बिहार के 12 जिलों के किसानों के लिए बड़ी सौगात: जैविक खेती को बढ़ावा देने हेतु 23.56 करोड़ रुपये स्वीकृत
बिहार के किसानों के लिए यह सप्ताह एक खुशखबरी लेकर आया है। नमामि गंगे स्वच्छता अभियान के अंतर्गत राज्य सरकार ने गंगा नदी के किनारे बसे 12 जिलों में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए ₹23.56 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की है। इस महत्वपूर्ण योजना का उद्देश्य न केवल किसानों की आमदनी बढ़ाना है, बल्कि गंगा नदी की स्वच्छता, पारंपरिक कृषि का पुनरोद्धार और सतत कृषि विकास को भी सुनिश्चित करना है।
यह राशि प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) के माध्यम से किसानों के बैंक खातों में भेजी जाएगी, जिससे पारदर्शिता बनी रहेगी और किसानों को समय पर सहायता प्राप्त हो सके।
नमामि गंगे और परंपरागत कृषि विकास योजना का संगम
यह योजना नमामि गंगे मिशन के तहत परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) के तृतीय वर्ष (2025-26) के लिए लागू की जा रही है। इस पहल का क्रियान्वयन गंगा के किनारे स्थित पंचायतों में किया जाएगा, ताकि रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग को कम कर जैविक खेती को बढ़ावा मिल सके।
किन जिलों को मिलेगा लाभ?
इस योजना का लाभ बिहार के निम्नलिखित 12 गंगा तटवर्ती जिलों के किसानों को मिलेगा:
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पटना
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बेगूसराय
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समस्तीपुर
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बक्सर
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सारण (छपरा)
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कटिहार
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भोजपुर (आरा)
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भागलपुर
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खगड़िया
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मुंगेर
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वैशाली
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लखीसराय
उप मुख्यमंत्री और कृषि मंत्री विजय कुमार सिन्हा ने इस बात की जानकारी देते हुए कहा कि इस परियोजना से हजारों किसानों को सीधा लाभ मिलेगा और राज्य में जैविक उत्पादों की खेती को एक नई पहचान मिलेगी।
योजना की विशेषताएं
✅ प्रति हेक्टेयर 16,500 रुपये का अनुदान:
इस योजना के तहत प्रति हेक्टेयर ₹16,500 रुपये की सहायता दी जाएगी, जिसका उपयोग जैविक खाद, बीज, जैविक कीटनाशक और अन्य आवश्यक सामग्रियों की खरीद में किया जाएगा।
✅ अधिकतम दो हेक्टेयर तक सहायता:
एक किसान को अधिकतम दो हेक्टेयर भूमि तक यह अनुदान प्राप्त होगा, जिससे छोटे और सीमांत किसानों को सीधा लाभ होगा।
✅ सेवा प्रदाताओं को भी मिलेगा भुगतान:
इसके अलावा, योजना के तहत किसानों को प्रशिक्षण और प्रमाणीकरण की सुविधा प्रदान करने वाले सेवा प्रदाताओं को भी प्रति हेक्टेयर ₹2500 की दर से भुगतान किया जाएगा।
✅ पीजीएस प्रमाणीकरण:
किसानों को Participatory Guarantee System (PGS) के तहत प्रमाणीकरण भी मिलेगा, जिससे वे अपने उत्पादों को जैविक प्रमाणित उत्पाद के रूप में बाजार में बेच सकेंगे और बेहतर मूल्य प्राप्त कर सकेंगे।
DBT के ज़रिए पारदर्शी भुगतान
इस योजना की एक खास बात यह है कि सरकार द्वारा स्वीकृत अनुदान राशि को सीधे किसानों के बैंक खातों में भेजा जाएगा। इससे न केवल पारदर्शिता बनी रहेगी, बल्कि भ्रष्टाचार की संभावना भी न्यूनतम रहेगी। किसानों को समय पर आर्थिक सहायता मिलने से उनकी खेती की लागत में कमी आएगी और उत्पादन में वृद्धि होगी।
गंगा की स्वच्छता से जुड़ती खेती
गौरतलब है कि जैविक खेती से केवल किसानों को ही लाभ नहीं मिलेगा, बल्कि यह गंगा नदी की स्वच्छता में भी अहम भूमिका निभाएगा। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग से अक्सर नदियों में प्रदूषण फैलता है, जिससे जल जीवन चक्र प्रभावित होता है। जैविक खेती इस खतरे को कम करने का सतत समाधान प्रस्तुत करती है।
केंद्र और राज्य सरकार की साझेदारी
यह योजना केंद्र प्रायोजित (Centrally Sponsored Scheme) है, जिसमें:
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60% खर्च केंद्र सरकार
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और 40% खर्च राज्य सरकार वहन करती है।
यह साझेदारी दर्शाती है कि केंद्र और राज्य दोनों ही कृषि सुधार और पर्यावरण सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्ध हैं।
किसानों को मिलेगा बहु-आयामी लाभ
इस योजना से जुड़ने वाले किसानों को केवल आर्थिक ही नहीं, बल्कि तकनीकी और विपणन संबंधी सहायता भी दी जाएगी:
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जैविक खेती के प्रशिक्षण कार्यक्रम
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भूमि परीक्षण और सुधार
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स्थानीय स्तर पर जैविक उत्पादों के विपणन की सुविधा
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कृषि मेले और प्रदर्शनियों में भागीदारी
निष्कर्ष: पर्यावरण भी सुरक्षित, किसान भी सशक्त
नमामि गंगे स्वच्छता अभियान और PKVY योजना के समन्वय से बिहार में एक नई हरित क्रांति की शुरुआत हो रही है। यह पहल सिर्फ खेती के तरीके को नहीं बदल रही, बल्कि यह गंगा नदी के किनारे बसे गांवों को आर्थिक और पर्यावरणीय रूप से सशक्त भी बना रही है।
बिहार सरकार का यह कदम आने वाले वर्षों में जैविक खेती को नई पहचान देगा और किसानों को आत्मनिर्भर बनने की दिशा में महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान करेगा। यदि इस योजना का क्रियान्वयन समयबद्ध और प्रभावी तरीके से होता है, तो यह बिहार को देश के जैविक कृषि मानचित्र पर प्रमुख स्थान दिलाने में सक्षम होगा।