31 मार्च 2026 तक झारखंड शिक्षक पात्रता परीक्षा अनिवार्य: हाईकोर्ट का बड़ा आदेश
रांची: झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को कड़ा निर्देश दिया है कि 31 मार्च 2026 तक झारखंड शिक्षक पात्रता परीक्षा (JTET) का आयोजन हर हाल में किया जाए। न्यायमूर्ति आनंद सेन की अदालत ने यह आदेश सहायक आचार्य प्रतियोगिता परीक्षा और JTET की लंबी देरी पर गंभीर आपत्ति जताते हुए दिया। अदालत ने स्पष्ट कहा है कि जब तक JTET नहीं कराया जाता और उसके परिणाम घोषित नहीं होते, तब तक शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकती।
यह आदेश उस याचिका पर सुनवाई करते हुए आया जिसमें 401 अभ्यर्थियों ने राज्य सरकार की उदासीनता और JTET न कराने को लेकर गुहार लगाई थी। अदालत ने मामले की गंभीरता को देखते हुए शिक्षा सचिव उमाशंकर सिंह को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश भी दिया था।
नौ साल से लंबित है JTET परीक्षा
झारखंड में अब तक केवल दो बार ही शिक्षक पात्रता परीक्षा कराई गई है। पहली परीक्षा 2012 में और दूसरी 2016 में आयोजित हुई थी। इसके बाद लगातार नौ वर्षों से परीक्षा आयोजित नहीं हुई। इसका सीधा असर राज्य के हजारों प्रशिक्षित अभ्यर्थियों पर पड़ा है जो नियुक्ति की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
2016 में JTET के बाद राज्य सरकार ने नियमावली में बदलाव की प्रक्रिया शुरू की थी। वर्ष 2019 में नई शिक्षक नियुक्ति नियमावली बनाई गई, लेकिन इसके बाद भी कई बार संशोधन होते रहे। इन लगातार संशोधनों और प्रशासनिक लापरवाहियों के चलते परीक्षा की तारीख बार-बार टलती गई और अंततः नौ साल बीत जाने के बाद भी अभ्यर्थियों को मौका नहीं मिला।
बिना परीक्षा भर्ती पर रोक
हाईकोर्ट ने यह भी साफ कर दिया है कि जब तक JTET नहीं होता, तब तक शिक्षक भर्ती प्रक्रिया किसी भी स्तर पर शुरू नहीं की जाएगी। यानी कि चाहे प्राथमिक विद्यालयों में हो या उच्च विद्यालयों में, बिना JTET परीक्षा पास किए कोई भी शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकेगी।
राज्य में लगभग 3.5 लाख प्रशिक्षित अभ्यर्थी JTET की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इनमें बड़ी संख्या 2011 और 2016 में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले अभ्यर्थियों की है। वर्षों से नौकरी की उम्मीद में बैठे इन युवाओं के लिए यह आदेश उम्मीद की नई किरण है।
अदालत की नाराज़गी और सरकार पर सवाल
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने सरकार के रवैये पर तीखी टिप्पणी की। अदालत ने पूछा कि आखिर नौ वर्षों से परीक्षा क्यों नहीं कराई गई, जबकि हर साल प्रशिक्षित अभ्यर्थियों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
सरकार की ओर से बताया गया कि नियमावली में संशोधन की प्रक्रिया चल रही थी। इस पर अदालत ने कहा कि संशोधन की आड़ में युवाओं का भविष्य अधर में नहीं छोड़ा जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि सरकार चाहे जितना संशोधन कर ले, लेकिन 31 मार्च 2026 तक परीक्षा कराना हर हाल में अनिवार्य होगा।
401 अभ्यर्थियों की याचिका बनी आधार
इस मामले में 401 अभ्यर्थियों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। उनका कहना था कि वे कई वर्षों से प्रशिक्षित होने के बावजूद नौकरी से वंचित हैं क्योंकि JTET का आयोजन ही नहीं किया गया।
अभ्यर्थियों की दलील थी कि राज्य सरकार बार-बार केवल नई नियमावली बनाने और संशोधन का बहाना करती रही, लेकिन परीक्षा कराने में कोई रुचि नहीं दिखाई। अदालत ने उनकी इस दलील को उचित मानते हुए सरकार को सख्त निर्देश दिया।
JTET क्यों है ज़रूरी?
शिक्षक पात्रता परीक्षा केवल एक प्रतियोगी परीक्षा भर नहीं है, बल्कि यह गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की गारंटी भी है। केंद्रीय शिक्षा अधिनियम के तहत किसी भी राज्य में शिक्षक बनने के लिए TET पास करना अनिवार्य है।
इस परीक्षा के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाता है कि बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षक बुनियादी ज्ञान, शिक्षण कौशल और प्रशिक्षण के लिहाज से सक्षम हों। यदि यह परीक्षा समय पर न हो, तो योग्य और प्रशिक्षित अभ्यर्थी बेरोजगार रह जाते हैं और शिक्षा व्यवस्था भी प्रभावित होती है।
लाखों अभ्यर्थियों की उम्मीदें
झारखंड में वर्तमान में लगभग 3.5 लाख प्रशिक्षित अभ्यर्थी हैं, जिनमें से अधिकांश 2011 से 2019 के बीच प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं। इनमें बड़ी संख्या ऐसी है जो उम्र की सीमा पार करने के कगार पर हैं। यदि जल्द परीक्षा न कराई गई तो उनका सपना टूट सकता है।
अब जबकि हाईकोर्ट ने समयसीमा तय कर दी है, इन अभ्यर्थियों को उम्मीद है कि आखिरकार उन्हें अपनी मेहनत का फल मिलेगा और वे राज्य के विद्यालयों में शिक्षक बनकर योगदान दे सकेंगे।
निष्कर्ष
झारखंड में नौ वर्षों से लंबित JTET परीक्षा को लेकर हाईकोर्ट का आदेश राज्य सरकार और शिक्षा विभाग के लिए एक कड़ा संदेश है। अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब और बहाने नहीं चलेंगे और 31 मार्च 2026 तक परीक्षा हर हाल में करानी ही होगी।
यह आदेश न केवल अभ्यर्थियों के लिए राहत की खबर है, बल्कि राज्य की शिक्षा व्यवस्था के लिए भी सकारात्मक कदम है। अब देखना यह होगा कि सरकार समयसीमा का पालन करती है या एक बार फिर अभ्यर्थियों को इंतजार करना पड़ता है।
👉 यह पूरा मामला दर्शाता है कि शिक्षा से जुड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में देरी केवल नौकरियों पर ही असर नहीं डालती, बल्कि समाज की भविष्य पीढ़ी की नींव को भी प्रभावित करती है।
