13 साल की उम्र से पहले बच्चों को स्मार्टफोन देना बेहद खतरनाक: स्टडी में चौंकाने वाले खुलासे
नई दिल्ली:
बदलती दुनिया में तकनीक जितनी तेजी से हमारे जीवन का हिस्सा बनती जा रही है, उतनी ही तेजी से उसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। एक ताज़ा अध्ययन में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि 13 साल की उम्र से पहले बच्चों को स्मार्टफोन देना बेहद खतरनाक हो सकता है। इस स्टडी के मुताबिक, स्मार्टफोन का जल्दी एक्सपोजर बच्चों की मानसिक सेहत पर गंभीर असर डाल सकता है, जो आगे चलकर युवावस्था में आत्महत्या के विचार, डिप्रेशन, आत्मसम्मान की कमी जैसी समस्याओं में बदल सकता है।
📚 अध्ययन का स्रोत और निष्कर्ष
यह अध्ययन “Journal of Human Development and Capabilities” में प्रकाशित हुआ है, जिसमें 1 लाख से अधिक युवाओं का डेटा शामिल किया गया। शोधकर्ताओं ने इस डेटा के विश्लेषण के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि जो बच्चे 13 साल की उम्र से पहले स्मार्टफोन या अन्य डिजिटल डिवाइस का उपयोग करने लगते हैं, उनके भीतर मानसिक अस्थिरता की संभावना अधिक पाई गई।
इन बच्चों में खासकर 18 से 24 वर्ष की आयु में गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्याएं देखने को मिलीं। इनमें शामिल हैं:
- आत्महत्या के विचार
- चिंता और डिप्रेशन
- आत्म-सम्मान की समस्या
- भावनात्मक अस्थिरता
- सामाजिक अलगाव
📱 बच्चों पर स्मार्टफोन का प्रभाव
1. मानसिक स्वास्थ्य पर असर
बच्चों का दिमाग अभी विकसित हो रहा होता है। इस अवस्था में अत्यधिक स्क्रीन टाइम, सोशल मीडिया की लत और लगातार सूचना के संपर्क में रहना मानसिक थकावट और चिंता को बढ़ा सकता है।
2. नींद की गुणवत्ता में गिरावट
स्मार्टफोन का उपयोग बच्चों की नींद को प्रभावित करता है। देर रात तक मोबाइल चलाना नींद की गुणवत्ता को गिराता है, जिससे ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई होती है।
3. शारीरिक स्वास्थ्य पर असर
लंबे समय तक बैठे रहना, आँखों में थकान, मोटापा और शारीरिक गतिविधियों की कमी जैसी समस्याएं स्मार्टफोन के अत्यधिक उपयोग से जुड़ी हुई हैं।
4. सामाजिक कौशल में कमी
जब बच्चे डिजिटल दुनिया में ज्यादा समय बिताते हैं, तो उनके वास्तविक सामाजिक संबंध कमजोर हो जाते हैं। वे परिवार और दोस्तों से कम बातचीत करने लगते हैं, जिससे उनके सामाजिक विकास पर असर पड़ता है।
📊 विशेषज्ञों की राय
मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस निष्कर्ष से पूरी तरह सहमत हैं। उनका मानना है कि बच्चों को तकनीक की समझ देना ज़रूरी है, लेकिन सही उम्र में और नियंत्रित तरीके से।
“13 साल की उम्र के पहले बच्चों का आत्मनियंत्रण पूरी तरह विकसित नहीं होता। स्मार्टफोन के जरिए वे ऐसी दुनिया में पहुंच जाते हैं जहाँ उनकी मानसिक तैयारी नहीं होती,”
– डॉ. भावना मिश्रा, क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट
🧠 क्यों होती हैं ये समस्याएं?
1. सोशल मीडिया की तुलना का दबाव
बच्चे खुद की तुलना दूसरों से करने लगते हैं, जिससे उन्हें लगता है कि वे पर्याप्त अच्छे नहीं हैं।
2. डिजिटल बुलीइंग (Cyberbullying)
इस उम्र के बच्चे ट्रोलिंग, ऑनलाइन बदतमीज़ी और साइबरबुली का शिकार आसानी से बन सकते हैं।
3. फेक रियलिटी
सोशल मीडिया पर दिखने वाली ‘परफेक्ट’ ज़िंदगी उन्हें भ्रमित करती है और हकीकत से उनका नाता कमजोर होता है।
🧒🏻 माता-पिता की भूमिका
बच्चों को तकनीक से पूरी तरह दूर रखना व्यावहारिक नहीं है, लेकिन कुछ उपाय अपनाकर इसके खतरों को कम किया जा सकता है:
- 13 साल से पहले स्मार्टफोन ना दें।
- यदि देना ज़रूरी हो, तो parental control apps का उपयोग करें।
- स्क्रीन टाइम को सीमित करें (रोजाना 1-2 घंटे से अधिक नहीं)।
- बच्चों के साथ खुलकर संवाद करें – वे क्या देख रहे हैं, किससे बात कर रहे हैं।
- सप्ताह में कुछ दिन “नो गैजेट डे” रखें।
🌍 दुनिया में क्या हो रहा है?
कुछ देशों ने इस विषय पर सक्रिय कदम भी उठाए हैं:
- फ्रांस ने स्कूलों में 15 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए स्मार्टफोन पर प्रतिबंध लगाया है।
- दक्षिण कोरिया में स्क्रीन टाइम ट्रैक करने के लिए विशेष सरकारी ऐप्स उपलब्ध कराए गए हैं।
- जापान में बच्चों के लिए डिज़ाइन किए गए विशेष सीमित-सुविधा वाले फोन ही प्रचलन में हैं।
🧾 निष्कर्ष
तकनीक एक दोधारी तलवार है। यह हमारे बच्चों को सशक्त बना सकती है, लेकिन समय से पहले और बगैर मार्गदर्शन के इसका उपयोग उन्हें मानसिक और सामाजिक स्तर पर नुकसान पहुंचा सकता है। 13 साल से पहले स्मार्टफोन देना एक जोखिम है, जिसे हर माता-पिता को समझने और टालने की जरूरत है। यह केवल एक गैजेट नहीं, बल्कि बच्चे के भविष्य की दिशा तय करने वाला उपकरण है।
📢 सुझाव
- स्कूलों में डिजिटल एजुकेशन + डिजिटल एथिक्स पढ़ाया जाए।
- सरकार को बच्चों के लिए विशेष गैजेट गाइडलाइंस बनानी चाहिए।
- अभिभावकों के लिए वर्कशॉप्स और सेमिनार आयोजित किए जाएं ताकि वे बच्चों को स्मार्टफोन के सही उपयोग की दिशा दिखा सकें।