बुर्का पहनकर vote डालने वाली महिलाओं की जांच की मांग: बिहार चुनाव को लेकर बीजेपी का चुनाव आयोग से आग्रह
पटना, 5 अक्टूबर 2025 — बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सियासी सरगर्मी तेज हो गई है। इसी बीच भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने एक नया मुद्दा उठाया है जिसने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। पार्टी ने चुनाव आयोग से विशेष अनुरोध किया है कि मतदान केंद्रों पर बुर्का पहनकर या पर्दा करके आने वाली महिलाओं की सख्त जांच की जाए, ताकि मतदान प्रक्रिया में पारदर्शिता बनी रहे और किसी प्रकार की फर्जी वोटिंग को रोका जा सके।
बीजेपी की यह मांग ऐसे समय में आई है जब बिहार में चुनावी तैयारियाँ अपने अंतिम चरण में हैं और सभी दल मतदाताओं को रिझाने में जुटे हुए हैं। मगर इस मांग ने चुनावी बहस को एक अलग मोड़ दे दिया है — क्योंकि यह सीधे तौर पर धार्मिक पहचान और महिला मताधिकार से जुड़ा हुआ मामला बन गया है।
बीजेपी की दलील: “फर्जी वोटिंग रोकने के लिए ज़रूरी कदम”
बीजेपी नेताओं का कहना है कि मतदान प्रक्रिया की शुचिता बनाए रखने के लिए यह कदम ज़रूरी है। पार्टी का तर्क है कि कई बार बुर्का या चेहरे को ढकने वाले परदे का इस्तेमाल कर दूसरे व्यक्ति की जगह वोट डालने की कोशिश की जाती है।
बीजेपी ने चुनाव आयोग के साथ हुई बैठक में कहा कि बूथों पर महिला मतदान कर्मियों की नियुक्ति की जाए, जो बुर्का या घूंघट पहनने वाली महिलाओं की पहचान सत्यापित कर सकें। इससे महिलाओं की गरिमा भी बनी रहेगी और मतदाता पहचान पत्र (Voter ID) से चेहरे का मिलान भी सुचारू रूप से किया जा सकेगा।
पार्टी प्रवक्ता ने कहा,
“हमारा उद्देश्य किसी धर्म या समुदाय को निशाना बनाना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि मतदान प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी रहे। हर वोट की कीमत लोकतंत्र में बराबर है, इसलिए यह आवश्यक है कि कोई भी व्यक्ति गलत पहचान के आधार पर वोट न डाल सके।”
चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया
चुनाव आयोग ने बीजेपी की इस मांग को “संज्ञान में लिया गया मुद्दा” बताते हुए कहा है कि इस पर कानूनी और प्रशासनिक स्तर पर विचार किया जाएगा। आयोग के सूत्रों के अनुसार, देशभर में मतदान केंद्रों पर पहचान सत्यापन पहले से ही एक अनिवार्य प्रक्रिया है।
हालांकि, बुर्का या पर्दा पहनने वाली महिलाओं की पहचान जांच को लेकर आयोग हमेशा से “संवेदनशील” रुख अपनाता रहा है। पिछले चुनावों में भी ऐसे मतदाताओं के लिए अलग महिला बूथ अधिकारी तैनात की जाती रही हैं, ताकि कोई धार्मिक या व्यक्तिगत असुविधा न हो।
आयोग के एक अधिकारी ने बताया,
“हम यह सुनिश्चित करेंगे कि किसी मतदाता की धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुंचे, साथ ही मतदान की शुचिता पर भी कोई प्रश्न न उठे।”
विपक्ष का पलटवार: “बीजेपी सांप्रदायिक माहौल बना रही है”
दूसरी ओर, विपक्षी दलों ने बीजेपी पर इस मुद्दे को चुनावी फायदा उठाने के लिए धार्मिक रंग देने का आरोप लगाया है।
राजद (RJD), कांग्रेस और वाम दलों ने कहा कि बीजेपी बार-बार ऐसे मुद्दे उठाती है जिनसे समाज में ध्रुवीकरण बढ़ता है और असल मुद्दों से ध्यान भटकता है।
राजद प्रवक्ता ने बयान में कहा,
“बीजेपी को महिलाओं की पहचान से नहीं, बल्कि उनके वोट से डर है। जब चुनाव नजदीक आते हैं, तब वे ऐसे मुद्दे उठाकर समाज को बांटने की कोशिश करती है। अगर फर्जी वोटिंग की समस्या है, तो चुनाव आयोग के पास पहले से पर्याप्त उपाय हैं।”
