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“साथ रहने का मतलब साथ देना नहीं”: उद्धव ठाकरे के बयान से गरमाई महाराष्ट्र की राजनीति, MVA की एकता पर सवाल

“साथ रहने का मतलब साथ देना नहीं”: उद्धव ठाकरे के बयान से गरमाई महाराष्ट्र की राजनीति, MVA की एकता पर सवाल

📅 प्रकाशित तिथि: 20 जुलाई 2025
✍ KhabarFirst राजनीतिक डेस्क

महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर बयानों का दौर गर्मा गया है। महाविकास अघाड़ी (MVA) के प्रमुख घटक शिवसेना (यूबीटी) के नेता उद्धव ठाकरे ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ जुड़ने की अटकलों के बीच एक बड़ा बयान देकर सियासी हलकों में हलचल मचा दी है। उन्होंने साफ तौर पर कहा, “साथ रहने का मतलब यह नहीं कि हम साथ हैं। अगर भविष्य में ऐसी गलतियां होती रहीं, तो इसका अर्थ यह नहीं निकाला जाए कि हम भाजपा के साथ जा रहे हैं।”

इस बयान को लेकर राजनीतिक गलियारों में कई तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। क्या यह सिर्फ एक सफाई है या फिर शिवसेना (यूबीटी) की तरफ से कांग्रेस और NCP को दिया गया एक सख्त संदेश? आइए जानते हैं पूरी रिपोर्ट—

🔸 पृष्ठभूमि: महाविकास अघाड़ी की मजबूती और दरारें

महाविकास अघाड़ी का गठन 2019 में तब हुआ था जब शिवसेना ने भाजपा से नाता तोड़कर कांग्रेस और NCP के साथ सरकार बनाई थी। इस गठबंधन ने महाराष्ट्र में भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया और शिवसेना के उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने। लेकिन वक्त के साथ-साथ इस गठबंधन में कई मुद्दों पर मतभेद भी उभरे, जिनमें प्रमुख है — सीट बंटवारा, नेतृत्व की भूमिका और नीति-निर्धारण में सामंजस्य।

🔸 उद्धव ठाकरे का ताजा बयान क्यों है अहम?

हाल ही में कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में यह दावा किया गया कि शिवसेना (यूबीटी) और भाजपा के बीच पर्दे के पीछे फिर से नजदीकियां बढ़ रही हैं। इसे लेकर जब पत्रकारों ने उद्धव ठाकरे से सवाल किया तो उन्होंने दो टूक जवाब देते हुए कहा:

> “विधानसभा चुनाव के दौरान सीट बंटवारे पर बातचीत आखिरी क्षण तक चली… जिससे जनता में गलत संदेश गया। इस गलती को सुधारना होगा। अगर भविष्य में ऐसी गलतियां होती रहीं… तो साथ रहने का मतलब नहीं है।”

 

यह बयान ना सिर्फ भाजपा के साथ गठबंधन की अटकलों पर विराम लगाने की कोशिश है, बल्कि MVA के सहयोगियों के लिए एक चेतावनी भी है।

🔸 क्या कांग्रेस और NCP को संकेत दे रहे हैं उद्धव?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उद्धव ठाकरे का यह बयान भाजपा के खिलाफ कम, और कांग्रेस व एनसीपी के प्रति ज्यादा तीखा है। सीट बंटवारे को लेकर जो असहमति सामने आई, उसने गठबंधन की एकता को नुकसान पहुंचाया है। ठाकरे अब यह स्पष्ट करना चाह रहे हैं कि अगर समय रहते समन्वय नहीं बना तो शिवसेना (UBT) स्वतंत्र रास्ता चुन सकती है।

🔸 भाजपा से संभावित गठबंधन की संभावना?

हालांकि उद्धव ठाकरे ने साफ इंकार किया कि उनका भाजपा से कोई संपर्क है, लेकिन उनके बयान की टाइमिंग और स्वरूप ने संशय को पूरी तरह खत्म नहीं किया है। भाजपा की ओर से भी इस बयान पर कोई तीखी प्रतिक्रिया नहीं आई है, जिससे कयासों को और बल मिला है।

विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले चुनावों से पहले यदि MVA में दरारें गहरी होती हैं, तो भाजपा को इसका लाभ मिल सकता है। ऐसे में भाजपा भी इंतजार की नीति अपना सकती है।

🔸 जनता का नजरिया और संदेश

सामान्य जनता में इस बयान को लेकर मिलाजुला असर देखा जा रहा है। एक वर्ग को लगता है कि यह बयान MVA की आंतरिक कमजोरी को उजागर करता है, वहीं दूसरा वर्ग मानता है कि उद्धव ने यह बयान देकर गठबंधन में अनुशासन का संदेश देने की कोशिश की है।

🔸 आगे की राह क्या?

1. MVA को जल्दबाज़ी में निर्णय लेने से बचना होगा, खासकर सीटों के बंटवारे और मुख्यमंत्री पद की रणनीति को लेकर।

2. भाजपा के साथ कोई भी समीकरण जनता में गलतफहमी फैला सकता है, जिसका असर 2025 के विधानसभा चुनावों में दिख सकता है।

3. शिवसेना (UBT) की साख बचाने के लिए उसे स्पष्ट रणनीति बनानी होगी — न केवल सहयोगियों के साथ बल्कि अपने मतदाताओं के लिए भी।

 

🔚 निष्कर्ष:

उद्धव ठाकरे का “साथ रहने का मतलब साथ देना नहीं” वाला बयान आने वाले चुनावों की पटकथा का एक महत्वपूर्ण अध्याय बन सकता है। यह न केवल MVA की एकता को चुनौती दे रहा है, बल्कि भाजपा को भी नए सियासी समीकरण गढ़ने का अवसर दे रहा है। अब देखना होगा कि क्या महाविकास अघाड़ी इस बयान को आत्ममंथन का मौका बनाएगी या फिर यह दरार का कारण बनेगा।

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