंत संवेदनशील कार्यों में किया जा रहा है। यह खुलासा दैनिक भास्कर की एक स्पेशल रिपोर्ट में हुआ है।


कैसे हो रहा है ये घोटाला?

रिपोर्ट में बताया गया है कि इन फर्जी फिंगरप्रिंट्स का निर्माण नए किस्म के ‘जिलेटिन मोल्ड’ से किया जा रहा है। यह मोल्ड असली उंगलियों की छाप लेकर तैयार किया जाता है, और फिर उसमें जिलेटिन, ग्लू, और सिलिकॉन जैसा पदार्थ भरकर नकली फिंगर बनाए जाते हैं। इन क्लोन फिंगरप्रिंट्स को बायोमेट्रिक डिवाइस पर इस्तेमाल करने से असली व्यक्ति की तरह वेरिफिकेशन हो जाता है।

इनका उपयोग निजी व सरकारी कार्यालयों में उपस्थिति दर्ज कराने, आधार अपडेट कराने, राशन लेने, बैंक में पैसे ट्रांसफर करने और अन्य बायोमेट्रिक आधारित सेवाओं में किया जा रहा है।


सिर्फ 300 रुपये में फर्जी पहचान

सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि यह तकनीक इतनी सस्ती हो चुकी है कि बाजार में मात्र 300 रुपये में एक क्लोन फिंगर मिल रहा है। जांच में सामने आया कि यह क्लोन 10 से 15 बार तक आसानी से उपयोग में लाया जा सकता है।

कुछ दलाल और लोकल साइबर अपराधी इस पूरे नेटवर्क को चला रहे हैं। वे आधार सेंटर, बैंकिंग कॉरेस्पॉन्डेंट और प्राइवेट सर्विस सेंटर से जुड़े कर्मचारियों के साथ मिलकर इन फर्जी उंगलियों का धंधा चला रहे हैं।


सरकारी सिस्टम की पोल खुली

यह घोटाला सामने आने के बाद UIDAI (Unique Identification Authority of India), बैंकिंग संस्थान और राज्य सरकार की साइबर टीमों की नींद उड़ गई है। बायोमेट्रिक सिस्टम जिसे सबसे सुरक्षित माना जाता था, वह अब सस्ती तकनीक के आगे कमजोर साबित हो रहा है।

रिपोर्ट के अनुसार, जिन डिवाइसेस पर फर्जी उंगलियों से उपस्थिति या ट्रांजेक्शन हो रहे हैं, उनमें से अधिकतर प्राइवेट कंपनियों द्वारा बनाए गए हैं जिनमें उन्नत सुरक्षा चिप्स की कमी है।


प्रभावित क्षेत्रों में क्या हो रहा है?

भीलवाड़ा, जयपुर, चित्तौड़गढ़ और उदयपुर में कई आधार केंद्रों व बैंकिंग आउटलेट्स पर जांच की गई, जहां पाया गया कि कई उपभोक्ता ऐसे थे जिन्होंने व्यक्तिगत रूप से कभी उपस्थित नहीं हुए, फिर भी उनकी बायोमेट्रिक हाजिरी या लेनदेन हुआ।

कुछ कर्मचारियों ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि उन्हें “क्लोन फिंगर” इस्तेमाल करने के लिए पैसे दिए जाते थे। इससे न सिर्फ सरकारी स्कीमों में फर्जी लाभार्थी जुड़े, बल्कि कई बार असली उपभोक्ताओं को लाभ नहीं मिल पाया।


साइबर क्राइम विभाग की जांच शुरू

राजस्थान पुलिस और साइबर क्राइम विभाग ने इस पूरे घोटाले की जांच शुरू कर दी है। पुलिस अधिकारियों के अनुसार अब तक 10 से अधिक संदिग्धों को चिन्हित किया गया है और उनसे पूछताछ की जा रही है। शुरुआती रिपोर्ट के मुताबिक यह एक संगठित रैकेट है, जो पूरे उत्तर भारत में फैला हुआ है।


UIDAI और NPCI की प्रतिक्रिया

UIDAI ने एक बयान में कहा कि यह एक गंभीर चिंता का विषय है। उन्होंने राज्यों को निर्देश दिए हैं कि सभी आधार एनरोलमेंट और अपडेट सेंटर्स की बायोमेट्रिक लॉग की समीक्षा करें। वहीं, NPCI (नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया) ने बायोमेट्रिक बैंकिंग ट्रांजेक्शन के लिए अतिरिक्त OTP वेरिफिकेशन अनिवार्य करने की बात कही है।


फर्जी फिंगर से जुड़े खतरनाक उदाहरण

  1. मनरेगा घोटाला: एक ही व्यक्ति ने अलग-अलग फिंगर क्लोन का उपयोग करके 10 मजदूरों की उपस्थिति दर्ज कर दी।
  2. राशन स्कैम: फर्जी उंगलियों से राशन उठाया गया जबकि असली लाभार्थी को राशन नहीं मिला।
  3. बैंक फ्रॉड: आधार आधारित बैंकिंग में पैसों का ट्रांसफर फर्जी फिंगर से हो गया, ग्राहक को जानकारी ही नहीं थी।

आगे क्या कदम उठाने होंगे?

  • बायोमेट्रिक डिवाइस अपग्रेड करना अनिवार्य किया जाए ताकि केवल ‘लाइव फिंगर’ ही स्कैन हो सकें।
  • बायोमेट्रिक के साथ फेस ऑथेंटिकेशन या आंखों की पुतली (iris scan) का विकल्प जोड़ा जाए।
  • जनता को जागरूक किया जाए कि वे अपनी बायोमेट्रिक जानकारी किसी के साथ साझा न करें।
  • UIDAI को सख्त निगरानी तंत्र बनाना होगा, जिससे ऐसे क्लोन को तुरंत ब्लॉक किया जा सके।

निष्कर्ष

बायोमेट्रिक आधारित तकनीकें अगर गलत हाथों में जाएं तो न सिर्फ व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरा हो सकता है, बल्कि पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े हो जाते हैं। सरकार और संबंधित एजेंसियों को इस मामले को गंभीरता से लेते हुए तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए ताकि आम लोगों का विश्वास तकनीकी व्यवस्था में बना रहे।

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