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8 Aug 2025, Fri

Bihar Election 2025: अफसरशाही की सियासी एंट्री, कई पूर्व IAS-IPS मैदान में उतरने को तैयार

Bihar Election 2025: अफसरशाही की सियासी एंट्री, कई पूर्व IAS-IPS मैदान में उतरने को तैयार

Bihar Election 2025: अफसरशाही की सियासी एंट्री से बदलेगा चुनावी समीकरण, कई पूर्व IAS-IPS मैदान में उतरने को तैयार

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, राज्य की सियासत में एक नया और दिलचस्प ट्रेंड तेजी से उभर रहा है — पूर्व प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों की राजनीति में सक्रिय एंट्री। कई रिटायर्ड आईएएस और आईपीएस अधिकारी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (VRS) लेकर सीधे चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में हैं। इनमें से कुछ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भरोसेमंद अधिकारी रह चुके हैं, तो कुछ प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी के जरिए नई राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं।


अफसर से नेता बनने की होड़

बिहार में नौकरशाही और राजनीति के बीच का फासला अब और घटता दिख रहा है। सक्रिय सेवा से रिटायर हुए अधिकारी, जो वर्षों तक प्रशासनिक अनुभव और जनसंपर्क से लैस रहे हैं, अब जनता के बीच जाकर अपने ‘गवर्नेंस मॉडल’ को वोट में बदलने की कोशिश कर रहे हैं।

दिनेश कुमार राय – नीतीश के पूर्व राजनीतिक सचिव

सबसे चर्चित नामों में से एक हैं पूर्व आईएएस दिनेश कुमार राय, जो बिहार सरकार में सचिव और नीतीश कुमार के निजी राजनीतिक सचिव रह चुके हैं। राय ने VRS लेकर करगहर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा जताई है। कुर्मी समुदाय से आने वाले दिनेश कुमार राय को स्थानीय राजनीति की गहरी समझ और जनसंपर्क का लाभ मिल सकता है।

जय प्रकाश सिंह – IPS से जन सुराज

2000 बैच के आईपीएस अधिकारी जय प्रकाश सिंह, जो हिमाचल प्रदेश में एडीजी थे, ने VRS लेने के बाद प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी का दामन थामा है। वे सारण जिले की छपरा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। जन सुराज उन अफसरों के लिए एक नया मंच बनता जा रहा है, जो राजनीतिक दलों में वैकल्पिक अवसर तलाश रहे हैं।

शिवदीप लांडे – ‘सिंघम’ की नई पार्टी

बिहार के मशहूर ‘सिंघम’ कहे जाने वाले पूर्व आईपीएस शिवदीप लांडे ने भी VRS के बाद अपनी नई पार्टी ‘हिंद सेना’ बनाई है। लांडे ने दावा किया है कि उनकी पार्टी बिहार की सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी। उनकी लोकप्रियता खासकर युवाओं और सोशल मीडिया पर पहले से मजबूत है।

आनंद मिश्रा – उतार-चढ़ाव भरा सफर

आईपीएस आनंद मिश्रा ने बक्सर से बीजेपी टिकट की उम्मीद में VRS लिया था। हालांकि टिकट न मिलने के कारण उन्होंने जन सुराज पार्टी जॉइन की, लेकिन कुछ ही महीनों में उसे भी छोड़ दिया। उनका सफर बताता है कि राजनीति में कदम रखना जितना आसान लगता है, टिके रहना उतना ही चुनौतीपूर्ण होता है।


और भी अफसर बना रहे हैं सियासी रणनीति

इसके अलावा कई और पूर्व अफसर राजनीति में उतरने की तैयारी में हैं:

  • पूर्व डीएम अरविंद कुमार सिंह

  • पूर्व संयुक्त सचिव गोपाल नारायण सिंह

  • नवादा के पूर्व डीएम लल्लन यादव

ये सभी जन सुराज से जुड़े हैं और आने वाले चुनावों में अपनी किस्मत आज़माने की तैयारी कर रहे हैं।

वहीं ओडिशा कैडर के आईएएस मनीष वर्मा हाल ही में जेडीयू में शामिल हुए हैं और पार्टी ने उन्हें महासचिव बनाकर जिम्मेदारी भी सौंपी है। मनीष वर्मा को नालंदा से टिकट मिलने की संभावना है।


बिहार की परंपरा में अफसरों की भूमिका

बिहार की राजनीति में अफसरों की मौजूदगी नई नहीं है। इससे पहले भी यशवंत सिन्हा, आर.के. सिंह, एन.के. सिंह, आरसीपी सिंह जैसे कई नौकरशाह सफल नेता बन चुके हैं। हालांकि गुप्तेश्वर पांडेय जैसे उदाहरण भी हैं जिन्हें टिकट नहीं मिला और उन्होंने राजनीति से दूरी बना ली।

पूर्व केंद्रीय सचिवालय सेवा अधिकारी सर्वेश कुमार का मानना है कि, “अगर अफसर राजनीति में भी बाबू बनकर रहेंगे, तो असफल हो जाएंगे। लेकिन जिनके पास जनसंपर्क और जमीनी अनुभव है, उनके लिए राजनीति में अपार संभावनाएं हैं।”


नीतीश और मोदी – अफसरों पर भरोसा बरकरार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दोनों ही ब्यूरोक्रेसी पर विश्वास जताते रहे हैं। मोदी सरकार में एस. जयशंकर, आर.के. सिंह, अश्विनी वैष्णव जैसे अफसरों को मंत्री बनाया गया, जबकि नीतीश कुमार ने दीपक कुमार, चंचल कुमार, अतुल प्रसाद जैसे अपने भरोसेमंद अफसरों को रिटायरमेंट के बाद भी महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया।

2022 में समाज कल्याण मंत्री मदन साहनी ने इसी वजह से इस्तीफा दे दिया था, क्योंकि उनका आरोप था कि अफसरशाही मंत्रियों से ऊपर हो गई है।


2025 चुनाव का बदलता चेहरा

बिहार चुनाव 2025 न सिर्फ राजनीतिक समीकरणों बल्कि प्रशासनिक अनुभव बनाम परंपरागत जनाधार की भी परीक्षा साबित हो सकता है। अफसरों की राजनीति में एंट्री से संकेत मिलता है कि जनता भी बदलाव चाहती है और राजनीतिक दल ‘क्लीन इमेज’ और ‘गवर्नेंस अनुभव’ वाले चेहरों की तलाश में हैं।

यह भी स्पष्ट हो रहा है कि राजनीतिक दल ब्यूरोक्रेट्स को टिकट देने में अब हिचक नहीं कर रहे। यदि यह ट्रेंड जारी रहा, तो आने वाले दिनों में बिहार की राजनीति में एक नई सियासी धारा का उदय हो सकता है — जहां ब्यूरोक्रेसी और राजनीति का मेल एक नई सियासी संस्कृति गढ़ेगा


निष्कर्ष
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में अफसरों की बढ़ती भागीदारी राजनीति का नया अध्याय लिख सकती है। उनके अनुभव, छवि और नेतृत्व क्षमता, परंपरागत नेताओं के लिए एक नई चुनौती बनकर उभर सकते हैं। जनता अब सिर्फ जातीय समीकरण नहीं, बल्कि काम करने की काबिलियत और प्रशासनिक क्षमता को भी देख रही है।

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