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11 Sep 2025, Thu

पेरेंटिंग कोच ने बताए बच्चों के साथ न करने योग्य 5 व्यवहार

पेरेंटिंग कोच ने बताए बच्चों के साथ न करने योग्य 5 व्यवहार

 पेरेंटिंग कोच ने बताए बच्चों के साथ न करने योग्य 5 व्यवहार

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में बच्चों की परवरिश माता-पिता के लिए एक चुनौती बनती जा रही है। बदलते दौर में जहां बच्चे पहले से कहीं ज्यादा संवेदनशील और जागरूक हो चुके हैं, वहीं माता-पिता की जिम्मेदारी भी बढ़ गई है कि वे उन्हें सही मार्गदर्शन दें। हाल ही में पेरेंटिंग कोच आंचल जिंदल ने एक महत्वपूर्ण संदेश देते हुए उन पाँच गलत व्यवहारों के बारे में बताया है, जिन्हें माता-पिता को अपने बच्चों के साथ कभी नहीं करना चाहिए। उनका कहना है कि अगर ये गलतियां बार-बार की जाएं तो बच्चे के व्यक्तित्व पर गहरा असर पड़ता है और वह आत्मविश्वासहीन, विद्रोही या डरा-सहमा बन सकता है।

आइए विस्तार से समझते हैं कि कौन-से 5 व्यवहार बच्चों के साथ करने से बचना चाहिए और क्यों यह उनकी मानसिक और भावनात्मक सेहत के लिए हानिकारक है।


1. बच्चों को मारना-पीटना

आंचल जिंदल के अनुसार बच्चों को मारने-पीटने से वे अनुशासित नहीं होते, बल्कि उनके अंदर डर घर कर जाता है। ऐसा बच्चा अक्सर आत्मविश्वासी नहीं रह पाता और हर स्थिति से भागने की कोशिश करता है।

  • शोध बताते हैं कि जिन बच्चों को नियमित रूप से मारा-पीटा जाता है, वे आगे चलकर ज्यादा गुस्सैल, डरपोक और असामाजिक व्यवहार दिखाते हैं।

  • शारीरिक सज़ा बच्चों की सीखने की क्षमता को कमजोर करती है और वे माता-पिता से दूरी बनाने लगते हैं।

  • बेहतर होगा कि बच्चे की गलती पर उसे समझाने का तरीका अपनाया जाए। उदाहरण देकर या शांतिपूर्वक समझाकर बच्चे को सही-गलत का बोध कराना ज्यादा प्रभावी होता है।


2. ताना मारना और बार-बार आलोचना करना

हर बच्चा अलग होता है और उसकी सीखने की क्षमता भी अलग होती है। जब माता-पिता लगातार ताने मारते हैं—जैसे “तुम कभी ठीक से नहीं कर सकते” या “तुम हमेशा गलत ही करते हो”—तो बच्चा कोशिश करना ही छोड़ देता है।

  • मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि नकारात्मक आलोचना बच्चे की रचनात्मकता को खत्म कर देती है।

  • बच्चा धीरे-धीरे यह मानने लगता है कि चाहे वह कितनी भी मेहनत कर ले, उसे सराहना नहीं मिलेगी।

  • आलोचना की जगह प्रेरित करने वाले शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए। जैसे—”तुम थोड़ी और मेहनत करोगे तो यह काम बहुत अच्छा कर सकते हो।”


3. मजाक उड़ाना या शर्मिंदा करना

बच्चों के साथ मजाक करना एक सीमा तक ठीक है, लेकिन जब यह उनकी कमजोरी या असफलता को लेकर हो तो यह घातक साबित होता है।

  • सार्वजनिक रूप से या घर में भाई-बहनों के सामने बच्चे को शर्मिंदा करना उसके आत्मविश्वास को तोड़ देता है।

  • ऐसा बच्चा धीरे-धीरे बोलने या खुद को प्रस्तुत करने से डरने लगता है।

  • कई बार यह प्रवृत्ति उन्हें अंतर्मुखी बना देती है और वे अपनी भावनाएं साझा करने से कतराने लगते हैं।
    माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चे की गलती पर उसे डांटने की बजाय अलग से प्यार से समझाएं ताकि उसका आत्म-सम्मान बना रहे।


