मुजफ्फरपुर खादी तिरंगा: बिहार का तिरंगा बना देश की शान, कश्मीर की सरहद तक लहराएगा खादी का गौरव
स्वतंत्रता दिवस 2025 का जश्न इस बार बिहार के लिए खास होने वाला है, क्योंकि मुजफ्फरपुर का खादी तिरंगा अब सिर्फ राज्य में ही नहीं, बल्कि जम्मू-कश्मीर की सरहद तक लहराने जा रहा है। मुजफ्फरपुर स्थित खादी ग्रामोद्योग केंद्र ने इस साल तिरंगे की बिक्री में नया इतिहास रच दिया है। केंद्र ने अब तक 10 लाख रुपये से अधिक का कारोबार किया है, जो पिछले वर्षों के मुकाबले कहीं ज्यादा है।
देशभर से आए ऑर्डरों में बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, कोलकाता, ओडिशा और जम्मू-कश्मीर शामिल हैं। यहां तक कि बॉर्डर पर फहराए जाने वाले तिरंगे भी इसी केंद्र से तैयार होकर भेजे जा रहे हैं। यह उपलब्धि न सिर्फ बिहार के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का विषय है।
जुलाई से शुरू हुई तैयारी
बढ़ती मांग को देखते हुए खादी ग्रामोद्योग केंद्र के कारीगरों ने तिरंगे बनाने का काम दो महीने पहले ही शुरू कर दिया था। जुलाई से लेकर अगस्त तक करीब 100 कारीगरों ने दिन-रात मेहनत करके झंडे तैयार किए। इनमें दशकों से इस काम में लगे अनुभवी कारीगर भी शामिल हैं।
अशोक रजक, जिनके पिता भी खादी केंद्र में तिरंगे बनाते थे, बताते हैं,
“स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के करीब आते ही मांग कई गुना बढ़ जाती है, इसलिए हमें तैयारी पहले से करनी होती है।”
गुणवत्ता और वाजिब कीमत का मेल
खादी के तिरंगे की सबसे बड़ी ताकत है उसकी गुणवत्ता और उचित कीमत। उदाहरण के लिए, 2×3 फीट का तिरंगा बनाने में लगभग 500 रुपये की लागत आती है, जो बाजार में 600 रुपये में बेचा जाता है। इसके अलावा, तिरंगे अलग-अलग आकार और दामों में उपलब्ध हैं—500 रुपये से लेकर 4000 रुपये तक।
तुलना करें तो कर्नाटक से आने वाले तिरंगे की कीमत यहां के मुकाबले अधिक है, जबकि मुजफ्फरपुर के तिरंगों की मजबूती और सिलाई की गुणवत्ता उन्हें खास बनाती है।
कश्मीर से उड़ीसा तक तिरंगे की मांग
इस बार खादी ग्रामोद्योग को झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और जम्मू-कश्मीर से बड़े ऑर्डर मिले हैं। खादी ग्रामोद्योग मंत्री वीरेंद्र कुमार ने बताया—
“हमारे केंद्र के तिरंगे सरकारी कार्यालयों, स्कूलों, कॉलेजों और अन्य संस्थानों के लिए भेजे जाते हैं। बड़ी खेप पहले ही रवाना की जा चुकी है और बाकी स्वतंत्रता दिवस से पहले पहुंचा दी जाएगी।”
मुजफ्फरपुर जिले में सरैयागंज टावर समेत सभी खादी बिक्री केंद्रों पर तिरंगे की खुदरा बिक्री भी जोरों पर है। केंद्र के व्यवस्थापक इंद्रजीत शाही के मुताबिक—
“गुणवत्ता और वाजिब कीमत के कारण खादी के तिरंगे की मांग हर साल बढ़ रही है।”
कारीगरों की मेहनत और गर्व
कारीगर सरोज कुमार बताते हैं—
“इस बार हमने तीन महीने पहले से ही स्टॉक तैयार करना शुरू कर दिया था। अब तक 10 हजार से ज्यादा तिरंगे बिक चुके हैं। कुछ राज्यों ने इस बार नया ऑर्डर नहीं दिया, क्योंकि उनके पास पहले से स्टॉक मौजूद था।”
यह बिक्री न सिर्फ कारोबार के लिहाज से रिकॉर्ड है, बल्कि इससे जुड़े कारीगरों के लिए भी गर्व की बात है। वर्षों से तिरंगे बनाने का काम करने वाले इन कारीगरों की मेहनत अब पूरे देश में दिखाई दे रही है।
बिहार के तिरंगे की राष्ट्रीय पहचान
मुजफ्फरपुर खादी ग्रामोद्योग केंद्र की यह उपलब्धि बिहार के लिए बड़ी पहचान लेकर आई है। यहां के तिरंगे अब देश के कोने-कोने में लहरा रहे हैं—स्कूलों से लेकर सरकारी दफ्तरों तक, और यहां तक कि जम्मू-कश्मीर बॉर्डर पर भी।
इससे न सिर्फ स्थानीय कारीगरों को आर्थिक लाभ हो रहा है, बल्कि बिहार के खादी उद्योग को भी नई ऊर्जा और पहचान मिल रही है। यह उदाहरण इस बात का सबूत है कि स्थानीय हस्तकला और कारीगरी, अगर गुणवत्ता और समयबद्धता के साथ की जाए, तो राष्ट्रीय स्तर पर अपनी जगह बना सकती है।
निष्कर्ष
मुजफ्फरपुर खादी ग्रामोद्योग की इस सफलता ने साबित कर दिया है कि आत्मनिर्भर भारत का सपना सिर्फ बड़े उद्योगों से नहीं, बल्कि छोटे-छोटे स्थानीय केंद्रों की मेहनत और गुणवत्ता से भी पूरा हो सकता है। इस स्वतंत्रता दिवस पर जब देशभर में तिरंगा लहराएगा, तो उसके साथ बिहार के कारीगरों का गर्व और पसीना भी लहराएगा।
मुजफ्फरपुर का यह तिरंगा सिर्फ कपड़े का टुकड़ा नहीं, बल्कि मेहनत, आत्मनिर्भरता और देशभक्ति का प्रतीक बन चुका है—जो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत की एकता और गर्व को दर्शा रहा है।