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30 Oct 2025, Thu

15 अगस्त: भारत की स्वतंत्रता का ऐतिहासिक दिन और इसके पीछे छिपी विश्व युद्ध की कहानी

15 अगस्त: भारत की स्वतंत्रता का ऐतिहासिक दिन और इसके पीछे छिपी विश्व युद्ध की कहानी

15 अगस्त: भारत की स्वतंत्रता का ऐतिहासिक दिन और इसके पीछे छिपी विश्व युद्ध की कहानी


भूमिका

हर साल 15 अगस्त को भारतवासी स्वतंत्रता दिवस बड़े गर्व और उत्साह के साथ मनाते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर आजादी के लिए 15 अगस्त की ही तारीख क्यों चुनी गई? यह तारीख केवल भारत के स्वतंत्र होने का दिन नहीं है, बल्कि इसके पीछे द्वितीय विश्व युद्ध, जापान का आत्मसमर्पण और ब्रिटिश साम्राज्य की राजनीतिक परिस्थितियों की गहरी कहानी छिपी है। भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड लुई माउंटबेटन ने इस दिन के चयन में निर्णायक भूमिका निभाई और इसे ऐतिहासिक महत्व प्रदान किया।


भारत की स्वतंत्रता की पृष्ठभूमि

1940 के दशक में भारत का स्वतंत्रता आंदोलन अपने चरम पर था। महात्मा गांधी, पंडित नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आज़ाद जैसे नेता जनता को संगठित कर रहे थे।
दूसरी ओर, ब्रिटेन द्वितीय विश्व युद्ध से बेहद कमजोर हो चुका था। उसकी आर्थिक और सैन्य शक्ति घट चुकी थी और वह अपने उपनिवेशों को संभालने की स्थिति में नहीं था।
फरवरी 1947 में ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की कि जून 1948 तक भारत को स्वतंत्रता दे दी जाएगी। लेकिन हालात और राजनीतिक दबावों के कारण यह प्रक्रिया तेज करनी पड़ी।


लॉर्ड माउंटबेटन और तारीख का चयन

लॉर्ड लुई माउंटबेटन, जो भारत के अंतिम वायसराय थे, को सत्ता हस्तांतरण की जिम्मेदारी दी गई थी। उन्होंने बाद में बताया कि 15 अगस्त चुनने का कारण व्यक्तिगत और ऐतिहासिक दोनों था।
दरअसल, 15 अगस्त 1945 को द्वितीय विश्व युद्ध में जापान ने मित्र राष्ट्रों के सामने आत्मसमर्पण किया था। यह दिन उनके सैन्य करियर के लिए “शुभ” माना जाता था, क्योंकि उस समय माउंटबेटन दक्षिण-पूर्व एशिया में मित्र सेना के सर्वोच्च कमांडर थे।


जापान का आत्मसमर्पण और 15 अगस्त का महत्व

अगस्त 1945 में, अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा (6 अगस्त) और नागासाकी (9 अगस्त) पर परमाणु बम गिराए, जिससे लाखों लोगों की जान गई और शहर पूरी तरह तबाह हो गए।
इन हमलों के बाद जापान के सम्राट हिरोहितो ने 15 अगस्त 1945 को रेडियो संदेश के जरिए आत्मसमर्पण की घोषणा की।
यह दिन दुनिया भर में युद्ध की समाप्ति और शांति की शुरुआत के प्रतीक के रूप में जाना जाने लगा। इसी कारण माउंटबेटन ने भारत की स्वतंत्रता के लिए यही तारीख तय की।


स्वतंत्रता और विभाजन – एक साथ दो बड़े फैसले

15 अगस्त 1947 का दिन भारत के इतिहास में दोहरी पहचान रखता है—

  1. स्वतंत्रता: भारत ने ब्रिटिश शासन से आजादी पाई और अपना संप्रभु राष्ट्र बनने का सफर शुरू किया।

  2. विभाजन: इसी प्रक्रिया में भारत और पाकिस्तान दो अलग-अलग देशों के रूप में अस्तित्व में आए। पाकिस्तान 14 अगस्त 1947 को बना, जबकि भारत ने 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाया।


पहला स्वतंत्रता दिवस

14-15 अगस्त की मध्यरात्रि को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ऐतिहासिक “ट्रिस्ट विद डेस्टिनी” भाषण दिया। दिल्ली के लाल किले पर पहली बार तिरंगा फहराया गया और यह परंपरा आज भी जारी है।
उस समय पूरे देश में जश्न का माहौल था, लेकिन विभाजन के कारण दंगे और पलायन भी चरम पर थे। लाखों लोग विस्थापित हुए और हजारों की जान गई।


तारीख के चयन के कारण – प्रतीक और व्यवहारिकता

  • प्रतीकात्मक कारण: 15 अगस्त को जापान के आत्मसमर्पण के कारण यह दिन शांति और विजय का प्रतीक बन गया था।

  • व्यावहारिक कारण: ब्रिटेन जल्द से जल्द सत्ता हस्तांतरण करना चाहता था, और अगस्त 1947 तक सभी प्रशासनिक तैयारियां पूरी हो चुकी थीं।

  • व्यक्तिगत कारण: माउंटबेटन के सैन्य करियर का यह सबसे गौरवपूर्ण दिन था।


आलोचना और बहस

कुछ इतिहासकार मानते हैं कि जल्दी तारीख तय करने के कारण विभाजन की प्रक्रिया जल्दबाजी में हुई, जिससे हिंसा और मानवीय त्रासदी बढ़ी।
इसके बावजूद, 15 अगस्त आज भारतीय पहचान का अटूट हिस्सा है और हर साल यह दिन हमें आजादी के संघर्ष और बलिदान की याद दिलाता है।


आज का महत्व

आज 15 अगस्त केवल एक छुट्टी का दिन नहीं, बल्कि यह हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान, राष्ट्रीय एकता और लोकतांत्रिक मूल्यों की याद दिलाने वाला दिन है।
लाल किले से प्रधानमंत्री का संबोधन, तिरंगा फहराना, सांस्कृतिक कार्यक्रम और देशभक्ति गीत इस दिन की पहचान बन चुके हैं।


निष्कर्ष

15 अगस्त का चयन केवल एक संयोग नहीं था, बल्कि यह विश्व इतिहास और भारत की स्वतंत्रता की यात्रा से गहराई से जुड़ा निर्णय था। जापान के आत्मसमर्पण, द्वितीय विश्व युद्ध के अंत और लॉर्ड माउंटबेटन के निजी अनुभवों ने इसे भारत के लिए आजादी का दिन बना दिया।
आज हम जब तिरंगे के नीचे खड़े होकर राष्ट्रगान गाते हैं, तो हमें यह याद रखना चाहिए कि इस तारीख में विजय, बलिदान और शांति—तीनों का संगम छिपा है।

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