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3 Sep 2025, Wed

मुस्लिम युवक ने संत प्रेमानंद महाराज को किडनी देने की पेशकश, संत ने किया सम्मानपूर्वक इनकार

मुस्लिम युवक ने संत प्रेमानंद महाराज को किडनी देने की पेशकश, संत ने किया सम्मानपूर्वक इनकार

मुस्लिम युवक ने संत प्रेमानंद महाराज को किडनी देने की पेशकश, संत ने किया सम्मानपूर्वक इनकार


📍 इटारसी (मध्यप्रदेश) से खबर

आज जब समाज धर्म और जाति की दीवारों से जूझ रहा है, उसी समय इटारसी के एक मुस्लिम युवक ने ऐसा कदम उठाया है, जिसने पूरे देश को सोचने पर मजबूर कर दिया। यह कहानी सिर्फ किडनी दान की पेशकश की नहीं, बल्कि भाईचारे और इंसानियत की सबसे खूबसूरत मिसाल है।


🙏 अरिफ खान की अनोखी पहल

26 वर्षीय अरिफ खान चिश्ती, जो इटारसी के रहने वाले हैं, ने प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज को अपनी एक किडनी दान करने की पेशकश की। अरिफ पेशे से ऑनलाइन कंसल्टेंट और डॉक्यूमेंटर हैं।

उन्होंने जिला कलेक्टर और प्रेमानंद महाराज को एक भावपूर्ण पत्र लिखा, जिसमें कहा—

“प्रेमानंद महाराज सिर्फ हिंदू समाज के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एकता का प्रतीक हैं। यदि मेरी किडनी उनके जीवन को संबल दे सकती है तो यह मेरे लिए सौभाग्य होगा।”

अरिफ ने यह प्रस्ताव अपने परिवार की सहमति से भेजा। उनकी पत्नी, पिता और तीनों भाइयों ने भी उनके इस कदम का समर्थन किया।


🕉️ संत प्रेमानंद महाराज और उनका संघर्ष

प्रेमानंद महाराज देशभर में अपने प्रवचनों और आध्यात्मिक संदेशों के लिए जाने जाते हैं। उन्हें लंबे समय से किडनी की गंभीर बीमारी है। करीब 18–20 वर्षों से उनकी दोनों किडनियां डैमेज हैं और वे डायलिसिस पर निर्भर हैं।

इसके बावजूद वे न केवल भक्तों को आध्यात्मिक राह दिखा रहे हैं, बल्कि प्रेम, क्षमा और सच्चाई का संदेश भी फैला रहे हैं। उनकी जीवनशैली और सकारात्मक दृष्टिकोण लाखों लोगों को प्रेरित करता है।


🌼 संत का जवाब: कृतज्ञता और इनकार

जब प्रेमानंद महाराज तक यह संदेश पहुँचा, तो उन्होंने अरिफ खान की भावना का दिल से स्वागत किया। उन्होंने अरिफ का धन्यवाद किया और कहा कि—

“मुझे आपकी किडनी की आवश्यकता नहीं है, लेकिन आपकी इस भावना ने समाज को एकता और भाईचारे का संदेश जरूर दिया है।”

संत ने यह भी कहा कि अरिफ का यह कदम सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनेगा। उन्होंने अरिफ को भविष्य में आश्रम में मिलने और सम्मानित होने का निमंत्रण भी दिया।


📰 समाज और मीडिया की प्रतिक्रिया

यह घटना जैसे ही सामने आई, पूरे देश में चर्चा का विषय बन गई। मीडिया ने इसे हिंदू–मुस्लिम एकता और इंसानियत का प्रतीक बताया।

  • कई लोगों ने सोशल मीडिया पर लिखा कि “धर्म इंसान को जोड़ने के लिए है, बांटने के लिए नहीं।”

  • कुछ लोगों ने अरिफ की तुलना एक सच्चे फकीर से की, जिन्होंने अपनी जान दांव पर लगाकर एक संत के जीवन की चिंता की।

  • वहीं संत के उत्तर ने यह साबित कर दिया कि असली संत वही है जो किसी के बलिदान को स्वीकार करने के बजाय उसके पीछे की भावना को महत्व देता है।


✨ पहले भी आए थे ऐसे प्रस्ताव

गौरतलब है कि इससे पहले बॉलीवुड से जुड़े राज कुंद्रा ने भी प्रेमानंद महाराज को अपनी किडनी देने की पेशकश की थी। हालांकि महाराज ने उस समय भी इसे अस्वीकार कर दिया था और सिर्फ स्वस्थ रहने की शुभकामनाएं दी थीं।

लेकिन अरिफ खान की पहल इस मायने में खास रही कि यह पूरी तरह निस्वार्थ और भावनात्मक आधार पर की गई थी।


💡 संदेश क्या है इस घटना का?

यह घटना हमें कई गहरी बातें सिखाती है—

  1. मानवता सबसे बड़ा धर्म है।
    अरिफ ने यह साबित किया कि इंसानियत किसी जाति या मज़हब की मोहताज नहीं होती।

  2. आध्यात्मिकता का असली अर्थ।
    प्रेमानंद महाराज ने यह दिखाया कि किसी की मदद स्वीकार करना ही जरूरी नहीं, बल्कि उस भावना का सम्मान करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

  3. सांप्रदायिक सौहार्द का उदाहरण।
    जब एक मुस्लिम युवक हिंदू संत के लिए अपनी जान दांव पर लगाने को तैयार हो, तो यह उन सबको जवाब है जो धर्म के नाम पर नफरत फैलाते हैं।


🌺 निष्कर्ष

अरिफ खान और प्रेमानंद महाराज की यह कहानी आने वाले वर्षों तक एक प्रेरक उदाहरण बनी रहेगी। यह हमें याद दिलाती है कि असली भारत वही है, जहाँ मंदिर और मस्जिद के बीच इंसानियत की डोर जुड़ी रहती है।

संत का इनकार और युवक की पेशकश—दोनों ही पक्ष इस बात को साबित करते हैं कि भले ही शरीर नश्वर हो, लेकिन भावनाएं और इंसानियत अमर होती हैं।

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