सास ने बहू की जान बचाने के लिए दी किडनी: यूपी की अनोखी मिसाल, जब सगी मां ने कर दिया था इंकार
एटा (उत्तर प्रदेश) से एक ऐसी मानवीय कहानी सामने आई है, जो न सिर्फ रिश्तों की गहराई को परिभाषित करती है बल्कि समाज को यह संदेश भी देती है कि असली अपनापन खून के रिश्तों से ही नहीं, बल्कि दिल से निभाए गए रिश्तों से भी होता है। यहां एक महिला की जान उसकी 55 वर्षीय सास ने अपनी किडनी दान करके बचाई। यह घटना इसलिए और भी भावुक हो जाती है क्योंकि जब उस महिला को उसकी सगी मां से किडनी की उम्मीद थी, तब उन्होंने मना कर दिया। मगर सास ने बिना किसी संकोच और भय के अपनी किडनी बहू को देकर न सिर्फ उसकी जिंदगी बचाई बल्कि यह साबित किया कि सास-बहू का रिश्ता केवल तकरार और विवाद तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें भी प्रेम, त्याग और बलिदान की मिसालें छिपी होती हैं।
बीमारी की शुरुआत और जटिल हालात
जानकारी के अनुसार, एटा जिले की इस महिला को डिलीवरी के दौरान गंभीर संक्रमण हो गया था। यह संक्रमण इतना तेजी से फैला कि उसने महिला की किडनी पर सीधा असर डाला। रिपोर्ट्स बताती हैं कि संक्रमण की वजह से महिला की 75% किडनी फेल हो चुकी थी। डॉक्टरों ने स्पष्ट कर दिया कि यदि जल्द ही उसे किडनी ट्रांसप्लांट नहीं किया गया, तो उसकी जान खतरे में पड़ सकती है।
बीते छह महीनों से महिला का जीवन डायलिसिस पर टिका हुआ था। हर सप्ताह डायलिसिस करवाना न केवल शारीरिक रूप से कष्टदायक था, बल्कि आर्थिक बोझ भी लगातार बढ़ा रहा था। परिवार के सामने यह सबसे बड़ा सवाल था कि आखिर उसे किडनी कौन देगा।
सगी मां का इंकार और टूटती उम्मीदें
महिला की सबसे पहली उम्मीद उसकी अपनी मां से थी। स्वाभाविक रूप से हर बेटी को यह विश्वास होता है कि उसकी मां उसके जीवन की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करेगी। लेकिन रिपोर्ट्स के मुताबिक, महिला की मां ने किडनी देने से साफ इंकार कर दिया। वजह चाहे स्वास्थ्य संबंधी रही हो या कोई अन्य व्यक्तिगत कारण, लेकिन यह निर्णय परिवार और महिला दोनों के लिए झकझोर देने वाला था।
इस इंकार ने महिला को मानसिक रूप से तोड़ दिया। उसे लगा कि अब शायद उसकी जिंदगी धीरे-धीरे मौत की ओर बढ़ेगी। लेकिन इसी बीच उसकी सास ने ऐसा निर्णय लिया, जिसने पूरे परिवार को हैरत और गर्व से भर दिया।
सास का फैसला और साहसिक कदम
महिला की 55 वर्षीय सास ने डॉक्टरों से स्वयं किडनी टेस्ट कराने की इच्छा जताई। रिपोर्ट्स में पाया गया कि उनकी किडनी बहू के लिए उपयुक्त है। यह सुनकर उन्होंने बिना देर किए किडनी दान करने का निर्णय ले लिया।
किसी भी सर्जरी में, खासकर किडनी डोनेशन जैसे बड़े ऑपरेशन में, जोखिम हमेशा बना रहता है। उम्र के लिहाज से भी यह निर्णय आसान नहीं था। लेकिन सास ने रिश्तों की मजबूती और इंसानियत के लिए अपनी चिंता को किनारे रख दिया।
जब यह बात बहू को बताई गई, तो उसकी आंखें खुशी और कृतज्ञता से भर आईं। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उसकी जान बचाने के लिए उसकी सास अपनी किडनी दे रही हैं। यह वह पल था जब परिवार के अन्य सदस्य भी भावुक हो गए और सास के इस साहसिक कदम को सलाम किया।
सफल सर्जरी और नई जिंदगी की शुरुआत
डॉक्टरों की देखरेख में किडनी ट्रांसप्लांट की सर्जरी सफलतापूर्वक संपन्न हुई। ऑपरेशन के बाद महिला की स्थिति में तेजी से सुधार आया और वह धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगी। सास भी ऑपरेशन के बाद पूरी तरह से ठीक हैं और उनकी सेहत पर कोई गंभीर असर नहीं पड़ा।
परिवार अब राहत की सांस ले रहा है। बहू को न केवल नई जिंदगी मिली बल्कि रिश्तों को देखने का उसका नजरिया भी हमेशा के लिए बदल गया। उसने कहा कि उसकी सास ने जो किया, वह जीवन भर भुलाया नहीं जा सकता।
समाज के लिए सीख
यह कहानी केवल एक परिवार तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे समाज को एक संदेश देती है। अक्सर फिल्मों और धारावाहिकों में सास-बहू का रिश्ता झगड़े, तकरार और ईर्ष्या से भरा दिखाया जाता है। लेकिन एटा की इस घटना ने यह साबित किया कि सास-बहू का रिश्ता नफरत का नहीं बल्कि त्याग और प्रेम का भी हो सकता है।
इसके साथ ही यह घटना एक सवाल भी खड़ा करती है कि आखिर क्यों कुछ लोग अपने सबसे करीबी खून के रिश्तों में भी मदद करने से पीछे हट जाते हैं। अगर सास अपनी जान की परवाह किए बिना यह कदम उठा सकती हैं, तो यह सभी के लिए प्रेरणा है।
चिकित्सा जगत का नजरिया
डॉक्टरों का कहना है कि अंगदान का निर्णय आसान नहीं होता, खासकर तब जब उम्र 50 से अधिक हो। इसमें दाता की सेहत का ख्याल रखना बेहद जरूरी होता है। फिर भी, जब कोई व्यक्ति अपनी इच्छाशक्ति और मानवीय संवेदनाओं से प्रेरित होकर ऐसा कदम उठाता है, तो यह समाज के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण बन जाता है।
भारत में हर साल लाखों लोग किडनी फेल्योर से जूझते हैं और उनमें से कई केवल इसलिए दम तोड़ देते हैं क्योंकि उन्हें समय पर डोनर नहीं मिल पाता। यदि अधिक लोग आगे आकर अंगदान के महत्व को समझें, तो अनगिनत जिंदगियां बचाई जा सकती हैं।
निष्कर्ष
एटा की इस घटना ने साबित कर दिया कि असली रिश्ते वही हैं, जिन्हें निभाने के लिए कोई इंसान त्याग करने को तैयार हो। बहू की सगी मां ने भले ही मुंह मोड़ लिया हो, लेकिन सास ने यह दिखा दिया कि वह केवल घर की मुखिया ही नहीं, बल्कि त्याग और ममता की प्रतिमूर्ति भी हैं।
यह घटना न सिर्फ परिवार के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा है। यदि हम सब अपने भीतर ऐसी ही मानवता और संवेदनशीलता को जागृत कर सकें, तो दुनिया में किसी को भी जीवन बचाने के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ेगा।
