अमेरिकी टैरिफ का जवाब: LPU ने कैंपस में लगाया अमेरिकी पेय पदार्थों पर प्रतिबंध
परिदृश्य और प्रारंभिक घोषणा
Lovely Professional University (LPU) के संस्थापक और चांसलर, डॉ. अशोक कुमार मित्तल — जो राज्यसभा सदस्य भी हैं — ने 28 अगस्त 2025 को एक ऐतिहासिक घोषणा की: अमेरिकी सॉफ्ट ड्रिंक्स, विशेषकर कोक और अन्य पेय पदार्थों को LPU कैंपस में पूरी तरह से प्रतिबंधित किया जाएगा। यह कदम उस समय उठाया गया जब अमेरिका ने भारत पर अपने निर्यातों पर 50% तक की भारी दर से टैक्स लगाया था। मित्तल ने इसे “अन्यायपूर्ण और दबाव की नीति” बताते हुए इस पर कड़ा जवाब दिया।
उद्देश्य: “स्वदेशी 2.0” का संदेश
डॉ. मित्तल ने इसे एक प्रतीकात्मक आंदोलन बताया जिसे उन्होंने “स्वदेशी 2.0” नाम दिया। उन्होंने 1905 के स्वदेशी आंदोलन का उदाहरण देते हुए कहा—
“अगर हमारे पूर्वजों ने उपनिवेशकाल में ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार कर सकता था, तो हम अब—स्वतंत्र भारत में—अमेरिका जैसी महाशक्ति के दबाव में क्यों झुकें?”
इस बयान से साफ है कि उनका उद्देश्य केवल कैंपस तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे देश में आत्मनिर्भरता और स्वदेशी उत्पादों के प्रयोग का संदेश फैलाना है।
निष्पादन और समर्थन
LPU में यह प्रतिबंध तुरंत प्रभाव से लागू कर दिया गया। विश्वविद्यालय परिसर में उपलब्ध अमेरिकी ड्रिंक्स को हटाने का काम तेज़ी से किया गया और इसके स्थान पर भारतीय कंपनियों के पेय पदार्थ उपलब्ध कराए जाने लगे। इस पहल को छात्रों और शिक्षकों से भी सकारात्मक समर्थन मिला।
कई लोगों ने इस कदम को साहसिक और समयोचित बताया। उनका मानना है कि जब तक भारत अपने उपभोक्ताओं की ताकत नहीं पहचानता, तब तक विदेशी कंपनियाँ हमेशा दबाव की राजनीति करती रहेंगी।
अमेरिकी व्यापारिक रणनीति और भारत-यूएस तनाव
यह पहल अमेरिकी व्यापारिक टैरिफ नीति के परिप्रेक्ष्य में महत्वपूर्ण है। अमेरिका द्वारा लगाए गए 50% टैरिफ ने भारत के साथ व्यापारिक संबंधों में तनाव बढ़ा दिया है। यह कदम अमेरिका की ओर से भारत को वार्ता की मेज पर खींचने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है, जबकि भारत का मानना है कि यह उसके खिलाफ अनुचित व्यापारिक दबाव है।
आर्थिक विश्लेषण और दीर्घकालिक प्रभाव
भारत-अमेरिका व्यापारिक संबंध वर्षों से जटिल रहे हैं। अमेरिका भारत से कृषि, फार्म और डेयरी उत्पादों में अधिक बाज़ार पहुंच चाहता है, जबकि भारत चाहता है कि उसकी आईटी और मैन्युफैक्चरिंग सेवाओं को अमेरिकी बाजार में छूट मिले। ऐसे में, LPU का यह कदम प्रतीकात्मक है, लेकिन यह आत्मनिर्भरता की भावना को मजबूत करने वाला है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह आंदोलन बड़ा रूप लेता है तो अमेरिकी कंपनियों की भारत में बिक्री पर असर पड़ सकता है। कोक और पेप्सी जैसी कंपनियाँ पहले से ही स्थानीय ब्रांड्स और हेल्दी ड्रिंक्स से कड़ी टक्कर झेल रही हैं।
प्रतिक्रियाएँ और बहस
इस पहल पर प्रतिक्रियाएँ मिश्रित रही हैं। कुछ लोगों ने LPU की तारीफ की और कहा कि यह सही समय पर सही संदेश देने वाला कदम है। वहीं आलोचकों का कहना है कि यह केवल एक प्रचार का तरीका हो सकता है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक विवादों का हल केवल कैंपस प्रतिबंधों से नहीं हो सकता।
फिर भी, एक बात पर सभी सहमत दिखे कि इस तरह की पहल छात्रों को जागरूक बनाती है और उन्हें वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था को समझने में मदद करती है।
राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव
राजनीतिक दृष्टिकोण से यह कदम भारत की आत्मनिर्भरता और ‘आर्थिक गरिमा’ का संदेश है। यह दुनिया को यह दर्शाता है कि भारत अब किसी भी प्रकार के अनुचित दबाव में झुकने वाला देश नहीं रहा।
सामाजिक स्तर पर, इस तरह की पहल युवाओं को अपने उपभोग के विकल्पों पर सोचने के लिए प्रेरित करती है। यह ‘मेड इन इंडिया’ उत्पादों की ओर झुकाव को और बढ़ावा दे सकती है।
आगे का रास्ता: क्या बनेगी लहर?
सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या यह केवल एक कैंपस तक सीमित पहल रहेगी, या फिर यह राष्ट्रीय आंदोलन का रूप ले लेगी। यदि देशभर के विश्वविद्यालय, संस्थान और लोग अमेरिकी उत्पादों का बहिष्कार करना शुरू करते हैं, तो इसका असर अमेरिकी कंपनियों पर गंभीर हो सकता है।
हालांकि यह तभी संभव है जब सरकार और नीति-निर्माता भी इसे राष्ट्रीय रणनीति का हिस्सा बनाएं।
निष्कर्ष
LPU का यह कदम केवल एक कैंपस का निर्णय नहीं, बल्कि भारत के लिए आत्मनिर्भरता और गरिमा का संदेश है। यह हमें हमारे इतिहास के स्वदेशी आंदोलन की याद दिलाता है और यह दिखाता है कि आज भी भारत अपने हक़ और सम्मान के लिए डटकर खड़ा हो सकता है।
“स्वदेशी 2.0” की यह शुरुआत एक छोटे कैंपस से हुई है, लेकिन इसका असर आने वाले दिनों में पूरे देश में देखने को मिल सकता है।