Breaking
24 Jul 2025, Thu

ब्रह्मपुत्र: भारत को चीन से कितना खतरा? क्या यह सिंधु-पाकिस्तान जैसे हालात बना सकता है?

ब्रह्मपुत्र: भारत को चीन से कितना खतरा?

ब्रह्मपुत्र: भारत को चीन से कितना खतरा? क्या यह सिंधु-पाकिस्तान जैसे हालात बना सकता है?

ब्रह्मपुत्र बनाम सिंधु विवाद: चीन से डर क्यों जबकि पानी का स्रोत भारत में है?

पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने सिंधु जल समझौते पर सख्त रुख अपनाया है। इसके चलते पाकिस्तान के साथ जल विवाद फिर से चर्चा में है। वहीं दूसरी ओर, ब्रह्मपुत्र नदी को लेकर भारत और चीन के बीच भी चिंता का माहौल है। कई बार दोनों मामलों की तुलना की जाती है, लेकिन क्या ब्रह्मपुत्र का मुद्दा वाकई सिंधु जितना गंभीर है?


सिंधु जल विवाद: पाकिस्तान की बड़ी निर्भरता

सिंधु नदी भारत से निकलकर पाकिस्तान में जाती है। 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि हुई थी, जिसमें भारत ने तीन पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास, सतलुज) पर और पाकिस्तान ने तीन पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चेनाब) पर नियंत्रण पाया।

👉 पाकिस्तान की कृषि और अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा सिंधु जल पर निर्भर है। अगर भारत इस संधि को रद्द करता है या जल रोकने की दिशा में कदम उठाता है, तो पाकिस्तान को बड़ा झटका लग सकता है।


ब्रह्मपुत्र: क्यों भारत की स्थिति बेहतर है?

ब्रह्मपुत्र नदी की बात करें तो यह तिब्बत से निकलती है (जहां इसे यारलुंग त्सांगपो कहते हैं) और भारत के अरुणाचल प्रदेश होते हुए असम, फिर बांग्लादेश में बहती है।

➡️ सबसे महत्वपूर्ण बात: ब्रह्मपुत्र नदी का 86% जल भारत में आने के बाद ही जुड़ता है।
सियांग, लोहित और दिबांग जैसी सहायक नदियां और भारी वर्षा इस नदी का मुख्य स्रोत हैं।
चीन का नियंत्रण सिर्फ ऊपरी हिस्से (तिब्बत) पर है, जहां से लगभग 14% पानी आता है।

👉 यानी अगर चीन पानी रोके भी, तो भारत पर उसका सीधा प्रभाव सीमित होगा।


चीन से असली खतरा क्या है?

हालांकि पानी रोकना चीन के लिए सीमित विकल्प है, लेकिन बाढ़ लाकर नुकसान पहुंचाना एक वास्तविक खतरा है।
साल 2000 में तिब्बत में एक बांध टूटने के कारण अरुणाचल प्रदेश में भारी बाढ़ आ गई थी।

अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने कहा है कि चीन की असली ताकत पानी छोड़ने की समय और मात्रा को नियंत्रित करने में है

चीन यदि मानसून के समय अचानक बड़ी मात्रा में पानी छोड़ दे, तो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में भारी तबाही हो सकती है।


चीन का जल डेटा: सबसे बड़ा हथियार

भारत और चीन के बीच ब्रह्मपुत्र को लेकर कोई औपचारिक संधि नहीं है।
हालांकि चीन बाढ़ के मौसम में कुछ डेटा साझा करता है, लेकिन पूरे साल पारदर्शिता नहीं रखता।

🔴 पानी पर नहीं, डेटा पर चीन का नियंत्रण ही भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।

चीन ने 2017 के डोकलाम विवाद के दौरान भारत को पानी का डेटा देना बंद कर दिया था, जिससे अरुणाचल में स्थिति बिगड़ गई थी।


जलवायु परिवर्तन ने बढ़ाई मुश्किलें

जलवायु परिवर्तन से नदी प्रणाली असंतुलित हो रही है:

  • तिब्बत में बर्फ पिघलने की दर में 22% की गिरावट हो रही है।

  • बारिश पर निर्भरता बढ़ी है, जिससे मानसून के दौरान अचानक बाढ़ की आशंका रहती है।

  • वहीं सूखे मौसम में पानी की कमी भी हो सकती है।

➡️ इससे असम और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों के लिए अनिश्चितता और खतरे बढ़ जाते हैं।


चीन की “जल बम” रणनीति: बांधों के जरिए दबाव

चीन ब्रह्मपुत्र पर एक नहीं, कई बड़े-बड़े बांध बना रहा है।
ग्रेट बेंड (Great Bend) के पास बनाए जा रहे 60 गीगावॉट के हाइड्रो प्रोजेक्ट को दुनिया का सबसे बड़ा माना जा रहा है।

हालांकि चीन इन्हें “run-of-the-river” प्रोजेक्ट कहता है, लेकिन इतनी बड़ी संख्या में बांधों का होना खुद में खतरा है।

👉 ये बांध पानी को स्टोर न करें, फिर भी बहाव की दिशा और समय को नियंत्रित कर सकते हैं — यही असली खतरा है।


भारत को कैसे तैयार रहना चाहिए?

सिर्फ चिंता करने से बात नहीं बनेगी। भारत को चाहिए कि वह विज्ञान आधारित रणनीति अपनाए:

  1. रियल टाइम फ्लड मॉनिटरिंग सिस्टम विकसित करें

  2. जल संग्रहण और वितरण प्रणाली को मजबूत करें

  3. तटबंध और बाढ़ नियंत्रण चैनलों को अपग्रेड करें

  4. कूटनीतिक दबाव बनाए और चीन से डेटा पारदर्शिता की मांग करे

  5. सैटेलाइट आधारित निगरानी और इंटरनेशनल फोरम में पानी की राजनीति को उठाए


निष्कर्ष

भारत को ब्रह्मपुत्र पर चीन से उतना खतरा नहीं, जितना सिंधु पर पाकिस्तान को भारत से है।
लेकिन, बाढ़ और डेटा नियंत्रण के जरिए चीन भारत को रणनीतिक दबाव में ला सकता है
इसलिए जरूरी है कि भारत वक्त रहते जल नीति, तकनीकी विकास और राजनयिक कूटनीति के तीनों मोर्चों पर मजबूत तैयारी करे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *