UP News: राजा भैया बोले- संविधान से हटाए जाएं ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’, इंदिरा गांधी पर साधा निशाना
उत्तर प्रदेश की राजनीति में हमेशा अपने बयानों और अंदाज के लिए सुर्खियों में रहने वाले कुंडा के विधायक और जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के प्रमुख रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने अब संविधान को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द हटाने की मांग की है। उनके इस बयान ने सियासी हलचल और बढ़ा दी है, क्योंकि इन शब्दों को लेकर लंबे समय से बहस जारी रही है।
‘आपातकाल की तानाशाही में जोड़े गए शब्द’
राजा भैया ने एक निजी न्यूज चैनल के पॉडकास्ट में बातचीत करते हुए कहा कि संविधान की वही प्रस्तावना रहनी चाहिए जो संविधान निर्माताओं ने बनाई थी। उनके मुताबिक, इंदिरा गांधी ने आपातकाल (1975) के दौरान 42वें संविधान संशोधन के जरिए समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्दों को प्रस्तावना में जोड़ा था, और यह कदम पूरी तरह से तानाशाही था।
उन्होंने कहा, “जब प्रस्तावना से समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द हटेंगे, तभी संविधान अपनी मूल भावना में लौटेगा।”
कांग्रेस पर सीधा हमला
राजा भैया ने अपने बयान में कांग्रेस पर भी सीधा हमला बोला। उन्होंने सवाल उठाया कि कांग्रेस कभी असल में समाजवादी रही ही नहीं। उनके अनुसार, “समाजवाद से तो कांग्रेस का छत्तीस का आंकड़ा है। इंदिरा गांधी ने इसे संशोधन करके जोड़ा, जबकि संविधान सभा में मौजूद विद्वानों ने इसे शामिल नहीं किया था।”
राजा भैया ने यह भी तंज कसा कि अगर ये शब्द इतने जरूरी थे तो क्या इंदिरा गांधी बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर या सरदार वल्लभभाई पटेल से ज्यादा विद्वान थीं?
धर्मनिरपेक्षता पर राय – सनातन परंपरा से मिली पहचान
धर्मनिरपेक्षता पर अपनी राय रखते हुए राजा भैया ने कहा कि भारत का धर्मनिरपेक्ष चरित्र किसी राजनीतिक पार्टी या संविधान संशोधन की देन नहीं है, बल्कि यह सनातन परंपरा से आया है। उन्होंने कहा कि भारत हमेशा से एक ऐसा देश रहा है, जहां विभिन्न धर्मों और पंथों को साथ लेकर चलने की परंपरा रही है।
राजा भैया ने दावा किया कि “हिंदुओं ने कभी मुसलमानों से अलग होने की बात नहीं कही, बल्कि पाकिस्तान जाने वालों को रोका और कहा कि भाईचारे के साथ यहीं रहिए। इसी कारण आज भारत धर्मनिरपेक्ष है।”
हिंदू राष्ट्र पर भी दी राय
राजा भैया से जब पूछा गया कि क्या वे भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की वकालत करते हैं तो उन्होंने साफ कहा कि हां, वे चाहते हैं कि भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित किया जाए। हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इससे किसी अन्य धर्म के लोगों के अधिकारों पर आंच नहीं आएगी, क्योंकि भारत की परंपरा ही सबको साथ लेकर चलने की रही है।
क्यों उठती है बार-बार यह बहस?
संविधान की प्रस्तावना से समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द हटाने की बहस कोई नई नहीं है। समय-समय पर यह मुद्दा राजनीतिक दलों के बीच उठता रहा है।
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समर्थकों का तर्क है कि यह दोनों शब्द संविधान सभा द्वारा तय की गई मूल प्रस्तावना का हिस्सा नहीं थे।
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जबकि विरोधी पक्ष का कहना है कि ये शब्द भारत की लोकतांत्रिक और समावेशी पहचान को और मजबूत करते हैं।
राजा भैया के ताजा बयान से एक बार फिर यह मुद्दा गरमा गया है और कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल उन पर निशाना साध सकते हैं।
राजनीतिक मायने
राजा भैया का यह बयान केवल वैचारिक विमर्श नहीं है, बल्कि इसके राजनीतिक मायने भी गहरे हैं। यूपी में अगले चुनावों से पहले इस तरह के बयान बहस का मुद्दा बन सकते हैं। जहां एक ओर भाजपा और अन्य दक्षिणपंथी दल इस विचारधारा से सहमत नजर आ सकते हैं, वहीं कांग्रेस और समाजवादी खेमे इसका पुरजोर विरोध करेंगे।
निष्कर्ष
संविधान की प्रस्तावना में बदलाव का यह मुद्दा न केवल कानूनी और राजनीतिक बहस को जन्म देता है, बल्कि यह भारत की वैचारिक दिशा को लेकर भी सवाल खड़ा करता है। राजा भैया का यह कहना कि इंदिरा गांधी ने तानाशाही में शब्द जोड़े और भारत की धर्मनिरपेक्षता सनातन परंपरा से आती है, निश्चित रूप से आने वाले समय में और विवाद खड़ा करेगा।
फिलहाल इतना तय है कि ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को लेकर देश में एक बार फिर सियासत तेज हो गई है।