द्वितीय विश्व युद्ध ने पूरी मानव सभ्यता को जिस प्रकार हिला कर रख दिया था, उसमें हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमलों का अध्याय सबसे भयावह और निर्णायक माना जाता है। 6 अगस्त 1945 की सुबह अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा शहर पर ‘लिटिल बॉय’ नामक परमाणु बम गिराया। यह पहला मौका था जब किसी देश ने युद्ध में परमाणु हथियार का प्रयोग किया। मात्र तीन दिन बाद, 9 अगस्त 1945 को नागासाकी पर ‘फैट मैन’ बम गिराया गया। इन दो हमलों ने जापान को घुटनों पर लाकर खड़ा कर दिया और द्वितीय विश्व युद्ध का अंत सुनिश्चित कर दिया।
कैसा था ‘लिटिल बॉय’?
‘लिटिल बॉय’ यूरेनियम-235 पर आधारित परमाणु बम था। इसे B-29 बमवर्षक विमान ‘Enola Gay’ से गिराया गया। यह बम लगभग 4 टन वजन का था और इसमें महज 64 किलो यूरेनियम-235 प्रयुक्त किया गया था। विस्फोट के समय 600 मीटर की ऊंचाई पर हवा में ही यह बम फट गया और देखते ही देखते हिरोशिमा शहर राख के ढेर में बदल गया। अनुमान है कि विस्फोट के तत्काल प्रभाव में ही लगभग 70,000 लोग मारे गए और आने वाले वर्षों में विकिरण के प्रभाव से यह संख्या एक लाख से अधिक पहुंच गई।
‘फैट मैन’ का कहर
हिरोशिमा पर हमले के बाद भी जापान ने समर्पण की घोषणा नहीं की। इसी कारण अमेरिका ने दूसरा परमाणु हमला करने का निर्णय लिया। 9 अगस्त को नागासाकी पर ‘फैट मैन’ गिराया गया। यह प्लूटोनियम-239 पर आधारित बम था और इसका आकार ‘लिटिल बॉय’ से भिन्न था। इसका विस्फोट हिरोशिमा की तुलना में कहीं अधिक शक्तिशाली था, परंतु नागासाकी की भौगोलिक स्थिति के कारण क्षति कुछ हद तक सीमित रही। इसके बावजूद, यहां भी हजारों लोगों की जान चली गई।
परमाणु हमले का उद्देश्य
अमेरिका के इस निर्णय के पीछे कई रणनीतिक कारण थे। एक प्रमुख कारण यह था कि जापान तब तक आत्मसमर्पण को तैयार नहीं था और यदि जमीनी लड़ाई होती तो दोनों पक्षों में लाखों सैनिकों और नागरिकों की मौत होने की आशंका थी। अमेरिका ने यह कदम युद्ध शीघ्र समाप्त करने के लिए उठाया। साथ ही, सोवियत संघ को भी शक्ति प्रदर्शन का संदेश देने का यह अवसर था।
हमलों के मानवीय परिणाम
हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराने के मानवीय परिणाम अत्यंत भयावह रहे। विस्फोट के तुरंत बाद हजारों लोग जलकर राख हो गए। विकिरण के प्रभाव से कैंसर और अन्य बीमारियों ने दशकों तक लोगों को मारा। कई नवजात विकलांग पैदा हुए। इस त्रासदी ने पूरी दुनिया को चेताया कि परमाणु हथियार किस हद तक विनाशकारी हो सकते हैं।
युद्ध का अंत और नया युग
14 अगस्त 1945 को जापान ने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया। आधिकारिक रूप से 2 सितंबर 1945 को टोक्यो बे में आत्मसमर्पण के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए गए। यह द्वितीय विश्व युद्ध का अंतिम अध्याय था। लेकिन इसी के साथ एक नया युग आरंभ हुआ—परमाणु युग।
परमाणु हथियारों के प्रयोग पर विश्व की सोच
हिरोशिमा और नागासाकी के बाद अब तक किसी देश ने युद्ध में परमाणु हथियार का प्रयोग नहीं किया। संयुक्त राष्ट्र समेत दुनिया भर में परमाणु अप्रसार के प्रयास तेज हुए। 1968 में परमाणु अप्रसार संधि (NPT) अस्तित्व में आई। आज भी ये हमले मानव इतिहास की सबसे बड़ी चेतावनी माने जाते हैं कि विज्ञान का गलत प्रयोग सभ्यता को मिटा सकता है।
आज की सीख
हर वर्ष 6 अगस्त को ‘हिरोशिमा डे’ के रूप में याद किया जाता है। इस दिन पूरी दुनिया शांति और परमाणु निरस्त्रीकरण का संकल्प लेती है। यह हमें याद दिलाता है कि शक्ति का सही उपयोग ही मानवता के लिए कल्याणकारी होता है।
निष्कर्ष
हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु हमलों की कहानी सिर्फ इतिहास की एक घटना नहीं, बल्कि चेतावनी है। यह उदाहरण है कि युद्ध में जीत के लिए उठाया गया एक कदम किस हद तक अमानवीय परिणाम दे सकता है। आज जब विश्व में फिर से तनाव बढ़ रहे हैं, यह और अधिक जरूरी हो जाता है कि हम इतिहास से सीखें और शांति का मार्ग अपनाएं।