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29 Oct 2025, Wed

Jharkhand में शिक्षा की नई पहल: स्कूलों में पढ़ाई जाएगी ‘दिशोम गुरु’ शिबू सोरेन की जीवनी

Jharkhand में शिक्षा की नई पहल: स्कूलों में पढ़ाई जाएगी ‘दिशोम गुरु’ शिबू सोरेन की जीवनी

Jharkhand में शिक्षा की नई पहल: स्कूलों में पढ़ाई जाएगी ‘दिशोम गुरु’ शिबू सोरेन की जीवनी

रांची, सितंबर 2025 – झारखंड सरकार ने शिक्षा को स्थानीय समाज और संस्कृति से जोड़ने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। अब राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में कक्षा 2 से 11 तक के छात्रों को ‘दिशोम गुरु’ शिबू सोरेन की जीवनगाथा पढ़ाई जाएगी। शिक्षा विभाग ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है और 2026 से यह नया पाठ्यक्रम लागू किया जाएगा।

यह निर्णय न केवल शिक्षा के स्तर को बेहतर बनाने की दिशा में है, बल्कि इसका उद्देश्य बच्चों को अपने राज्य के नायक और उनके संघर्षों से परिचित कराना भी है। लंबे समय से मांग की जा रही थी कि स्थानीय नायकों की कहानियाँ और आदिवासी समाज के योगदान को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए। सरकार का यह कदम उसी दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल माना जा रहा है।


क्या होगा बदलाव?

शिक्षा विभाग ने सात सदस्यीय समिति गठित कर अध्यायों का मसौदा तैयार किया है। समिति ने तय किया है कि कक्षा 2, 4, 6, 7, 8, 9 और 11वीं की पुस्तकों में कुल 10 अध्याय शामिल किए जाएंगे। इनमें से कक्षा 8 में तीन और कक्षा 6 में दो अध्याय होंगे।

  • कक्षा 1 से 5 तक: सरल भाषा और रोचक कहानियों के माध्यम से शिबू सोरेन के जीवन की झलक दी जाएगी। जैसे – उनके बचपन के संघर्ष, परिवार की स्थिति और समाजसेवा की शुरुआती प्रेरणा।

  • कक्षा 6 से 8 तक: यहाँ छात्रों को उनके आंदोलन, आदिवासी अधिकारों की लड़ाई और समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ उठाए गए कदमों की जानकारी दी जाएगी।

  • कक्षा 9 से 11 तक: इस स्तर पर राजनीति, संसद में योगदान, झारखंड राज्य निर्माण की भूमिका और नेतृत्व क्षमता पर आधारित विस्तृत अध्याय शामिल होंगे।

इन अध्यायों को हिंदी, सामाजिक अध्ययन, पर्यावरण विज्ञान और राजनीति विज्ञान जैसे विषयों में समायोजित किया जाएगा।


कौन थे शिबू सोरेन?

शिबू सोरेन, जिन्हें प्यार से ‘गुरुजी’ और ‘दिशोम गुरु’ कहा जाता है, झारखंड के आदिवासी समाज के सबसे बड़े नेताओं में से एक रहे। उनका जन्म 11 जनवरी 1944 को रामगढ़ जिले के नेमरा गाँव में हुआ था। बचपन में ही उन्होंने गरीबी और अन्याय का सामना किया। पिता की असमय मृत्यु ने उनके जीवन को गहराई से प्रभावित किया।

किशोरावस्था से ही उन्होंने आदिवासी समाज को संगठित करने की शुरुआत की। उन्होंने संथाल युवाओं को एकजुट कर महाजनी और जमींदारी प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई। यही संघर्ष आगे चलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना का आधार बना।

सोरेन का सबसे बड़ा योगदान झारखंड राज्य निर्माण आंदोलन को गति देना था। लंबे संघर्ष के बाद वर्ष 2000 में बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य अस्तित्व में आया। वे कई बार सांसद बने, केंद्र सरकार में मंत्री पद संभाला और झारखंड के मुख्यमंत्री भी रहे।


पाठ्यक्रम में शामिल विषय-वस्तु

अध्यायों की रूपरेखा इस तरह बनाई गई है कि बच्चे हर स्तर पर शिबू सोरेन की जीवन यात्रा से प्रेरित हों।

  1. बाल्यकाल और पारिवारिक संघर्ष – गरीबी, शिक्षा में बाधाएँ और जीवन की शुरुआती कठिनाइयाँ।

  2. आदिवासी समाज की रक्षा – महाजनी प्रथा के खिलाफ आंदोलन और गाँवों में जागरूकता फैलाना।

