बिहार सरकार का बड़ा फैसला: नए वकीलों को हर महीने मिलेगा ₹5000 स्टाइपेंड, अधिवक्ता संघों को भी मिलेगी आर्थिक मदद
पटना, सितम्बर 2025 — बिहार सरकार ने राज्य के नए वकीलों के लिए एक अहम और ऐतिहासिक कदम उठाया है। अब राज्य में पंजीकृत होने वाले अधिवक्ताओं को शुरुआत के तीन वर्षों तक आर्थिक सहायता प्रदान की जाएगी। इस योजना के तहत उन्हें प्रति माह ₹5000 स्टाइपेंड मिलेगा। इसके अलावा अधिवक्ता संघों और महिला अधिवक्ताओं के लिए भी विशेष प्रावधान किए गए हैं।
यह घोषणा बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने की। उन्होंने कहा कि यह कदम युवा अधिवक्ताओं को न केवल आर्थिक सुरक्षा देगा बल्कि उन्हें अपने करियर की शुरुआत में आने वाली चुनौतियों से निपटने में मदद करेगा।
योजना के मुख्य बिंदु
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1 जनवरी 2024 से नामांकित नए अधिवक्ताओं को लगातार 3 वर्षों तक ₹5000/माह स्टाइपेंड दिया जाएगा।
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अधिवक्ता संघों को ₹5 लाख की एकमुश्त राशि ई-लाइब्रेरी स्थापित करने के लिए दी जाएगी।
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बिहार अधिवक्ता कल्याण न्यास समिति को ₹30 करोड़ की धनराशि आबंटित की जाएगी।
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आयकर दायरे से बाहर रहने वाले अधिवक्ताओं को मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता निधि से मदद मिलेगी।
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महिला अधिवक्ताओं के लिए अधिवक्ता संघों में “पिंक टॉयलेट” की व्यवस्था होगी।
क्यों ज़रूरी थी यह योजना?
1. शुरुआती आर्थिक संघर्ष
नए वकीलों के सामने सबसे बड़ी चुनौती होती है कि करियर की शुरुआत में उन्हें ज्यादा केस नहीं मिलते। अदालत में काम सीखने और क्लाइंट बनाने में समय लगता है। इस दौरान उनकी आमदनी बेहद सीमित रहती है, जबकि खर्चे — किताबें, परिवहन, बार एसोसिएशन फीस आदि — लगातार बढ़ते जाते हैं।
2. अधिवक्ता संघों की स्थिति
राज्य के कई जिला और उप-जिला स्तर पर मौजूद अधिवक्ता संघों के पास संसाधनों की भारी कमी है। किताबों, डिजिटल संसाधनों और शोध सामग्री की कमी के कारण युवा वकील खुद को पिछड़ा हुआ महसूस करते हैं। ई-लाइब्रेरी की स्थापना इस कमी को दूर करने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकती है।
3. महिला अधिवक्ताओं की चुनौतियाँ
अदालत परिसरों में महिला अधिवक्ताओं के लिए बुनियादी सुविधाओं का अभाव लंबे समय से एक मुद्दा रहा है। सुरक्षित और स्वच्छ शौचालय न होना उनके लिए असुविधा और असमानता दोनों पैदा करता है। पिंक टॉयलेट जैसी पहल महिलाओं को न्यायिक पेशे में अधिक सहज और प्रोत्साहित महसूस करवाएगी।
संभावित सकारात्मक असर
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युवाओं में उत्साह और आत्मविश्वास
यह स्टाइपेंड योजना नए वकीलों को न केवल आर्थिक राहत देगी बल्कि उन्हें अपने करियर में टिके रहने का आत्मविश्वास भी देगी। -
कानूनी ढांचे को मजबूती
ई-लाइब्रेरी और अन्य सुविधाओं के जरिए अधिवक्ताओं को बेहतर शोध और तैयारी का मौका मिलेगा, जिससे अदालतों में उनकी दक्षता और तर्क क्षमता बढ़ेगी। -
महिला अधिवक्ताओं को समर्थन
पिंक टॉयलेट जैसी पहल लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित होगी। इससे ज्यादा महिलाएँ इस पेशे को अपनाने में सहज महसूस करेंगी। -
ग्रामीण इलाकों तक पहुँच
अगर योजना सही तरीके से लागू होती है तो इससे छोटे जिलों और कस्बों में भी कानूनी सेवाएँ और अधिवक्ता समुदाय मजबूत होगा।
चुनौतियाँ और आलोचनाएँ
हालांकि योजना की सराहना हो रही है, लेकिन कुछ सवाल भी उठ रहे हैं:
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समय पर भुगतान: क्या हर महीने स्टाइपेंड समय से मिलेगा या फिर इसमें प्रशासनिक देरी होगी?