वहीं, कांग्रेस नेता ने कहा कि हर मतदाता को मतदान का अधिकार है, चाहे वह बुर्का पहने या साड़ी में घूंघट करे — “किसी की धार्मिक या सांस्कृतिक पहचान पर शक करना लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।”
महिला संगठनों की प्रतिक्रिया: “संतुलित समाधान की ज़रूरत”
कई महिला संगठनों ने भी इस मुद्दे पर अपनी राय दी है।
कुछ ने कहा कि मतदान की पारदर्शिता महत्वपूर्ण है, लेकिन यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि किसी महिला की निजता या धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन न हो।
पटना की सामाजिक कार्यकर्ता शाइस्ता परवीन ने कहा,
“अगर महिला मतदान कर्मी द्वारा पहचान सत्यापन किया जाता है, तो इसमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। लेकिन अगर यह प्रक्रिया सार्वजनिक रूप से या पुरुष अधिकारियों के सामने होती है, तो यह महिलाओं की गरिमा का हनन होगा।”
दूसरी ओर, कुछ महिला कार्यकर्ताओं ने यह भी कहा कि फर्जी वोटिंग की संभावना को नकारा नहीं जा सकता, इसलिए पारदर्शी प्रक्रिया बनाना जरूरी है, बशर्ते कि यह समान रूप से सभी पर लागू हो — चाहे वह बुर्का, घूंघट या किसी और तरह का चेहरा ढकने वाला परिधान हो।
कानूनी पक्ष: क्या है नियम?
भारत के चुनावी कानून में हर मतदाता की पहचान सुनिश्चित करना आवश्यक है। मतदान के समय मतदाता पहचान पत्र (EPIC) या आयोग द्वारा मान्य 12 अन्य पहचान पत्रों में से कोई एक दिखाना अनिवार्य है।
हालांकि, कानून यह भी कहता है कि मतदाता की पहचान करते समय उसकी निजता और गरिमा का सम्मान किया जाना चाहिए। यही कारण है कि बुर्का या पर्दा पहनने वाली महिलाओं की पहचान जांच के लिए महिला अधिकारी नियुक्त करने का प्रावधान पहले से मौजूद है।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि बीजेपी की मांग मौजूदा व्यवस्था को और सख्त करने की दिशा में हो सकती है, लेकिन इसे “भेदभावपूर्ण” न बनने देने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की होगी।
राजनीतिक प्रभाव और भविष्य की राह
बीजेपी की यह मांग निश्चित रूप से चुनावी विमर्श को एक नया मोड़ दे सकती है। एक तरफ पार्टी इसे “फ्री एंड फेयर इलेक्शन” का सवाल बता रही है, वहीं विपक्ष इसे “ध्रुवीकरण की राजनीति” करार दे रहा है।
बिहार जैसे राज्य में, जहाँ मुस्लिम आबादी करीब 17% है और महिला मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं, यह मुद्दा चुनावी रणनीति के लिहाज से भी अहम हो सकता है।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि आने वाले दिनों में यह बहस और तेज हो सकती है।
“बीजेपी यह संदेश देना चाहती है कि वह ईमानदार मतदान प्रक्रिया की पक्षधर है, जबकि विपक्ष इसे वोट बैंक की राजनीति से जोड़कर देख रहा है,” — एक वरिष्ठ राजनीतिक टिप्पणीकार ने कहा।
निष्कर्ष
बुर्का पहनकर मतदान करने वाली महिलाओं की पहचान जांच को लेकर उठी यह बहस सिर्फ एक चुनावी मुद्दा नहीं, बल्कि लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संतुलन का सवाल भी है।
अब यह चुनाव आयोग पर निर्भर करेगा कि वह इस संवेदनशील मामले को किस तरह संभालता है — ताकि न तो मतदान प्रक्रिया की पारदर्शिता पर प्रश्न उठे और न ही किसी समुदाय या महिला की गरिमा को ठेस पहुँचे।
फिलहाल, बिहार की राजनीति में यह मुद्दा चर्चा के केंद्र में है और आने वाले दिनों में इसके राजनीतिक और सामाजिक प्रभावों पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी।
