Success Story: बस कंडक्टर की बेटी बनी डॉक्टर और फिर IAS, राहुल गांधी ने उन्हीं के सामने भरा था नामांकन
Success Story: डॉक्टर से बनीं IAS, बस कंडक्टर की बेटी रेनू राज की कहानी जो हर युवा को हौसला देती है
“सपनों को उड़ान देने के लिए न पैसे चाहिए, न ही बड़ी सुविधाएं… चाहिए तो सिर्फ हौसला, मेहनत और संकल्प।”
इसी सोच को साकार कर दिखाया है केरल की रेनू राज ने। एक साधारण परिवार से आने वाली इस होनहार लड़की ने पहले डॉक्टर बनकर लोगों की सेवा की, और फिर समाज में व्यापक बदलाव लाने के लिए सिविल सेवा को चुना। यूपीएससी की बेहद कठिन परीक्षा को उन्होंने पहले ही प्रयास में AIR 2 रैंक के साथ पास कर यह साबित कर दिया कि मेहनत और जुनून हो तो कोई भी मंजिल मुश्किल नहीं।
साधारण परिवार से असाधारण सफर की शुरुआत
रेनू राज का जन्म 1987 में केरल के चंगनास्सेरी (जिला कोट्टायम) में हुआ। उनके पिता एम.के. राजकुमारन नायर एक सरकारी बस में कंडक्टर थे और मां एक गृहिणी। परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत सशक्त नहीं थी, लेकिन उनके घर में सपनों की कोई कमी नहीं थी। बचपन से ही रेनू पढ़ाई में बेहद तेज़ थीं और कुछ बड़ा करने का सपना रखती थीं।
सीमित संसाधनों के बावजूद उन्होंने कभी परिस्थितियों को अपने लक्ष्य के आड़े नहीं आने दिया। उनके माता-पिता ने भी उनकी शिक्षा को प्राथमिकता दी और हमेशा उनका हौसला बढ़ाया।
डॉक्टर से बनीं IAS — एक साहसिक फैसला
रेनू ने गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, कोट्टायम से MBBS की डिग्री ली और एक सर्जन के रूप में काम करना शुरू किया। वे पेशे से डॉक्टर थीं, और समाज के लोगों की सेवा भी कर रही थीं। लेकिन उनके भीतर समाज के लिए और व्यापक रूप से कुछ करने की ललक थी।
उन्होंने महसूस किया कि एक डॉक्टर के तौर पर वे सीमित लोगों की मदद कर पा रही हैं, लेकिन एक प्रशासनिक अधिकारी बनकर वे समाज के बड़े हिस्से की ज़िंदगी में सकारात्मक बदलाव ला सकती हैं।
इसी सोच के साथ उन्होंने UPSC (संघ लोक सेवा आयोग) की परीक्षा की तैयारी शुरू की — बिना किसी शोरशराबे के, सिर्फ अपने आत्मविश्वास और मेहनत के बल पर।
एक साल की तैयारी और सीधा टॉप रैंक
रेनू ने यूपीएससी की तैयारी के लिए महज एक साल का समय लिया। अपने मेडिकल शेड्यूल के बीच, रोजाना 6 से 8 घंटे पढ़ाई करती थीं। न कोई कोचिंग, न विशेष सुविधा — सिर्फ खुद पर भरोसा और एक स्पष्ट लक्ष्य।
UPSC 2015 की परीक्षा में, उन्होंने पहले ही प्रयास में ऑल इंडिया रैंक 2 हासिल की, जो अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि थी। उनकी सफलता का संदेश साफ था — अगर इरादे मजबूत हों, तो कोई भी बैकग्राउंड आड़े नहीं आता।
“IAS बनकर ज्यादा लोगों की मदद कर सकती हूं”
जब रेनू से पूछा गया कि उन्होंने डॉक्टर की नौकरी क्यों छोड़ी, तो उनका जवाब बेहद प्रभावशाली था:
“एक डॉक्टर के तौर पर मैं रोज़ 100 मरीजों की मदद कर सकती थी, लेकिन एक IAS अधिकारी बनकर मैं हजारों लोगों की ज़िंदगी को बेहतर बना सकती हूं।”
उनके इस दृष्टिकोण से यह साफ जाहिर होता है कि वे सिर्फ अपने करियर को नहीं, बल्कि समाज को आगे बढ़ाने की सोच रखती थीं।
बतौर अफसर — रेनू राज का प्रशासनिक योगदान
IAS बनने के बाद रेनू ने केरल के विभिन्न जिलों में बतौर उप-जिला मजिस्ट्रेट (SDM) और जिला कलेक्टर (DM) काम किया। उन्होंने खासकर महिलाओं की सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य और प्रशासन में पारदर्शिता के लिए कई बेहतरीन पहल कीं। उनकी कार्यशैली में सख्ती के साथ-साथ संवेदनशीलता भी दिखी।
रेनू का मानना है कि अगर प्रशासन में ईमानदारी और करुणा को साथ लेकर चला जाए, तो जमीनी स्तर पर बड़े बदलाव संभव हैं।
राजनीतिक चर्चा में भी आईं रेनू
रेनू राज तब और चर्चा में आईं जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपने लोकसभा नामांकन के दौरान उनके सामने पर्चा दाखिल किया। उस समय वे संबंधित क्षेत्र की एसडीएम थीं। इस घटना ने एक और उदाहरण पेश किया कि किस तरह मेहनत और लगन से कोई भी आम लड़की असाधारण मुकाम पर पहुंच सकती है — जहाँ एक समय के बड़े नेता भी उनके सामने कागज़ात जमा कर रहे थे।
निष्कर्ष: रेनू राज — हर युवा के लिए प्रेरणा
रेनू राज की कहानी सिर्फ एक सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह हर उस युवा के लिए संदेश है जो संसाधनों की कमी से घबरा जाते हैं। यह कहानी बताती है कि अगर आपके भीतर सच्चा जुनून है, तो आप किसी भी परिस्थिति से निकलकर ऊंचाइयों तक पहुंच सकते हैं।
बस कंडक्टर की बेटी से लेकर सर्जन और फिर एक टॉप IAS अफसर बनने तक का उनका सफर भारत की उन अनगिनत कहानियों में से एक है जो देश के युवाओं को सपना देखने, मेहनत करने और उन्हें साकार करने की प्रेरणा देती हैं।