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पात्रता का निर्धारण: कौन “नया अधिवक्ता” कहलाएगा, इसका स्पष्ट और पारदर्शी मानदंड तय करना ज़रूरी है।
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बजट की स्थिरता: ₹30 करोड़ का प्रावधान पर्याप्त होगा या फिर कुछ वर्षों में अतिरिक्त बजट की ज़रूरत पड़ेगी?
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निगरानी की कमी: क्या यह सुनिश्चित करने के लिए कोई तंत्र होगा कि सहायता असली ज़रूरतमंदों तक पहुँचे और बीच में भ्रष्टाचार न हो?
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तीन साल बाद क्या?: वकीलों को तीन साल की सहायता तो मिलेगी, लेकिन इसके बाद उनके पेशेवर विकास और स्थायित्व के लिए क्या योजनाएँ होंगी?
राजनीतिक और सामाजिक पहलू
राजनीतिक दृष्टिकोण
यह फैसला उस समय आया है जब राज्य में राजनीति का माहौल बेहद सक्रिय है। वकील समुदाय हमेशा से किसी भी सरकार के लिए प्रभावशाली वर्ग माना जाता है। ऐसे में इस कदम को चुनावी रणनीति से भी जोड़ा जा रहा है।
सामाजिक प्रभाव
इससे न केवल अधिवक्ता समुदाय को लाभ मिलेगा बल्कि न्याय तक आम लोगों की पहुँच भी आसान होगी। नए और ऊर्जावान वकील ग्रामीण व दूरदराज़ इलाकों में भी सेवा देंगे।
आगे की दिशा और सुझाव
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पारदर्शिता: पात्रता, आवेदन और भुगतान प्रक्रिया को पूरी तरह डिजिटल और पारदर्शी बनाया जाए।
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निगरानी तंत्र: जिला स्तर पर समिति गठित की जाए जो योजना के क्रियान्वयन की समय-समय पर समीक्षा करे।
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प्रशिक्षण कार्यक्रम: आर्थिक सहायता के साथ-साथ नए वकीलों को कानूनी शोध, लेखन और प्रैक्टिस मैनेजमेंट पर प्रशिक्षण दिया जाए।
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लंबी अवधि की योजना: तीन साल बाद भी अधिवक्ताओं के लिए स्किल डेवेलपमेंट और कल्याणकारी योजनाओं का विस्तार होना चाहिए।
निष्कर्ष
बिहार सरकार की यह घोषणा नए वकीलों के लिए एक बड़ा और स्वागत योग्य कदम है। इससे न केवल युवा अधिवक्ताओं को आर्थिक राहत मिलेगी बल्कि राज्य की न्याय प्रणाली भी मजबूत होगी। हालांकि इसके क्रियान्वयन में पारदर्शिता और समयबद्धता सबसे बड़ी कसौटी होगी।
अगर यह योजना ईमानदारी से लागू होती है, तो यह न केवल वकील समुदाय बल्कि आम जनता के लिए भी लाभकारी साबित होगी और न्याय तक पहुँच को और सरल बनाएगी।
