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26 Jul 2025, Sat

आँखों की सेहत: कब और क्यों ज़रूरी है आँखों की नियमित जांच? जानें विशेषज्ञों की राय

आँखों की सेहत: कब और क्यों ज़रूरी है आँखों की नियमित जांच? जानें विशेषज्ञों की राय

आँखों की सेहत: कब और क्यों ज़रूरी है आँखों की नियमित जांच? जानें विशेषज्ञों की राय

नई दिल्ली: हमारी आँखें, इस रंगीन दुनिया को देखने और समझने का सबसे महत्वपूर्ण जरिया हैं। लेकिन, अक्सर हम अपने शरीर के इस बेहद संवेदनशील हिस्से की देखभाल में लापरवाही बरतते हैं। अनियमित दिनचर्या, डिजिटल स्क्रीन का बढ़ता उपयोग और प्रदूषण, हमारी आँखों पर लगातार दबाव डाल रहे हैं। ऐसे में, आँखों की नियमित जांच का महत्व और भी बढ़ जाता है। दिल्ली के नामी विज़न आई सेंटर (Vision Eye Center), सिरु फोर्ट के प्रख्यात नेत्र विशेषज्ञ डॉ. तुषार ग्रोवर ने आँखों की जांच की आवृत्ति और उसके महत्व पर महत्वपूर्ण जानकारी साझा की है, जिस पर गहन शोध कर यह विस्तृत रिपोर्ट तैयार की गई है।
बचपन से ही आँखों की देखभाल क्यों है महत्वपूर्ण?
डॉ. तुषार ग्रोवर के अनुसार, बच्चों की आँखों की पहली जांच छह महीने की उम्र में ही करा लेनी चाहिए। इसके बाद, तीन साल की उम्र तक प्रति वर्ष आँखों की जांच करवाना अनिवार्य है। यह सलाह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि बच्चों की दृष्टि का विकास शुरुआती वर्षों में होता है। इस अवस्था में पता चलने वाली कोई भी समस्या, जैसे कि “आलसी आँख” (Amblyopia) या भेंगापन (Strabismus), अगर समय पर ठीक न की जाए तो जीवन भर के लिए दृष्टि हानि का कारण बन सकती है।

बच्चों में सामान्य नेत्र समस्याएँ और पहचान:
बच्चों में अक्सर रिफ्रैक्टिव एरर (जैसे मायोपिया या निकट दृष्टिदोष, हाइपरमेट्रोपिया या दूर दृष्टिदोष), एम्बलियोपिया, स्ट्रैबिस्मस और जन्मजात मोतियाबिंद जैसी समस्याएँ देखने को मिलती हैं। चूंकि छोटे बच्चे अपनी समस्याओं को खुलकर बता नहीं पाते, इसलिए माता-पिता को कुछ संकेतों पर ध्यान देना चाहिए:
* आँखें मलना या उन्हें बार-बार छूना।
* पढ़ते समय या कुछ देखते समय आँखें सिकोड़ना।
* चीजों को बहुत पास से देखना।
* स्कूल में प्रदर्शन में गिरावट।
* सिरदर्द या मतली की शिकायत।
* आँखों में लाली या पानी आना।
* एक आँख का दूसरे से अलग दिशा में होना।

इनमें से कोई भी लक्षण दिखने पर तुरंत नेत्र विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। बचपन में ही सही उपचार से बच्चों को सामान्य और स्वस्थ दृष्टि विकसित करने में मदद मिलती है, जो उनके सीखने की क्षमता और समग्र विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

 

युवा और मध्यम आयु वर्ग के वयस्कों के लिए दिशानिर्देश (18-40 वर्ष):
डॉ. ग्रोवर की सलाह है कि 18 से 40 वर्ष की आयु के वयस्कों को वर्ष में एक बार अपनी आँखों की जांच अवश्य करानी चाहिए। यह आयु वर्ग अक्सर अपनी आँखों पर काफी दबाव डालता है, खासकर डिजिटल उपकरणों के अत्यधिक उपयोग के कारण। कंप्यूटर, स्मार्टफोन और टैबलेट का लगातार उपयोग डिजिटल आई स्ट्रेन (Digital Eye Strain) का कारण बन सकता है, जिसके लक्षणों में आँखों में सूखापन, जलन, थकान, धुंधली दृष्टि और सिरदर्द शामिल हैं।