4. बच्चे पर भरोसा न करना

हर रिश्ते की नींव विश्वास पर टिकी होती है। जब माता-पिता अपने बच्चों पर भरोसा नहीं करते, तो बच्चे विद्रोही हो जाते हैं।

  • उदाहरण के लिए, अगर बच्चा कहे कि उसने होमवर्क कर लिया है और आप हर बार उस पर शक करते हैं, तो धीरे-धीरे वह झूठ बोलना शुरू कर देगा।

  • भरोसा न मिलने से बच्चों को लगता है कि उनकी बातों की कोई कीमत नहीं है।

  • विशेषज्ञों के अनुसार, बच्चों को जिम्मेदार बनाने का सबसे अच्छा तरीका है कि उन पर भरोसा किया जाए और उनकी छोटी-छोटी जिम्मेदारियों की सराहना की जाए।
    अगर बच्चा किसी काम में असफल भी हो जाए तो भी उसे यह विश्वास दिलाना चाहिए कि अगली बार वह और बेहतर करेगा।


5. बच्चे की तारीफ न करना

हर इंसान की तरह बच्चे भी चाहते हैं कि उनकी मेहनत और उपलब्धियों की सराहना की जाए। लेकिन कई बार माता-पिता बच्चों की तारीफ करने से बचते हैं, यह सोचकर कि कहीं वे घमंडी न बन जाएं।

  • वास्तविकता यह है कि तारीफ से बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ता है और वे खुद को पसंद करने लगते हैं।

  • जब बच्चों की मेहनत की प्रशंसा होती है तो वे और ज्यादा अच्छा करने की कोशिश करते हैं।

  • तारीफ का मतलब यह नहीं कि हर छोटी चीज़ पर तालियां बजाई जाएं, बल्कि सही समय पर, सही तरीके से प्रोत्साहित करना जरूरी है। जैसे—”मुझे अच्छा लगा कि तुमने अपना प्रोजेक्ट समय पर पूरा किया।”


✦ पेरेंटिंग में संतुलन की जरूरत

पेरेंटिंग एक कला है जिसमें सख्ती और प्यार, दोनों का संतुलन जरूरी है। बच्चे को अनुशासित बनाना आवश्यक है लेकिन इसके लिए हिंसा, ताने या मजाक का सहारा लेना सही नहीं है।

  • सकारात्मक संवाद और भरोसे पर आधारित रिश्ता बच्चे को आत्मनिर्भर और जिम्मेदार बनाता है।

  • बच्चों को यह महसूस होना चाहिए कि उनकी भावनाएं भी महत्वपूर्ण हैं और उनकी बात सुनी जाती है।

  • अगर माता-पिता बच्चों के साथ दोस्ताना रिश्ता रखते हैं, तो बच्चे अपनी समस्याएं आसानी से साझा करते हैं।


✦ विशेषज्ञों की राय

कई मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि माता-पिता को “सकारात्मक पेरेंटिंग” अपनानी चाहिए। इसमें डांट-फटकार की जगह बच्चे की अच्छाइयों पर ध्यान दिया जाता है और गलतियों से सीखने का अवसर दिया जाता है।

  • सकारात्मक पेरेंटिंग से बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ता है।

  • वह चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहता है।

  • सबसे अहम बात यह कि वह अपने माता-पिता को अपना सहारा मानता है, डर नहीं।


✦ निष्कर्ष

आंचल जिंदल का यह संदेश हर माता-पिता के लिए एक आईना है। बच्चों के साथ मार-पीट, ताना, मजाक, अविश्वास और तारीफ की कमी जैसे व्यवहार उनके भविष्य को कमजोर बना सकते हैं। अगर माता-पिता इन पाँच गलतियों से बचें और बच्चों के साथ प्यार, सम्मान और भरोसे का रिश्ता बनाएँ, तो निश्चित ही बच्चे आत्मविश्वासी, संवेदनशील और सफल इंसान बनेंगे।

बच्चों की परवरिश केवल पढ़ाई-लिखाई तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उनके पूरे व्यक्तित्व को गढ़ने की प्रक्रिया है। और इसमें माता-पिता की सोच और व्यवहार सबसे अहम भूमिका निभाते हैं।

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