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7 Aug 2025, Thu

भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति वक्तव्य 2025–26: विस्तृत विश्लेषण

भारत की आर्थिक दिशा और विकास दर को आकार देने वाले सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक है भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति। हाल ही में मौद्रिक नीति समिति (MPC) की 56वीं बैठक 4 से 6 अगस्त 2025 के बीच आयोजित हुई, जिसकी अध्यक्षता नए गवर्नर श्री संजय मल्होत्रा ने की। इस बैठक में कई बड़े निर्णय लिए गए जो आगामी वित्तीय वर्ष की मुद्रास्फीति, विकास दर, और वित्तीय स्थिरता की दिशा तय करेंगे।


बैठक का संक्षिप्त विवरण

  • समिति: मौद्रिक नीति समिति (56वीं बैठक)

  • तिथि: 4–6 अगस्त, 2025

  • स्थान: भारतीय रिज़र्व बैंक, मुंबई

  • अध्यक्ष: गवर्नर श्री संजय मल्होत्रा

  • सदस्य: डॉ. नागेश कुमार, श्री सौगाता भट्टाचार्य, प्रो. राम सिंह, डॉ. पूनम गुप्ता, डॉ. राजीव रंजन


मुख्य निर्णय: दरों में कोई बदलाव नहीं

रेपो रेट: 5.50% (पूर्ववत रखा गया)

अन्य दरें:

दर का प्रकार नई दर
स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी (SDF) 5.25%
मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (MSF) 5.75%
बैंक रेट 5.75%

मौद्रिक नीति के उद्देश्य

आरबीआई ने दो प्रमुख उद्देश्यों के संतुलन को प्राथमिकता दी:

  1. मुद्रास्फीति को 4% ± 2% के लक्ष्य के भीतर बनाए रखना

  2. आर्थिक वृद्धि को समर्थन देना, विशेषकर घरेलू मांग और निजी निवेश को बढ़ावा देना


वैश्विक आर्थिक परिदृश्य

  • IMF द्वारा वैश्विक GDP वृद्धि अनुमानों में कटौती के बावजूद वैश्विक गतिविधि मंद बनी हुई है।

  • अमेरिका और यूरोप जैसे विकसित देशों में मुद्रास्फीति में दोबारा तेजी देखने को मिली है।

  • वैश्विक व्यापार तनाव, टैरिफ संशोधन और नीति अनिश्चितता अब भी चुनौती बने हुए हैं।


घरेलू आर्थिक स्थिति: आशाजनक लेकिन सतर्कता जरूरी

कृषि क्षेत्र:

  • दक्षिण-पश्चिम मानसून सामान्य रहा है, जिससे खरीफ फसल की बुआई अच्छी रही है।

  • ग्रामीण मांग में सुधार के संकेत मिले हैं।

सेवा क्षेत्र:

  • व्यापार, परिवहन और निर्माण क्षेत्रों में तेज गति से सुधार जारी है।

  • होटलिंग, पर्यटन, और लॉजिस्टिक्स में भी मांग बढ़ रही है।

औद्योगिक क्षेत्र:

  • बिजली और खनन जैसे क्षेत्रों में थोड़ी कमजोरी देखने को मिली है, लेकिन मैन्युफैक्चरिंग में स्थिरता है।

निजी निवेश:

  • सरकार के पूंजीगत व्यय में वृद्धि और बुनियादी ढांचे में निवेश से निजी क्षेत्र में निवेश बढ़ने के संकेत हैं।


विकास दर अनुमान (GDP Projection – FY 2025–26)

  • वर्ष 2025–26 का अनुमान: 6.5%

  • तिमाहीवार अनुमान:

तिमाही अनुमानित वृद्धि दर
Q1 6.5%
Q2 6.7%
Q3 6.6%
Q4 6.3%
Q1 2026–27 6.6%

मुद्रास्फीति परिदृश्य: अस्थायी राहत लेकिन खतरे बरकरार

जून 2025 के आंकड़े:

  • CPI मुद्रास्फीति: 2.1% (77 महीनों में सबसे कम)

  • खाद्य मुद्रास्फीति: -0.2% (ऋणात्मक)

  • कोर मुद्रास्फीति: 4.4% (सोने की कीमतों में वृद्धि के कारण)

अनुमानित CPI मुद्रास्फीति (FY 2025–26):

तिमाही अनुमानित CPI
Q2 2.1%
Q3 3.1%
Q4 4.4%
Q1 2026–27 4.9%

RBI का मानना है कि यद्यपि वर्तमान में मुद्रास्फीति नीचे है, लेकिन फसल उत्पादन में व्यवधान, तेल कीमतों में बदलाव और वैश्विक अस्थिरता के कारण बाद में यह फिर बढ़ सकती है।


प्रमुख जोखिम

  1. मौसम से जुड़ी अनिश्चितताएं – जैसे कि मानसून की असफलता या बाढ़

  2. वैश्विक व्यापार तनाव – जैसे टैरिफ युद्ध और डिप्लोमैटिक अस्थिरता

  3. अचानक नीति परिवर्तन – जैसे ब्याज दरों में वैश्विक स्तर पर अप्रत्याशित परिवर्तन


रेपो दर न बदलने के पीछे कारण

  • पहले से की गई कटौतियों का प्रभाव अभी पूरी तरह नहीं दिखा है (100 बेसिस पॉइंट की कटौती फरवरी 2025 से)।

  • मुद्रास्फीति की वर्तमान स्थिति अनुकूल है, लेकिन वर्ष के अंत में फिर से तेजी का जोखिम है।

  • डेटा आधारित तटस्थ रुख (Neutral Stance) बनाए रखना अधिक उचित समझा गया।


परीक्षा उपयोगी तथ्य – एक नजर में

तथ्य विवरण
MPC की बैठक संख्या 56वीं
रेपो रेट 5.50%
GDP अनुमान (2025–26) 6.5%
CPI मुद्रास्फीति अनुमान 3.1%
न्यूनतम मुद्रास्फीति (Q2) 2.1%
उच्चतम CPI अनुमान (Q1 2026–27) 4.9%
अगली MPC बैठक 29 सितंबर – 1 अक्टूबर 2025

RBI की आगे की रणनीति: डेटा-आधारित निर्णय

  • RBI ने साफ कहा है कि वह भविष्य के निर्णय डेटा विश्लेषण और परिस्थितियों के अनुसार लेगा।

  • यदि मुद्रास्फीति फिर से 5% या उससे ऊपर जाती है, तो नीतिगत दरों में बढ़ोतरी भी संभव है।

  • वहीं, यदि वैश्विक मंदी आती है और घरेलू मांग कमजोर होती है, तो RBI दर में कटौती पर भी विचार कर सकता है।


निष्कर्ष: सतर्कता, संतुलन और स्थिरता की नीति

मौद्रिक नीति 2025–26 संतुलित रुख को दर्शाती है — न तो आक्रामक ढील, न ही सख्ती। यह इस बात का संकेत है कि RBI अब हर कदम सोच-समझकर उठा रहा है ताकि महंगाई काबू में रहे और आर्थिक विकास की रफ्तार बनी रहे।

देश के लिए यह समय वित्तीय रूप से सतर्क लेकिन आशावादी रहने का है। यदि सभी कारक अनुकूल रहते हैं, तो भारत आने वाले वर्षों में स्थायी विकास और वित्तीय स्थिरता का नया अध्याय लिख सकता है।

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