इस आयु वर्ग में सामान्य नेत्र समस्याएँ:

* रिफ्रैक्टिव एरर: मायोपिया, हाइपरमेट्रोपिया और एस्टिग्मेटिज्म (दृष्टि वैषम्य) सबसे आम हैं, जिनके लिए चश्मे या कॉन्टैक्ट लेंस की आवश्यकता होती है।
* डिजिटल आई स्ट्रेन: लंबी अवधि तक स्क्रीन के सामने रहने से उत्पन्न थकान और बेचैनी।
* ग्लूकोमा का प्रारंभिक चरण: कुछ व्यक्तियों में, ग्लूकोमा (काला मोतिया) के लक्षण इस उम्र में भी शुरू हो सकते हैं, खासकर यदि परिवार में इसका इतिहास रहा हो।

* डायबिटिक रेटिनोपैथी: मधुमेह के रोगियों में, आँखों की रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुँच सकता है, जिससे दृष्टि प्रभावित हो सकती है। नियमित जांच से इसे शुरुआती चरण में पहचाना जा सकता है।
नियमित जांच से न केवल चश्मे के नंबर का पता चलता है, बल्कि नेत्र विशेषज्ञ आँखों के अंदर की संरचना का भी निरीक्षण करते हैं, जिससे ग्लूकोमा या मधुमेह से संबंधित रेटिनोपैथी जैसी गंभीर बीमारियों का प्रारंभिक अवस्था में पता लगाया जा सकता है, जब वे अभी भी उपचार योग्य होती हैं।

 

40 वर्ष से अधिक उम्र के वयस्कों के लिए: बढ़ती उम्र और आँखों की चुनौतियाँ:
हालांकि डॉ. ग्रोवर की सलाह मुख्य रूप से 18-40 आयु वर्ग पर केंद्रित है, यह समझना महत्वपूर्ण है कि 40 वर्ष की आयु के बाद आँखों की जांच की आवृत्ति और भी बढ़ जाती है। इस उम्र में आँखों में कई परिवर्तन आने लगते हैं:

* प्रेसबायोपिया (Presbyopia): निकट की वस्तुओं को देखने में कठिनाई, जिसके लिए पढ़ने के चश्मे की आवश्यकता होती है।
* मोतियाबिंद (Cataracts): आँखों के लेंस का धुंधला होना, जिससे धीरे-धीरे दृष्टि कम होती जाती है।
* ग्लूकोमा (Glaucoma): ऑप्टिक तंत्रिका को नुकसान, अक्सर आँखों के अंदर दबाव बढ़ने के कारण होता है। अनुपचारित रहने पर यह स्थायी दृष्टि हानि का कारण बन सकता है।
* मैकुलर डीजेनरेशन (Macular Degeneration): रेटिना के केंद्रीय भाग (मैकुला) का बिगड़ना, जिससे केंद्रीय दृष्टि प्रभावित होती है।

* डायबिटिक रेटिनोपैथी: मधुमेह के रोगियों में आँखों की समस्याएँ और भी गंभीर हो सकती हैं।
40 की उम्र के बाद, नेत्र विशेषज्ञों द्वारा आमतौर पर हर 1-2 साल में जांच कराने की सलाह दी जाती है, खासकर यदि कोई अंतर्निहित स्वास्थ्य समस्याएँ हों या परिवार में आँखों की बीमारियों का इतिहास रहा हो।
आँखों की जांच में क्या होता है?
एक नियमित नेत्र जांच सिर्फ चश्मे का नंबर जानने तक सीमित नहीं होती। इसमें कई महत्वपूर्ण परीक्षण शामिल होते हैं:
* दृश्य तीक्ष्णता परीक्षण (Visual Acuity Test): यह स्नेलन चार्ट का उपयोग करके आपकी दूर और निकट दृष्टि की क्षमता को मापता है।
* रिफ्रैक्शन (Refraction): यह निर्धारित करता है कि आपको स्पष्ट दृष्टि के लिए किस लेंस की शक्ति की आवश्यकता है।
* स्लिट लैंप परीक्षा (Slit Lamp Exam): एक माइक्रोस्कोप और तेज रोशनी का उपयोग करके आँख के सामने और पीछे के हिस्सों की विस्तार से जांच की जाती है।

