सरिया में आउटसोर्सिंग और ठेका प्रथा के खिलाफ गरजा युवा वर्ग: रोजगार लूट पर उबाल, सड़क पर उतरे छात्र-नौजवान
जुलाई 2025
📍 स्थान: सरिया, गिरिडीह, झारखंड
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🔍 प्रस्तावना: रोजगार के नाम पर छलावा
झारखंड का सरिया प्रखंड इन दिनों सामाजिक व आर्थिक अन्याय के खिलाफ युवाओं के आंदोलन का केंद्र बन चुका है। आउटसोर्सिंग और ठेका प्रथा के ज़रिए स्थानीय युवाओं को उनके ही घर में बेरोजगारी की चक्की में पीसा जा रहा है। इस अन्याय के विरुद्ध रेवोल्यूशनरी यूथ एसोसिएशन (RYA) और इनकलाबी नौजवान सभा (इंसाफ) के नेतृत्व में एक जोरदार विरोध मार्च निकाला गया।
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📢 विरोध मार्च का उद्देश्य
सरिया पावरग्रिड व उच्चस्तरीय विद्युत परियोजनाओं में 75% स्थानीय आरक्षण के प्रावधान को ताक पर रखकर बाहरी लोगों की नियुक्ति से गुस्साए युवाओं ने ‘रोजगार लूट के खिलाफ युवाओं का हुंकार’ नारे के साथ सड़कों पर प्रदर्शन किया।
प्रदर्शनकारियों की प्रमुख माँगें:
स्थानीय युवाओं को प्राथमिकता से नौकरी मिले
ठेका प्रथा और आउटसोर्सिंग व्यवस्था को खत्म किया जाए
स्थायी रोजगार की गारंटी दी जाए
शिक्षा, स्वास्थ्य और उद्योगों में स्थानीय युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित हो
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📍 रैली का रूट और असर
विरोध मार्च सरिया बाज़ार से प्रारंभ होकर सरिया थाना चौक और बाजार क्षेत्र होते हुए पावरग्रिड मुख्य द्वार तक पहुँचा। इस दौरान रास्ता जाम रहा और व्यापारिक गतिविधियां भी प्रभावित हुईं।
आरवाईए नेता सुधांशु आनंद ने कहा, “स्थानीय युवाओं को काम देने की बजाय बाहरी ठेकेदारों के ज़रिए सस्ते मज़दूरों को नियुक्त कर सरकार न केवल झारखंड के आरक्षण कानून का उल्लंघन कर रही है, बल्कि सामाजिक असंतोष को भी जन्म दे रही है।”
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📚 शिक्षा और संसाधन, फिर भी बेरोजगारी
सरिया क्षेत्र में युवाओं ने मेहनत से पढ़ाई की, तकनीकी प्रशिक्षण लिया और सरकारी योजनाओं में भागीदारी की, लेकिन नौकरी के लिए उन्हें दर-दर भटकना पड़ रहा है।
इस संदर्भ में आरवाईए के जिला संयोजक मुन्ना यादव ने कहा, “कंपनियां CSR (कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) के नाम पर स्थानीय जनता से वादे तो करती हैं, लेकिन हकीकत में सिर्फ मुनाफा कमाने की नीतियां अपनाई जाती हैं।”
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🏢 ठेका प्रथा: स्थायी समाधान या अस्थायी शोषण?
इस आंदोलन का सबसे बड़ा मुद्दा ठेका प्रथा है, जिसमें कंपनियां कम वेतन पर कर्मचारियों से काम करवाती हैं और जब चाहें तब निकाल देती हैं।
युवा राजेश राम ने बताया, “सरिया पावरग्रिड में कई वर्षों से स्थायी पद खाली हैं, लेकिन कंपनियां आउटसोर्स एजेंसियों के ज़रिए अस्थायी कर्मचारियों को रखती हैं। इसका खामियाज़ा स्थानीय नौजवान भुगत रहे हैं।”
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📈 स्थानीय बेरोजगारी का आँकड़ा और तनाव
सरिया प्रखंड में 18 से 35 वर्ष के आयु वर्ग के लगभग 28% युवा शिक्षित होने के बावजूद बेरोजगार हैं। अधिकांश युवा या तो पलायन कर रहे हैं या छोटे-मोटे कामों से गुज़ारा कर रहे हैं।
स्थानीय व्यवसायी संजय वर्मा ने कहा, “जब इतनी बड़ी परियोजनाएं यहाँ चल रही हैं, तो रोजगार भी यहीं के युवाओं को मिलना चाहिए। ये सिर्फ आर्थिक नहीं, सामाजिक न्याय का मुद्दा है।”
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🧑💼 प्रशासन की चुप्पी और राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
प्रदर्शनकारियों ने प्रशासन से इस विषय पर सीधी बातचीत की माँग की है। विरोध मार्च के दौरान डीसी कार्यालय को ज्ञापन सौंपा गया और एक सप्ताह में ठोस जवाब नहीं मिलने पर उग्र आंदोलन की चेतावनी दी गई।
इस मुद्दे पर झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों ने भी सरकार से स्पष्टीकरण माँगा है। वहीं, प्रशासन ने फिलहाल इस पर चुप्पी साध रखी है।
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🗣 जनसुनवाई और आगे की रणनीति
RYA और इंसाफ ने घोषणा की है कि आने वाले हफ्तों में गाँव-गाँव जनसभाएं आयोजित कर ठेका प्रथा और रोजगार के मुद्दे पर लोगों को जागरूक किया जाएगा।
साथ ही कहा गया कि यदि 15 अगस्त तक स्थानीय युवाओं को रोजगार की स्पष्ट योजना घोषित नहीं की गई तो विधानसभा घेराव किया जाएगा।
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📌 आंदोलन में शामिल प्रमुख चेहरे
इस विरोध मार्च में प्रमुख रूप से सुधांशु आनंद, मुन्ना यादव, कुंदन प्रसाद, विकास मिश्रा, राजेश राम, बिनोद सिंह, मुकेश मौर्य, प्रवीण शर्मा, विपुल मिश्रा, रजनीश वर्मा सहित दर्जनों छात्र नेता और युवा कार्यकर्ता मौजूद थे।
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✍ निष्कर्ष: युवा आक्रोश का संकेत
सरिया की यह लहर सिर्फ एक कस्बे तक सीमित नहीं है, यह पूरे झारखंड के युवा वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है। जब तक आउटसोर्सिंग और ठेका प्रथा की मनमानी पर लगाम नहीं लगेगी, तब तक विरोध की आवाज़ें तेज़ होती रहेंगी। यह आंदोलन झारखंड में रोजगार के नए परिप्रेक्ष्य की शुरुआत भी हो सकता है।