  3. झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना – संगठन का गठन और राजनीतिक पहचान।

  4. राज्य निर्माण आंदोलन – झारखंड राज्य की मांग, संघर्ष और उसका परिणाम।

  5. राजनीतिक योगदान – संसद, मंत्री पद और मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए किए गए कार्य।

  6. आदर्श और नैतिकता – समाजसेवा, नेतृत्व, संघर्षशीलता और जनता से जुड़ाव।

इस सामग्री को कहानी, संवाद, निबंध और प्रश्नोत्तर के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा ताकि छात्र न केवल जानकारी प्राप्त करें बल्कि उससे प्रेरित भी हों।


सरकार और शिक्षा विभाग की तैयारी

शिक्षा विभाग ने अध्याय तैयार करने के साथ-साथ अब पुस्तकों की छपाई की प्रक्रिया शुरू कर दी है। यह भी सुनिश्चित किया जा रहा है कि शिक्षक इन अध्यायों को सही तरीके से पढ़ा सकें। इसके लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।

शिक्षक प्रशिक्षण में उन्हें यह समझाया जाएगा कि इन अध्यायों को केवल जीवनी के रूप में नहीं, बल्कि नैतिक शिक्षा और प्रेरणा स्रोत के रूप में प्रस्तुत करें। बच्चों को यह बताना होगा कि कैसे कठिनाइयों के बावजूद शिबू सोरेन ने अपने समाज और राज्य के लिए संघर्ष किया।


छात्रों पर प्रभाव

यह पहल बच्चों को कई स्तरों पर प्रभावित करेगी:

  • प्रेरणा और आदर्श: छात्र यह समझ पाएंगे कि संघर्ष और मेहनत से किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है।

  • स्थानीय इतिहास से जुड़ाव: अब तक बच्चे राष्ट्रीय नायकों के बारे में अधिक पढ़ते थे, लेकिन अब वे अपने राज्य के नायक से भी परिचित होंगे।

  • नैतिक शिक्षा: अध्यायों के माध्यम से बच्चों में समाजसेवा, ईमानदारी और नेतृत्व क्षमता का विकास होगा।

  • संस्कृति और पहचान: आदिवासी समाज की संस्कृति और पहचान को संरक्षित करने की भावना मजबूत होगी।


संभावित चुनौतियाँ

हालाँकि यह निर्णय सराहनीय है, लेकिन इसके साथ कुछ चुनौतियाँ भी सामने आएंगी।

  1. समय पर किताबें उपलब्ध कराना – पाठ्यक्रम 2026 से लागू होना है, इसलिए पुस्तकों की छपाई और वितरण समय पर होना चाहिए।

  2. संतुलित प्रस्तुति – शिबू सोरेन के जीवन के उजले पहलुओं के साथ-साथ आलोचनाओं और विवादों को भी निष्पक्षता से शामिल करना ज़रूरी है।

  3. शिक्षकों की भूमिका – यदि अध्यापक प्रशिक्षित नहीं हुए तो बच्चे इस पहल का पूरा लाभ नहीं उठा पाएंगे।

  4. भाषाई विविधता – झारखंड में कई आदिवासी भाषाएँ बोली जाती हैं। सामग्री को इस तरह तैयार करना होगा कि सभी बच्चे आसानी से समझ सकें।


निष्कर्ष

झारखंड सरकार का यह फैसला शिक्षा को स्थानीय संस्कृति और इतिहास से जोड़ने की दिशा में एक मील का पत्थर है। इससे न केवल छात्रों में ज्ञान का विस्तार होगा बल्कि उनमें समाज और राज्य के प्रति जिम्मेदारी की भावना भी विकसित होगी।

शिबू सोरेन की जीवनी केवल एक व्यक्ति की कहानी नहीं है, बल्कि यह संघर्ष, नेतृत्व और आदिवासी अस्मिता की गाथा है। जब आने वाली पीढ़ी इसे पढ़ेगी, तो उन्हें अपने नायक से प्रेरणा मिलेगी और वे बेहतर नागरिक बनने की दिशा में आगे बढ़ेंगे।

यह पहल शिक्षा को किताबों तक सीमित नहीं रखेगी, बल्कि छात्रों के भीतर नेतृत्व, नैतिकता और समाजसेवा का बीज बोएगी। यदि इसे सही ढंग से लागू किया गया, तो यह बदलाव आने वाले वर्षों में झारखंड के सामाजिक और शैक्षणिक परिदृश्य को और भी समृद्ध बना देगा।

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