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25 Jul 2025, Fri

झारखंड में भूमि सुधार कानून में बड़ा बदलाव प्रस्तावित, एलआरडीसी को मिलेगा अधिक अधिकार

झारखंड में भूमि सुधार कानून में बड़ा बदलाव प्रस्तावित, एलआरडीसी को मिलेगा अधिक अधिकार

झारखंड में भूमि सुधार कानून में बड़ा बदलाव प्रस्तावित, एलआरडीसी को मिलेगा अधिक अधिकार

रांची, 24 जुलाई 2025 | विशेष रिपोर्ट
झारखंड में भूमि सुधार कानून में एक ऐतिहासिक बदलाव की तैयारी हो रही है। राज्य सरकार द्वारा तैयार किए गए नए विधेयक के मसौदे के अनुसार अब भूमि विवादों से जुड़े अवैध म्यूटेशन (नामांतरण) और दोहरी जमाबंदी को रद्द करने का अधिकार एलआरडीसी (भूमि सुधार उप समाहर्ता) को दिया जाएगा। अभी तक यह अधिकार केवल सिविल कोर्ट के पास था, लेकिन भूमि विवादों के बढ़ते बोझ और न्याय प्रक्रिया में देरी को देखते हुए सरकार यह बड़ा कदम उठाने जा रही है।

भूमि सुधार कानून में संशोधन की पृष्ठभूमि

झारखंड के ग्रामीण इलाकों में वर्षों से दोहरी जमाबंदी और अवैध म्यूटेशन से जुड़ी शिकायतें लगातार सामने आती रही हैं। राज्य की राजस्व व्यवस्था में कई खामियों के कारण मूल भू-स्वामियों की भूमि पर अवैध कब्जे, कागजी हेराफेरी और बार-बार नामांतरण जैसी घटनाएं आम हो गई थीं। इसे लेकर हाईकोर्ट ने भी राज्य सरकार को कई बार निर्देश दिए और कहा कि बिना विधिक प्रक्रिया के कोई भी जमाबंदी रद्द करना अवैध है।

इन्हीं कारणों से भूमि सुधार एवं राजस्व विभाग ने व्यापक संशोधन का मसौदा तैयार किया है, जिसे आगामी मानसून सत्र में झारखंड विधानसभा में पेश किया जाएगा।


क्या होंगे प्रमुख बदलाव?

  1. एलआरडीसी को मिलेगा विशेष अधिकार:
    प्रस्तावित विधेयक के अनुसार अब अवैध म्यूटेशन और दोहरी जमाबंदी के मामलों की जांच कर उन्हें निरस्त करने का अधिकार एलआरडीसी के पास होगा। यह अधिकार अब तक केवल सिविल कोर्ट के पास था।
  2. डीसी कोर्ट में अपील की सुविधा:
    यदि कोई व्यक्ति एलआरडीसी के निर्णय से असंतुष्ट होता है तो वह उपायुक्त (डीसी) के न्यायालय में अपील कर सकेगा। इससे नागरिकों को न्याय की द्वितीयिक प्रक्रिया भी उपलब्ध रहेगी।
  3. कमिश्नर के पास अंतिम पुनरीक्षण:
    अपील के बाद भी यदि कोई पक्ष संतुष्ट नहीं होता है तो कमिश्नर के पास पुनरीक्षण (Revision) की सुविधा दी जाएगी, जिससे पूरे सिस्टम में पारदर्शिता बनी रहेगी।

इस संशोधन की जरूरत क्यों पड़ी?

हाईकोर्ट ने कई बार झारखंड सरकार को अवैध जमाबंदी और नामांतरण के मामलों में बिना उचित प्रक्रिया के कार्रवाई करने पर फटकार लगाई थी। कोर्ट ने कहा था कि केवल न्यायालय ही किसी दस्तावेज या रिकॉर्ड को रद्द करने का अधिकार रखता है, प्रशासनिक अधिकारी नहीं।

इसके अलावा, सिविल कोर्ट में लम्बित मामलों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है, जिससे पीड़ितों को वर्षों तक न्याय नहीं मिल पाता। ऐसे में प्रशासनिक स्तर पर ही कार्रवाई की अनुमति देना न केवल न्याय प्रक्रिया को तेज करेगा, बल्कि न्यायिक तंत्र पर बोझ भी कम करेगा।


वर्तमान में क्या है स्थिति?

राज्य भर में अभी तक दोहरी जमाबंदी और अवैध म्यूटेशन के करीब 1.75 लाख से अधिक मामले दर्ज हैं। केवल 867 मामलों को ही सिविल कोर्ट द्वारा निरस्त किया गया है, जबकि 671 मामलों में अपील लंबित है।

अधिकांश मामलों में एक ही जमीन पर दो लोगों का दावा दर्ज है – एक व्यक्ति वास्तविक मालिक होता है जबकि दूसरा व्यक्ति फर्जी कागजों के आधार पर म्यूटेशन करवा लेता है। ऐसे मामलों में वर्षों तक कोर्ट में सुनवाई चलती है, और कई बार निर्णय आने तक जमीन की स्थिति और अधिक जटिल हो जाती है।


विधि विभाग ने दी सहमति

इस विधेयक के प्रारूप को विधि विभाग ने अपनी स्वीकृति दे दी है। इसका अर्थ है कि अब सरकार इसे विधानसभा में प्रस्तुत कर सकती है। विधेयक पारित होने के बाद इसे कानून के रूप में लागू किया जाएगा।


क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

भूमि मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव राज्य की भूमि प्रशासन प्रणाली को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाएगा। भूमि अधिग्रहण, विकास परियोजनाओं और व्यक्तिगत विवादों में होने वाली देरी अब कम होगी।

प्रो. अनिल ओझा, (पूर्व भू-अभिलेख निदेशक) कहते हैं –

“यह विधेयक अवैध म्यूटेशन और दोहरी जमाबंदी जैसे जटिल मामलों को सुलझाने में मदद करेगा। यदि इसे सही तरीके से लागू किया गया, तो भूमि विवादों में तेजी से कमी आएगी।”


भविष्य की राह और चुनौतियाँ

हालांकि यह बदलाव स्वागत योग्य है, लेकिन इसे लागू करने के लिए सरकार को प्रशासनिक अधिकारियों को विशेष प्रशिक्षण देना होगा ताकि वे निष्पक्षता से मामलों की जांच कर सकें। भ्रष्टाचार की संभावना को रोकने के लिए निगरानी प्रणाली भी विकसित करनी होगी।

इसके साथ ही नागरिकों को जागरूक करने की जरूरत है कि वे अपनी जमीन के रिकॉर्ड को नियमित रूप से अपडेट करें और किसी भी नामांतरण प्रक्रिया में सावधानी बरतें।


निष्कर्ष

झारखंड सरकार द्वारा प्रस्तावित यह भूमि सुधार विधेयक राज्य के राजस्व और न्यायिक तंत्र को अधिक सक्षम बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यदि विधानसभा में यह विधेयक पारित हो जाता है और प्रभावी रूप से लागू किया जाता है, तो यह न केवल भूमि विवादों को कम करेगा बल्कि राज्य में भूमि व्यवस्था में क्रांतिकारी सुधार लाएगा।

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