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21 Jul 2025, Mon

बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर, लेकिन चुनावी समय को लेकर जताई चिंता

बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर, लेकिन चुनावी समय को लेकर जताई चिंता

 

नई दिल्ली/पटना –
बिहार में चल रही वोटर लिस्ट की स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (Special Intensive Revision – SIR) प्रक्रिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने इस प्रक्रिया पर रोक लगाने से साफ इनकार कर दिया है, जिससे यह साफ हो गया है कि बिहार में मतदाता सूची का पुनरीक्षण कार्य जारी रहेगा। लेकिन कोर्ट ने इस बात पर गंभीर सवाल उठाए हैं कि विधानसभा चुनाव के चंद महीने पहले इस प्रक्रिया को शुरू करना कितना उचित है।

🔹 क्या है मामला?

बिहार में चुनाव आयोग ने मतदाता सूची के व्यापक पुनरीक्षण का फैसला लिया है, जिसमें फर्जी मतदाताओं के नाम हटाने, डुप्लीकेट प्रविष्टियों को ठीक करने और नए योग्य मतदाताओं को शामिल करने जैसे कार्य शामिल हैं। इस प्रक्रिया को “Special Summary Revision” से अलग एक Special Intensive Revision (SIR) के तहत चलाया जा रहा है।

इस प्रक्रिया पर कुछ राजनीतिक दलों और संगठनों ने आपत्ति जताई थी। उनका तर्क था कि विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और ऐसे समय में यह रिवीजन कहीं चुनावी समीकरणों को प्रभावित करने का प्रयास न हो। इसी मुद्दे को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

🔹 सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि वोटर लिस्ट रिवीजन जैसी प्रक्रिया पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता, क्योंकि यह चुनाव आयोग का संवैधानिक कर्तव्य है कि वह मतदाता सूची को अद्यतन रखे।

हालांकि, कोर्ट ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि यह प्रक्रिया राजनीतिक निष्पक्षता और लोकतांत्रिक संतुलन के सिद्धांतों का उल्लंघन न करे।
कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा:

> “आपकी प्रक्रिया से कोई दिक्कत नहीं है… लेकिन समयबद्धता और पारदर्शिता ज़रूरी है। प्रक्रिया के पीछे प्रपोजल अच्छा है, लेकिन इसकी टाइमिंग चिंता का विषय है।”

 

🔹 राजनीतिक प्रतिक्रिया

इस फैसले के बाद बिहार की सियासत गरमा गई है।

राजद (RJD) और कांग्रेस जैसी विपक्षी पार्टियों का कहना है कि यह रिवीजन “राजनीतिक लाभ” लेने की कोशिश हो सकती है।

वहीं एनडीए सरकार और राज्य चुनाव आयोग का तर्क है कि यह प्रक्रिया लंबे समय से लंबित थी और अब तकनीकी संसाधनों से इसे निष्पक्ष तरीके से किया जा रहा है।

🔹 चुनाव आयोग का पक्ष

चुनाव आयोग ने कोर्ट में हलफनामा दायर कर बताया कि:

यह प्रक्रिया जनभागीदारी और पारदर्शिता के साथ की जा रही है।

हर जिले में डोर-टू-डोर सत्यापन, बायोमेट्रिक मिलान और डुप्लीकेट पहचान हटाने जैसे कदम अपनाए जा रहे हैं।

यह प्रक्रिया किसी पार्टी के कहने पर नहीं, बल्कि राष्ट्रीय मतदाता सूची नीति के तहत की जा रही है।

🔹 विशेषज्ञों की राय

चुनाव विश्लेषक और संवैधानिक मामलों के जानकारों का मानना है कि:

> “वोटर लिस्ट की सफाई एक नियमित और ज़रूरी प्रक्रिया है, लेकिन इसे चुनाव से ठीक पहले करना राजनीतिक विवाद का कारण बन सकता है। सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी इसी संवेदनशीलता को इंगित करती है।”

 

🔹 आगे क्या?

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश नहीं दिया कि प्रक्रिया कब तक चलेगी, लेकिन उसने संकेत दिए हैं कि इस प्रक्रिया की निगरानी और पारदर्शिता बेहद ज़रूरी है।
संभावना है कि चुनाव आयोग इस पर नए दिशानिर्देश या समय-सारणी जारी करे।

निष्कर्ष

बिहार जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील राज्य में वोटर लिस्ट रिवीजन एक सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया से अधिक महत्वपूर्ण बन जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में संतुलित फैसला देते हुए प्रक्रिया को अनुमति दी है लेकिन चुनावी टाइमिंग को लेकर चेतावनी भी दी है। अब देखना यह है कि राज्य चुनाव आयोग किस प्रकार पारदर्शिता बनाए रखता है और सभी राजनीतिक दलों का विश्वास जीतने में सफल होता है या नहीं।

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