* इंट्राओकुलर प्रेशर मापन (Intraocular Pressure Measurement): यह आँखों के अंदर के दबाव को मापता है, जो ग्लूकोमा की जांच के लिए महत्वपूर्ण है।
* फंडस परीक्षा (Fundus Exam): पुतलियों को फैलाकर रेटिना, ऑप्टिक तंत्रिका और रक्त वाहिकाओं की जांच की जाती है। यह मधुमेह रेटिनोपैथी, मैकुलर डीजेनरेशन और ग्लूकोमा जैसी स्थितियों का पता लगाने में मदद करता है।
आँखों को स्वस्थ रखने के लिए सामान्य सुझाव:
नियमित जांच के अतिरिक्त, कुछ जीवनशैली बदलाव भी आँखों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं:
* संतुलित आहार: विटामिन ए, सी, ई, जिंक और ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर आहार लें (जैसे गाजर, पालक, मछली, नट्स)।
* स्क्रीन टाइम सीमित करें: डिजिटल उपकरणों का उपयोग करते समय 20-20-20 नियम का पालन करें (हर 20 मिनट पर, 20 सेकंड के लिए 20 फीट दूर देखें)।
* पर्याप्त नींद: आँखों को आराम देने के लिए पर्याप्त नींद लें।

* धूप का चश्मा पहनें: बाहर धूप में निकलते समय यूवी किरणों से बचाने वाले धूप के चश्मे का उपयोग करें।
* धूम्रपान से बचें: धूम्रपान आँखों की कई गंभीर बीमारियों के जोखिम को बढ़ाता है।
* आँखों को रगड़ने से बचें: यह संक्रमण का कारण बन सकता है।
* स्वच्छता: कॉन्टैक्ट लेंस पहनते समय या आँखों को छूने से पहले हाथों को अच्छी तरह धो लें।
कब तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें?
डॉ. ग्रोवर विशेष रूप से उन लक्षणों पर जोर देते हैं जिनके दिखने पर बिना देर किए नेत्र विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए:
* धुंधला दिखना: अचानक या धीरे-धीरे दृष्टि का धुंधला होना।
* सिरदर्द: आँखों पर पड़ने वाले तनाव के कारण होने वाला लगातार सिरदर्द।
* आँखों में दर्द: लगातार या तीव्र आँखों का दर्द।
* अचानक दृष्टि हानि: एक या दोनों आँखों में अचानक अंधेरा छा जाना।
* प्रकाश की चमक या फ्लोटर्स (तैरती हुई चीजें) दिखना: ये रेटिना डिटैचमेंट का संकेत हो सकते हैं।
* दोहरा दिखना (Double Vision)।
* आँखों में लाली, सूजन या डिस्चार्ज।
* आँखों में खुजली या जलन जो दूर न हो।

 

संक्षेप में, हमारी आँखें अमूल्य हैं। उनकी देखभाल करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। डॉ. तुषार ग्रोवर की सलाह हमें एक स्पष्ट मार्गदर्शिका प्रदान करती है कि हमें कब और कितनी बार अपनी आँखों की जांच करवानी चाहिए। याद रखें, आँखों की समस्याओं का प्रारंभिक निदान और उपचार ही दृष्टि को बनाए रखने की कुंजी है। अपनी आँखों को अनदेखा न करें, उन्हें वह देखभाल दें जिसके वे हकदार हैं।

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