झारखंड के वरिष्ठ आदिवासी नेता और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के सह-संस्थापक शिबू सोरेन को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ देने के लिए झारखंड विधानसभा ने मानसून सत्र 2025 के चौथे दिन एक महत्वपूर्ण संकल्प पारित किया। यह प्रस्ताव अब केंद्र सरकार को भेजा जाएगा। शिबू सोरेन, जिन्हें आदिवासी समाज में ‘दिशोम गुरु’ के रूप में सम्मानित किया जाता था, ने जीवन भर आदिवासी अधिकारों, सामाजिक न्याय और अलग झारखंड राज्य की स्थापना के लिए संघर्ष किया।
झारखंड विधानसभा का संकल्प
मानसून सत्र के दौरान झारखंड विधानसभा में प्रस्तुत प्रस्ताव में यह कहा गया कि शिबू सोरेन का योगदान न केवल राज्य निर्माण के दौरान महत्वपूर्ण रहा, बल्कि उन्होंने आदिवासी समाज की आवाज़ को राष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत किया। प्रदेश के परिवहन मंत्री दीपक बिरुवा द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव को ध्वनिमत से पारित किया गया। इसमें जोर दिया गया कि शिबू सोरेन के आदिवासी अधिकारों के लिए किए गए प्रयास, सामाजिक न्याय के क्षेत्र में योगदान और राज्य निर्माण में उनकी भूमिका को मान्यता देने के लिए भारत रत्न प्रदान किया जाना चाहिए।
शिबू सोरेन का निधन और विरासत
शिबू सोरेन का 4 अगस्त 2025 को दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में निधन हो गया। वे 81 वर्ष के थे। उनके निधन ने झारखंड की राजनीति और आदिवासी आंदोलन के उस युग का अंत किया, जिसने आदिवासी समुदाय को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। शिबू सोरेन ने झारखंड के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और आदिवासी समाज के लिए सामाजिक और राजनीतिक अधिकार सुनिश्चित किए।
उनकी राजनीतिक यात्रा को देखते हुए यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने केवल राजनीतिक नेतृत्व ही नहीं किया, बल्कि आदिवासी समुदाय के लिए स्थायी बदलाव लाने के लिए लगातार संघर्ष किया। उनका योगदान झारखंड के सामाजिक और राजनीतिक ढांचे में स्थायी प्रभाव छोड़ गया है।
राज्य निर्माण और आदिवासी अधिकारों के लिए संघर्ष
शिबू सोरेन का जीवन झारखंड के अलग राज्य के लिए समर्पित रहा। वे लगातार आंदोलन करते रहे और इस क्षेत्र के आदिवासी समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर काम किए। उनकी दूरदर्शिता और नेतृत्व ने झारखंड को एक स्थिर और विकासशील राज्य बनाने में मदद की।
शिबू सोरेन ने आदिवासी समाज के सशक्तिकरण के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय के क्षेत्र में कई पहलों की शुरुआत की। उन्होंने आदिवासी बच्चों के लिए शिक्षा के अवसर बढ़ाए, स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ बनाया और सामाजिक न्याय के लिए कई योजनाओं की शुरूआत की।
राष्ट्रीय और सामाजिक महत्व
यदि शिबू सोरेन को भारत रत्न दिया जाता है, तो यह केवल झारखंड तक सीमित प्रभाव नहीं रखेगा। यह आदिवासी और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा। यह दर्शाता है कि समाज और राजनीति में उनके योगदान को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दी जा रही है।
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राजनीतिक संदेश: यह निर्णय आदिवासी नेतृत्व और उनके संघर्ष को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता देने का प्रतीक है। 
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सामाजिक सशक्तिकरण: आदिवासी समुदाय और पिछड़े वर्गों के लिए यह प्रेरणा का स्रोत बनेगा। 
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राष्ट्रीय मान्यता: शिबू सोरेन की सामाजिक और राजनीतिक सेवाओं को अब देशभर में सराहा जाएगा। 
दिशोम गुरु के रूप में शिबू सोरेन
आदिवासी समाज में शिबू सोरेन को ‘दिशोम गुरु’ के रूप में जाना जाता था। उनका नेतृत्व और मार्गदर्शन आदिवासी समुदाय के लिए प्रेरक रहा। उन्होंने सामाजिक न्याय और विकास के लिए कई पहलें कीं, जिससे आदिवासी समाज को अपनी पहचान और अधिकार सुनिश्चित करने में मदद मिली।
उनकी विरासत केवल राजनीतिक नहीं रही, बल्कि सामाजिक बदलाव और आदिवासी अधिकारों के सशक्तिकरण में भी महत्वपूर्ण रही। उनका योगदान झारखंड की राजनीतिक संस्कृति और समाज में स्थायी रूप से दर्ज हो चुका है।
निष्कर्ष
झारखंड विधानसभा द्वारा शिबू सोरेन को भारत रत्न देने का प्रस्ताव पारित करना उनके जीवन और कार्य का सम्मान है। यह कदम आदिवासी समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है और राष्ट्रीय स्तर पर उनके योगदान को मान्यता देने का प्रतीक है। शिबू सोरेन का जीवन आदिवासी अधिकारों, सामाजिक न्याय और राज्य निर्माण की दिशा में एक प्रेरक उदाहरण रहा है। यदि केंद्र सरकार इस सिफारिश को स्वीकार करती है, तो यह न केवल उनके योगदान का सम्मान होगा, बल्कि आदिवासी समाज और सामाजिक न्याय की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण संदेश जाएगा।
शिबू सोरेन की राजनीतिक यात्रा और उनके प्रयास यह दर्शाते हैं कि वे केवल एक नेता नहीं थे, बल्कि आदिवासी समाज के मार्गदर्शक और संरक्षक भी थे। उनका योगदान आज भी आदिवासी समुदाय और झारखंड राज्य के लिए प्रेरणास्त्रोत बना हुआ है। भारत रत्न देने की सिफारिश उनके सम्मान और उनके जीवन के प्रभाव को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
